नव वर्ष में उत्तराखण्डी अनाजों के उपयोग का लिया जाय संकल्प , हरीश कंडवाल ‘मनखी’
नव वर्ष में उत्तराखण्डी अनाजों के उपयोग का लिया जाय संकल्प , हरीश कंडवाल ‘मनखी’
31 दिसम्बर 2023 की शाम को धाद के वर्ष 2024 कैलेण्डर का विमोचन किये जाने के बाद जब फूफू अंजना कण्डवाल के साथ वापिस घर जा रहा था, तो शास्त्री नगर स्ट्रीट नमबर 04 हरिद्वार रोड़ देहरादून के पास मित्र कपिल डोभाल जी की पत्नी दीपिका डोभाल द्वारा बूढ दादी रेस्त्रां पर अनायास ही गाड़ी रोककर फुफू जी को बोला चलो आज ढिंडका खाते हैं। हम दोनों ने नववर्ष की पूर्व संध्या पर ढिंढका का आर्डर दे दिया। इतनी देर में कपिल डोभाल जी और उनकी पत्नी दीपिका डोभाल जी से वार्ता होने लगी। मैने भी पूछ लिया कि आज नये साल 2024 की पूर्व संध्या है, कुछ पांरपरिक भोज की बिक्री हुई, उन्होंने जो कहा उसको सुनकर मैं हतप्रभ रह गया। उनके अनुसार मनखी जी आपने मेरे मुॅह की बात छीन ली है, अभी हम दोनों यही बाता बात कर रहे थे कि आज नये साल की पूर्व संध्या है, और हम उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में बैठे हैं, जिस उत्तराखण्ड राज्य के लिए लोगों ने जनगीत और नारे लगाये थे कि कोदा झंगोरा खायेंगे उत्तराखण्ड राज्य बनायेगें, आज उसी उत्तराखण्ड के पांरपरिक अनाजों से बने इन भोज्य पदार्थो को कोई पूछने तक नहीं आया, आप ही आज के पहले ग्राहक जिन्होंने आज इस पांरपरिक भोज की ओपनिंग की।
मेरे ही सामने कई लोग उनसे मोमोज और अन्य चाईनिज फूड की मॉग कर रहे थे, एक दो तो मिलेट नाम पढते ही दुकान से आगे बढ गये। अभी स्वास्थ्य विभाग और कृषि विभाग द्वारा उत्तराखण्ड में मिलेट मेले पर लाखों का खर्च किया लेकिन उसका नतीजा शून्य ही नजर आया। हमारे उत्तराखण्ड के पहाड़ी समाज ही जिन्होंने कोदा झंगोरा खाया है, उनके बच्चे चाईनीज फूड की मॉग करते हैं, जबकि हम लोग उनको इन पहाड़ी व्यंजनों को खिला सकते हैं। आज चाईनीज फूड बच्चे, जवान, से लेकर बूढे तक बड़े चाव से खाते हैं, जबकि उत्तराखण्ड के यह पांरपरिक व्यंजन जो स्वाद में तो बेहतर हैं, ही साथ में स्वास्थ्य के लिए कई गुना लाभदायक हैं, बस इनको नहीं मिल पा रही है, तो पहचान। इसका कारण यह है कि हम खुद ही अपने भोजनों को हीन भाव से देखते हैं, वहीं हम एक मैगी 40 से 60 रूपये प्लेट बड़े शौक से खाते हैं,जबकि उत्तराखण्ड के इन फूड़्स को मॅहगा बताकर खुद अपने पहाड़ी उत्पादों की अवहेलना कर रहे हैं। चाईनीज फूड जो खाना चाहता है, खाये किंतु अपने बच्चों को महीने में दो बार इस तरह के पहाड़ी व्यंजनों को खिला सकते हैं।
बूढ दादी रेस्टोरेंट की संचालिका दीपिका डोभाल ने बताया कि हमने पूरे उत्तराखण्ड जिसमें मुनस्यारी से लेकर, रवांई जौनपुर, टिहरी उत्तरकाशी, पौड़ी चमोली, आदि जिलो के पांरपरिक भोज्य पदार्थों / व्यंजनों के बारे में गहन पड़़ताल करने और उसके बाद कई प्रयोग करने के बाद बनाना शुरू किया है, उन्होंने बताया कि उनके द्वारा निम्न व्यंजनों को बनाया जाता हैः-
बूढ दादी रेस्टोरेंट में यह पहाड़ी व्यंजन बनते हैंः-
1. ढिंढकाः अंकुरित कोदा (मंडुवा) गहथ चटनी, मसाले ( स्ट्रीम बैक्ड फूड) से बनता है।
2. सिड़कू : चावल आटा, अखरोट, भंगजीरा, गुड , घी/ शहद ( स्ट्रीम बैक्ड फूड) से मिलकर बनता है।
3. इन्ड्राई,ः गहथ, चटनी ( स्ट्रीम बैक्ड फूड)
4. सोना आलूः मक्की, आटा, आलू और मसाले से बनता है।
5. बिरंजी : झंगोरा, सोयाबीन, मटर, गाजर से बनाया जाता है।
6. ढुंगला/ असकलीः मल्ट्रीगेन आटा, चौलाई, उड़द दाल, मसाले से बनता है, साथ में चटनी।
7. बारानाजा खाजाः गेंहू, मक्की, गहथ, कढी (मटर) मसूर, सोयाबीन,काला भट्ट, मोट, सूंॅटा, चौलाई, भंगुलू, भंगजीरा
(स्वीट्स)
8. द्यूड़ा/राबड़ी : मक्की गुड़ ड्राईफ्रूटस आलू झोळ
9. लेमड़ाः चौलाई दूध, चीनी, घी, ड्राईफ्रूटस आदि से बनता है।
अन्य
10. बेड़ू रोटीः गेहॅू, आटा, दाल चटनी।
उपरेक्त कुछ भोज्य पदार्थ आर्डर करने पर ही बनते हैं, कुछ वहीं पर उपलब्ध होते हैं।
, यदि उत्तराखण्ड के अनाजों और व्यंजनों को आगे बढाना है तो इसी तरह के भोजन को उनके स्वाद के अनुसार और आधुनिक तरीके से परोसकर और उनका स्वरूप बदलकर नये पीढी तक पहॅुचाया जाना है। इन उत्पादों में सभी मोटे अनाजों का समिश्रण है, जबकि चाईनीज फूड, में मैदा आदि का उपयोग ज्यादा होता है। उत्तराखण्ड के इस तरह के व्यंजजों को बढावा देने के लिए खुद ही हमें आगे आना होगा। दीपिका डोभाल और उनके पति कपिल डोभाल जी की माने तो ऐसे ही अन्य लोगों को भी प्रयास करना होगा। हांलाकि अभी बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है, लेकिन धीरे धीरे लोग अब पंसद करने लग गये हैं। आप महीने में एक बार इस तरह के व्यजंन का उपयोग कर सकते हैं, और अपने बच्चों को इन फूड्स को खिला सकते हैं, आइये नव वर्ष पर संकल्प लीजिए कि हप्ते में एक दिन पहाड़ी उत्पादों का अलग अलग उपयोग कर इनको बढावा देने में अपना योगदान दें।
हरीश कण्डवाल मनखी कलम से।