रुच्छ महादेव व कोटि माहेश्वरी तीर्थ में पित्र तर्पण से मिलता अर्ध गया का पुण्य ।लक्ष्मण सिंह नेगी की रिपोर्ट
ऊखीमठ! भारत देश ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में देवभूमि उत्तराखंड का ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व रहा है! त्रिकालदर्शी महर्षि वेदव्यास ने तपस्या के लिए इसी पावन भूमि को चुना और व्यास गुफा मे बैठकर अठारह पुराणों की रचना की ! पाण्डवों ने भी राज्य वैभव को भोगने के बाद सच्ची आत्मिक शांति पाने के लिए इसी उत्तराखंड के भूभाग को चुना! हिमालय के दिव्य वैभव, हिममण्डित गगन चुम्बी चोटियाँ, सदानीरा पवित्र नदियाँ, कल – कल बहते निर्झर, वनों की विपुल प्राकृतिक सम्पदा और सौन्दर्य हर किसी को भा जाता है! देवभूमि उत्तराखंड में कालीमठ घाटी युगों से महान साधको की तपस्थली रहीं है क्योंकि इस घाटी के कण – कण में ईश्वरीय शक्ति विध्यमान है! कालीमठ घाटी के रूच्छ महादेव व कोटि माहेश्वरी तीर्थ का महात्म्य वेद पुराणों में वर्णित है! यह तीर्थ दुखतारिणी मनणा व सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर विराजमान है तथा उत्तर गया के नाम से विख्यात है! इस तीर्थ में भगवान शंकर की शिला रूप पूजा की जाती है! रूच्छ महादेव व कोटि माहेश्वरी तीर्थ की महिमा का वर्णन केदारखण्ड के अध्याय 90 के श्लोक संख्या 1 से लेकर 28 तक विस्तार से किया गया है! अरून्धती वशिष्ठ मुनि से बोली —— मुनियों से सेवित चरणकमल वाले, प्राणों से बढ़कर प्रिय, मेरे पति, आपने जो मुझे कोटि माहेश्वरी के विषय में बताया है, उसकी उत्पत्ति कैसे हुई, यह नाम कैसे पडा! वशिष्ठ जी बोले —— प्रिये, सुन्दरी, प्राणवल्लभे, सुनो, तुम धन्य हो, पर्याप्त पुण्य कर चुकी हो, क्योंकि तुम्हारी ऐसी सुन्दर मति है! देवी, आदि – अन्त से रहित और वाणी मन से परे है! वही सत्व आदि गुणों के संयोग से नित्य सृष्टि करती है ! हे सुमुखि, वे नित्य, शुद्ध विकार रहित, आकृति रहित और नाश रहित है! तब मैं कैसे उनकी उत्पत्ति बताऊँ! परन्तु तुम्हारे प्रेम के कारण मैं उनकी उत्पत्ति बताऊंगा! प्रिये —– जब जब देवताओं को असुरों से बाधा पहुंचती है तब उसका शमन करने कु लिए महेश
वरी का आविर्भाव होता है! लोक में तभी ऐसा प्रवाद हो जाता है कि वे अभी उत्पन्न हुई है! देवो पर अनुग्रह करने के लिए महिषासुर के संहार में शुम्भ – निशुम्भ नामक दैत्यों के वध में और रक्तबीज आदि दैत्यों के मारण में उन महामाया ने असुरों को भय देने वाली विविध प्रकार की माया को रचा था! कहीं सिंह रुप में, कहीं नरसिंह रुप से और कहीं वराह रुप से उन्होंने कुछ दैत्यों का वध किया था! कुछ को ब्रह्म की शक्ति से कुछ को इन्द्र की शक्ति से, कुछ को बाणरूप से, कुछ को खडग रुप से और कुछ को