राकेश चंद्र
उत्तरकाशी। वाह वाही लूटने के लिए घायल के लिए हेलीकॉप्टर तो जा सकता है, लेकिन प्रसव पीड़ा से तड़प रही युवती के लिए कायरों का दिल नहीं पसीजा , ये हाल है उत्तराखंड की राजनीती के मठाधीशों का। बीस साल पहले हजारों की इनकम वाले अब अरबपति बन चुके है लेकिन गांव देहात में स्वास्थय सुविधाओं के नाम पर आज भी ठेंगा है । दूर दाराज के इलाकों में स्वास्थय सुबिधाओं के न होने से बिगत बीस सालों में सैकड़ो महिलाओं की मौत केवल और केवल प्रसव पीड़ा के दौरान उचित स्वास्थ्य सुबिधाओं के न होने के कारण हो चुकी है , जो कि उत्तराखंड के लिए शर्म की बात है , आज भी आपको दुर्गम इलाकों के लोग कंधे पर बीमारों को ले जाते हुए अक्सर दिख जायेंगे ,इसके लिए उन्हें 20 से 25 कलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है,मगर राजनीती के मगरमच्छो को शायद ही इस बात का आभास हो ।
प्रसब बेदना से तड़पती हुई उत्तरकाशी रवांई घाटी की 26 बर्षीय बिनीता को उसका पति रजनीश 25 -26 जुलाई की रात 2 :35 बजे अपनी गाड़ी से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पुरोला लाया , जांच के बाद डॉक्टरों ने परिवार बताया कि बच्चे की धड़कन पता नहीं चल रही, जिसके बाद सुबह 5 :21 पर महिला ने एक मृत बालक को जन्म दिया ,प्रसब के बाद विनीता को खून का रिसाव होने के कारण आनन फानन में देहरादून के लिए रेफेर कर दिया गया। सुबह 6 बजे विनीता को 108 की सहायता से रवाना कर दिया गया लेकिन 50 कलोमीटर आगे डामटा इलाके में युवती की मौत हो गई।
युवती ने देहरादून पहुंचने से पहले ही रास्ते में दम तो तोड़ दिया लेकिन एक बार फिर से स्वस्थ्य विभाग की पोल भी खोल दी। आखिर कौन है इस युवती का गुनहगार,? क्या जवाब देने की स्थित में है कोई , प्रश्न एक पार्टी से नहीं, 20 सालों से चल रहे इस अंधे खेल का है, जो जनता की आखों में धूल झोंककर कुर्सी हथिया लेने में सफल हो जाता है लेकिन उसी जनता को भगवान् भरोशे मरने के लिए छोड़ देता है , आखिर कब तक होगा ये सब ? । हाल यह है कि कही डॉक्टर ही नहीं है तो कही डॉक्टरों के होने की बाद भी उनके हाथ बंधे हुए है।
इस बात को हम नहीं हाल ही में प्रकाशित रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट (सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन) में कहा गया है कि हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड में जन स्वास्थ्य पर कुल राजस्व खर्च और सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का सबसे कम खर्च किया जा रहा है। वर्ष 2019-20 में उत्तराखंड ने जन स्वास्थ्य पर अपने कुल राजस्व खर्च का 6.8 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया। जो हिमालयी राज्यों में सबसे कम है। जम्मू-कश्मीर ने इस दौरान अपने राजस्व खर्च का 7.7 प्रतिशत, पूर्वोत्तर राज्यों ने औसतन 7.5 प्रतिशत और पड़ोसी हिमाचल प्रदेश ने 7.6 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया। वहीं, जीएसडीपी का भी सबसे कम 1.1 प्रतिशत खर्च किया। जबकि जम्मू-कश्मीर ने 2.9 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश ने 1.8 प्रतिशत और पूर्वोत्तर राज्यों ने 2.9 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया। 100 , 200 और 300 यूनिट बिजली फ्री देने का वादा तो हर कोई कर सकता है लेकिन, गर्भवती महिलाओं की जान कैसे बचेगी है किसी के पास कोई समाधान ?