देहरादून

अमेरिका उत्पत्ति क्विन्वा भारत में पॉपुलर हो रहा है डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

भारत की जलवायु इसकी खेती के लिए अनुकूल है. इसकी खेती के लिए विशेष जलवायु की आवश्यकता नहीं होती. खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार विश्व में किनोवा का क्षेत्रफल 1,72,239 हेक्टेयर था. उत्पादन 97,410 टन हुआ था, जो कि 2015 में बढ़कर 1,97,637 हेक्टेयर हो गया. जबकि उत्पादन 1,93,822 टन हो गया. किनोवा अन्य अनाजों की अपेक्षा अधिक पौष्टिक होता है. संपूर्ण प्रोटीन में धनी होने के कारण इसको भविष्य का सुपर ग्रेन कहा जा रहा है. क्विनोआ चेनोपोडिएसी वानस्पतिक परिवार का सदस्य है जिसका वैज्ञानिक अथवा वानस्पतिक नाम चेनोपोडियम क्विनोआ है। क्विनोआ की उत्पत्ति मूलतः दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला में हुई है। क्विनोआ की विशाल अनुवांशिक विविधता के कारण यह विभिन्न प्रकार की जलवायु की परिस्थितियों में आसानी से सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसी विशेषता के कारण अनुवांशिक की विभिन्न तकनीकों का प्रयोग कर किसी विशेष क्षेत्र हेतु क्विनोआ की नई प्रजाति को सरलता पूर्वक विकसित किया जा सकता है। अजैविक स्ट्रैस को सहन करने की विशेषता के साथ ही साथ क्विनोआ के अंदर मौजूद पोषक तत्व इसकी अर्तराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही माँग एवं प्रसिद्धि का महत्वपूर्ण कारण है।किनुआ मूल रूप से दक्षिण अमेरिका से आया है। इसे एक तरह का अनाज मानते हैं। बहुत मायनों में यह पालक और चुकरकंद की फैमिली में गिना जाता है। दक्षिण अमेरिका में एंडीज क्षेत्र के बोलिविया और पेरू में जहां किनुआ उगाया जाता है, वहां इसे 2013 तक ग़रीबों का आहार माना जाता था। लेकिन, यूरोप और अमेरिका को जब कई खूबियों से भरे इस सुपरफूड की भनक लगी, तो रातोंरात इसके दाम आसमान पर पहुंच गए। महज 5 से 6 साल में इसकी क़ीमतें तीन गुना हो चुकी हैं।गेहूं और चावल की तरह यह भी एक अनाज ही है, जो दक्षिण अफ्रीका से हमारे देश आया है। हांलाकि यह आसानी से उपलब्ध नहीं है, लेकिन इसके बावजूद इसने इंडियन मार्केट में अपनी एक खास जगह बना ली है। दक्षिण अफ्रीका में इसका इस्तेमाल खासतौर पर केक बनाने के लिए किया जाता है।यह ग्लूटन फ्री होता है और इसमें नौ तरह के अमीनो एसिड होते हैं। इसे खाने से प्रोटीन भी ज्यादा मिलता है और इसके अलावा, क्विनोवा में पोटैशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम की भी अच्छी-खासी मात्रा होती है। इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी और कैंसर रोधी गुण भी होते हैं। इसका स्वाद हल्का होता है। इसे लोग नाश्ते, दोपहर के भोजन या फिर रात के खाने में दलिया के रूप में लेना पसंद करते हैं। क्विनोवा में काफी मात्रा में प्रोटीन होता है, जो भूख नियंत्रित कर वजन घटाने में मदद करता है। एक कप क्विनोवा खाने से आठ ग्राम प्रोटीन मिलता है। क्विनोआ एक तरह का बीज है, जो खाने में इस्तेमाल किया जाता है। लोग इसे उपमा, सूप, डोसा, सलाद, खिचड़ी, दलिया आदि में शामिल कर खाना पसंद करते हैं। यह शकाहारियों के लिए सुपरफूड माना जाता है। इसमें काफी ज्यादा प्रोटीन और एंटी ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। यह पेट संबंधी मरीजों के लिए काफी फायदेमंद आनाज है। किनोवा का आटा भी बहुत लाभकारी होता है, इससे केक, पराठे, रोटी बनाया जा सकता है। किनोआ को डाइट में शामिल कर आप कई बीमारियों से बच सकते हैं। इसके सेवन से वजन को कंट्रोल किया जा सकता है। जल की कमी आज पूरे विश्व में एक व्यापक समस्या बन चुकी है। शुष्क एवं अर्ध शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र जहाँ वर्षा कम होती है, वहाँ यह समस्या और भी गंभीर रूप धारण कर लेती है। इसके साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से हो रही वर्षा की कमी एवं अनियमितताओं के कारण सूखे की समस्या में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में करीब 60% खेती बारानी अथवा अर्ध शुष्क कृषि के अंतर्गत आती है। जिस पर देश की 40% जनसंख्या और 60% पशुधन निर्भर है। 