देहरादून

उत्तराखंड में इस बार उक्रान्त (यूकेडी)को अपना वजूद बचाने की चुनोती।

प्रदेश के एकमात्र क्षेत्रीय दल के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के सामने इस समय खुद का वजूद बचाए रखने की चुनौती है। इसके लिए दल को ऐसी संजीवनी की तलाश है, जो आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी में नई जान फूंक सके। उत्तराखंड एक बार फिर जल, जंगल और जमीन के पारंपरिक सूत्र वाक्य, उत्तराखंड बचाओ, उत्तराखंड बसाओ के नारों और बेरोजगारी आदि मुद्दों के साथ एक बार फिर जनता की अदालत में हाजिरी लगाने की तैयारी कर रहा है। हालांकि, लगातार कम होते जनाधार के बीच दल का जनता के बीच विश्वास बनाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।उत्तर प्रदेश के पर्वतीय जिलों को मिलाकर अलग राज्य बनाने की अवधारणा को लेकर उत्तराखंड क्रांति दल का जन्म 1979 में हुआ। राज्य आंदोलन में उक्रांद का खासी अहम भूमिका रही। राज्य गठन के बाद पहले विधानसभा चुनाव, यानी वर्ष 2002 में उत्तराखंड क्रांति दल ने गैरमान्यता प्राप्त पंजीकृत दल के रूप में चुनाव लड़ा। उक्रांद ने इस चुनाव में 62 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। इनमें चार पहली निर्वाचित विधानसभा में पहुंचने में सफल रहे। दल को कुल 5.49 प्रतिशत मत मिले। हालांकि, जिन सीटों पर दल ने चुनाव लड़ा, वहां यह वोट प्रतिशत 6.36 रहा। यह प्रदर्शन पहली बार उतरने वाले राजनीतिक दलों के हिसाब से काफी अच्छा रहा। दूसरे विधानसभा चुनाव में उक्रांद का प्रदर्शन सीटों के लिहाज से अपेक्षाकृत कमजोर रहा। दल ने 61 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। इनमें से केवल तीन ही जीत दर्ज कर पाए। हालांकि, दल का वोट प्रतिशत 5.49 यथावत रहा। इस चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं हासिल कर पाई। ऐसे में उक्रांद ने सरकार को समर्थन देकर मंत्रिमंडल में भी जगह बनाई। यह समय उक्रांद के लिए राजनीतिक रूप से बेहद अहम भी था। विडंबना यह रही कि इस दौरान दल अपना राजनीतिक धरातल मजबूत करने की बजाय आपसी कलह में उलझ गया। इससे दल कई धड़ों में बंट गया। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में मोदी की आंधी में दल का मत प्रतिशत एक प्रतिशत से भी कम हो गया। इसके बाद उक्रांद में फिर एका हुई। पार्टी के कद्दावर नेता व फील्ड मार्शल कहे जाने वाले के केंद्रीय अध्यक्ष है। लगातार दल को मजबूत करने की कवायद शुरू हो गई है। हालांकि, अभी भी दल के पास संसाधनों और कार्यकर्ताओं की खासी कमी है। इन सबके बीच जनता के बीच खोया विश्वास पाना आसान नहीं है। देश के अन्य राज्यों में जहां क्षेत्रीय दल अहम राजनीतिक शक्तियां बने हुए हैं। वहीं लड़ मर कर अलग राज्य की मशाल जलाने वाला उत्त्तराखण्ड क्रांति दल अपने वजूद की जंग लड़ रहा है। 2022 का विधानसभा चुनाव में उक्रांद के लिए करो या मरो की स्थिति है।उक्रांद ने मंगलवार को जारी अपनी पहली सूची में 16 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा भी कर दी। और अपने घोषणा पत्र में सख्त भू कानून की वकालत कर राज्य के ठेठ पर्वतीय मतदाता को नये सिरे से रिझाने की कोशिश की है। कई बार टूट चुके उत्त्तराखण्ड क्रांति दल के सामने सबसे बड़ी समस्या चुनावी संसाधनों को लेकर सामने आ रही है। यह स्थिति तब रही जब चुनावों में छह राष्ट्रीय दलों, चार राज्य स्तरीय दल और 24 गैरमान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों ने हिस्सा लिया, जिन्हें जनता ने सिरे से नकार दिया। जनाधार खो चुकी राज्य आंदोलन की अगुवा पार्टी के रूप में पुनः प्रतिष्ठित करने की बड़ी चुनौती होगी, लेकिन समय है कि रेत की तरह हाथ से निकलता जा रहा है। समय बहुत कम है। इस बीच, आम आदमी पार्टी ने भी उत्तराखंड की राजनीति में दस्तक दे दी है।

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