रीति रिवाजों का एक और रंग सीमांत जनपद पिथौरागढ़, इतिहास और संस्कृति
पिथौरागढ़ जनपद में वनरौत, जनजाति के लोग निवास करते हैं। इनमें से अधिकांश लोग आज भी जंगलों के बीच, समाज से छुपकर रहते हैं। इन लोगों को गाय का दूध दुहना नहीं आता है। ये दूध भी नहीं पीते हैं, यहां तक कि छोटे बच्चे भी नहीं, वे ऐसा करना पाप मानते हैं । उनका मानना है कि मां के दूध पर केवल बछड़े का अधिकार है।
इनके घर में यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो अशुभ मानते हुए ये उस झोपड़ी की छत को तोड़ डालते हैं और स्वयं दूर जाकर रहने लगते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं कि कहीं उस घर में दूसरी मौत न हो जाए।
बनरौत लकड़ी के सुन्दर बरतन बना लेते हैं। जिनको वे अंधेरे में ले जाकर निकट के गांव के किसी घर के दरवाजे के पास रख देते थे। अगली रात को छुपकर आते और उस घर के लोगों द्वारा वहां पर रखा गया मोटा अनाज व पुराने कपड़े ले जाते। इनका व्यापार का यही तरीका था।
मनपसंद विवाह के लिए युवतियों को जंगल से तरूड खोदकर लाने को कहा जाता । जो शीघ्र तरूड ले आती उसका विवाह उसकी पसंद के लडके से किया जाता। लड़के का विवाह होते ही उसे परिवार से अलग कर दिये जाने की परंपरा है ।
बनरौतों को बनराजी भी कहा जाता है। इनका कहना है कि उनका एक भाई अस्कोट का राजा बना और दूसरा वन में अधिक रहता था, जिसको बन का राजा बना दिया गया । उसी के वंशज बनरौत या बनराजी हैंडा दिनेश चंद्र बलूनी।