शस्त्रास्त्र रुप से नष्ट किया! वे कहीं बीस भुजा वाली, कहीं सौ भुजा वाली, कहीं हजार भुजा वाली, कहीं बीस मुख वाली, कहीं शुभ मुख वाली, कहीं एक पैर वाली, कहीं दो पैर वाली, कहीं दस लाख पैर वाली, और कहीं परार्ध पैर वाली हुई! उन्होंने कुछ को शूल से बेधकर आकाश में फेक दिया! दुर्गा ने जिस कारण इस प्रकार करोड़ों मायाएं की उसी से उनका नाम कोटि माहेश्वरी पडा़! यह विख्यात नाम स्वर्ग से अधिक फल देने वाला है! रमणीय हिमालय पर्वत पर देवो द्वारा आराधना की गई तथा दुर्गा लोगों की हित कामना से वही निवास करने लगी! जो व्यक्ति उनका दर्शन करेगा उसके हाथ में मोक्ष रहेगा! देवी के पास आये हुए व्यक्ति को देखकर उसके पितर हर्ष नाचने लगते है और हम अविनाशी लोक को जा रहे हैं ऐसा वे कहते हैं तथा प्रमुदित होते हैं! जो व्यक्ति रुच्छ महादेव में स्नान एवं तर्पण करके पिण्डदान करते हैं वे अपनी एक सौ साठ पीढियों को तार देते हैं! गया में पिण्डदान करने से मनुष्य को जो फल प्राप्त होता है वह फल यहाँ पिण्डदान करने से प्राप्त होता है! जो व्यक्ति भगवती कोटि माहेश्वरी व रूच्छ महादेव की भक्ति पूर्वक पूजा करता है उसकी करोड़ों कल्प तक पुनरावृत्ति नहीं होती है! जो मनुष्य इस तीर्थ में एक कपिला गौ प्रदान करता है वह सर्वागपूर्ण, निरोग तथा पांच इन्द्रियों से युक्त होकर उतने सहस्रयुगो तक स्वर्ग लोक में पूजित होता है! महाभागे —- जो इस तीर्थ में प्राणों का परित्याग करता है वह देवी के सायुज्य मोक्ष को प्राप्त करता है यह नि: सन्देह सत्य है! जो मनुष्य इस तीर्थ में एक हाथ भूमि ब्राह्मण को दान देता है वह वन पर्वत समेत पृथ्वी दान का फल पाता है! जो मनुष्य इस तीर्थ में एक रात उपवास करके जिस मंत्र का जप करता है वह मन्त्र उसे सिद्ध हो जाता है! शत्रु मंत्र भी यहाँ सिद्ध हो जाता है! जो मनुष्य भगवती कोटि माहेश्वरी व रुच्छ महादेव की महिमा का गुणगान करता है वह निष्पाप हो जाता है! विगत छ: वर्षों से इस तीर्थ में तपस्यारत महान तपस्वी शिव गिरी बताते हैं कि यह तीर्थ परम सिद्धि दायक है तथा इस तीर्थ में पूजा – अर्चना करने से अर्ध गया के बराबर फल मिलता है! इस तीर्थ के पुजारी सत्या नन्द भटट्, ओम प्रकाश भटट्, बच्ची राम भटट् विपिन भटट्, पुरुषोत्तम भटट् बताते हैं कि इस तीर्थ की महिमा का जितना वर्णन किया जाय वह कम है, उनका कहना है कि इस तीर्थ में मुक्तिदायक फल की प्राप्ति होती है! प्रधान चौमासी मुलायम सिंह तिन्दोरी, जाल मल्ला त्रिलोक सिंह रावत, क्षेत्र पंचायत सदस्य ऊषा भटट्, सोमेश्वरी भटट् पूर्व प्रधान मोहन सिंह राणा, लक्ष्मण सिंह सत्कारी ,दिनेश सत्कारी लखपत सिंह राणा का कहना है कि इस तीर्थ में पूजा – अर्चना करने से शिव ज्ञान, शिव भक्ति तथा शिवतत्व की प्राप्ति होती है!