20वीं शताब्दी के अंत तक अगर भारत को अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराना है तो हमें इन बारानी क्षेत्रों से कम से कम 60% की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। अतः ऐसी फसलें जो विषम परिस्थितियों में उत्तम उत्पादन देखकर हमारी बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सके, उन्हें बढ़ावा देने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने क्विनोआ को एक ऐसी ही महत्वपूर्ण फसल के रूप में चयनित किया है जिसकी 20वीं शताब्दी के अंत तक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। क्विनोआ भारत ही नहीं, अपितु सारे विश्व के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प है। कम पानी में अधिक पैदावार और पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा ने इसे वर्तमान परिस्थितियों में एक महत्वपूर्ण फसल के रूप में स्थापित किया है। भारत में क्विनोआ की खेती एक लाभप्रद विकल्प है जिसका भविष्य में महत्व और भी अधिक बढ़ने वाला है। क्विनोआ में चावल के मुकाबले अधिक प्रोटीन एवं कम कार्बोहाइड्रेट है। यह अमीनो एसिडस एवं अन्य पोषक तत्व का बेहतरीन एवं संतुलित स्रोत है । क्विनोआ में कीट एवं रोगों का कोई भी विशेष प्रभाव नहीं होता जो इसे जैविक खेती के लिए एक महत्वपूर्ण एवं सरल विकल्प बनाता है। खराब मौसम एवं मिट्टी में अच्छा उत्पादन देने की क्षमताएं क्विनोआ को कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल के रूप में स्थापित करती है। क्विनोआ अपनी इन विशेषताओं के कारण भारत के सभी वर्ग के किसानों एवं शुष्क क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल के विकल्प में सामने आया है। किसानों क्विनोआ को वैकल्पिक फसल के रूप में प्रयोग कर अधिक मुनाफा कमा सकता है और यह भारत के किसानों की आय दोगुनी करने हेतु एक महत्वपूर्ण कदम होगा। स्वाद और ऊपरी चमक-दमक की वजह से चलन से बाहर होने की कगार पर खड़े मोटे अनाज की डिमांड पिछले तीन वर्षों में दोगुना बढ़ गई है। परंतु राज्य गठन के 22 वर्ष बाद भी सरकार और विभागीय प्रयास रकबा बढ़ा पाने में नाकाम रहे हैं। मिलेट्स पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण आज के बदलते परिवेश में हम सबके लिए भी अति आवश्यक हैं। इस तरह के आयोजनों से न केवल मिलेट्स के प्रचार-प्रसार में सहायता मिलेगी बल्कि इनसे उत्तराखण्ड में मोटे अनाज की खेती को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि हमारे लिए बड़े गर्व का विषय है कि भारत के प्रस्ताव और गंभीर प्रयासों के बाद ही संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित किया। भारत के बहुत से राज्यों में मोटे अनाज की खेती प्रचुर मात्रा में होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाली परंपरागत एवं स्थानीय फसलें सिर्फ व्यवसायिक ही नहीं बल्कि औषधीय व पोषण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। कुपोषण को दूर करने व पोषण वाला भोजन तैयार करने में यह काफी मददगार साबित होंगी, लेकिन इन फसलों में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले प्रोटीन की जानकारी न होने के कारण लोग इन्हें अपनाने में परहेज करते हैं। प्रदेश से बाहर इन फसलों का काफी अच्छी मांग है, लेकिन अपने ही राज्य में यह फसलें केवल परंपरागत पहाड़ी व्यंजनों तक सीमित रह गई हैं।

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत  हैं।
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