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पहाड़ो के 1600 से 3000मी.ऊँचाई पर उगने वाली केदारपाती (NERPATI) का अत्यधिक दोहन से विलुप्त होना चिंतनीय।

वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मण सिंह नेगी की रिपोर्ट

ऊखीमठ! लगभग 1600 मीटर से लेकर 3000 मीटर की ऊंचाई वाले भूभाग पर उगने वाले केदारपाती ( नैरपाती) का अत्यधिक दोहन होने से तथा केदारपाती की प्रजाति विलुप्त होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही!

पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन का जिम्मा सम्भाले वन विभाग व स्वयमसेवी संस्थाओं का आज तक इस ओर ध्यान न दिया जाना भी सोचनीय बात बनी हुई है! आने वाले समय में यदि प्रदेश सरकार के निर्देश पर वन विभाग निर्देशालय द्वारा केदारपाती के संरक्षण व संवर्धन के लिए पहली नहीं गयी तो देवभूमि उत्तराखंड से एक ऐतिहासिक वनस्पति विलुप्त हो जायेगी, जो कि आने वाले समय के लिए चिन्ता का विषय बन सकता है!

केदारपाती को वनस्पति विज्ञान की भाषा में स्किमिया ल्यूरोला नाम से जाना जाता है तथा कस्तूरी मृग का यह प्रिय घास माना जाता है! केदारपाती के सुगन्धित होने के कारण कस्तूरी मृग केदारपाती को बड़े लगाव से चरती है! केदारपाती पेड़ नहीं बल्कि पौधे के रूप पाया जाता है! केदारपाती को लगभग 1600 से 3000 मी की ऊंचाई में पायी जाती है! कई तीर्थों में केदारपाती को वेलपत्री के रुप में अर्पित किया जाता है! केदारपाती केदारनाथ पैदल मार्ग पर घिनुरपाणी, चोपता – तुंगनाथ पैदल मार्ग, टिगरी, राकसीडांडा तथा कार्तिक स्वामी की तलहटी में बसे ढाढिक में उगती है! केदारपाती का निरन्तर दोहन होने तथा कस्तूरी मृर्गो के निरन्तर चरने से केदारपाती विलुप्त की कंगार पर है!

कार्तिक स्वामी की तलहटी में बसे ढाढिक की बात करे तो आज से लगभग 15 वर्ष पहले केदारपाती बहुत अधिक मात्रा में उगती थी मगर वर्तमान समय में केदारपाती विलुप्त की कंगार पर है! स्थानीय सूत्रों की माने तो कुछ लोगों के द्वारा केदारपाती का निरन्तर दोहन किया जा रहा है क्योंकि केदारपाती को एसीडिटी की दवाई में तथा धूप के निर्माण में प्रयोग होने की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है! वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार केदारपाती के पौधों में पतझड़ 40 प्रतिशत होता है शेष पौधा वर्षभर हरा रहता है तथा केदारपाती के पौधे के लिए वर्ष भर नमी अनिवार्य होने चाहिए! कार्तिक स्वामी तीर्थ के पुजारी ताजवर पुरी का कहना है कि केदारपाती की प्रजाति धीरे – धीरे विलुप्त की कंगार पर है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है! पर्यावरणविदों की माने तो यदि केदारपाती की प्रजाति विलुप्त होती है तो कस्तूरी मृर्गो की संख्या में गिरावट आ सकती है! केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वनधिकारी अमित कवर का कहना है कि वन विभाग निर्देशालय द्वारा केदारपाती के संरक्षण व संवर्धन के लिए किसी प्रकार के निर्देश तो नहीं मिले है मगर भविष्य में जिस भी क्षेत्र में वनीकरण होगा वहाँ केदारपाती के पोधों को रोपित करवाने के प्रयास किये जायेंगे!

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