काली हल्दी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक , डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हल्दी (टर्मरिक) भारतीय वनस्पति है. यह अदरक की प्रजाति का 2-3 फुट तक बढऩे वाला पौधा है जिसमें जड़ की गांठों में हल्दी मिलती है. हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीनकाल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है. औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, वरवर्णिनी, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रिया, हट्टविलासनी, हरदल, कुमकुम आदि नाम दिए गए हैं. आयुर्वेद में हल्दी को एक महत्वपूर्ण औषधि कहा गया है. भारतीय रसोई में इसका महत्वपूर्ण स्थान है और धार्मिक रूप से इसको बहुत शुभ समझा जाता है.हमने आमतौर पर पीले रंग की हल्दी देखी है और उपयोग में भी लेते हंै. परन्तु क्या आपने काली हल्दी के बारे में देखा है या सुना है? हल्दी के प्रजातियों में काली हल्दी बहुत ही दुर्लभ प्रजाति है. काली हल्दी, आम हल्दी की तुलना में काफी अलग दिखती है. सामान्यत: ‘काली हल्दी’ यह झिंगिबेरासी कुल की ही बारहमासी जड़ी बूटी है, जो काले-नीले प्रकंद के साथ पाई जाती है. यह किस्म धीरे-धीरे अपने बेजोड़ औषधीय गुणों के लिए लोकप्रियता बढ़ा रही है. काली हल्दी का पौधा औषधीय गुणों से भरपूर होती है. काली हल्दी का उपयोग कैंसर जैसी दवाइयां बनाने के साथ अन्य दवाइयों में भी इसका प्रयोग होता है इसलिए देश और विदेश में यह बहुत अधिक दामों पर बिकती है. बड़े पैमाने पर इसकी खेती दवाई के लिए तथा सौंदर्य प्रसाधन के सामान बनाने के काम के लिए की जाती है. विदेशी व्यापार में काली हल्दी की मांग बहुत अधिक है. बहुत सी ऑनलाइन रिटेल कम्पनी भी इसे बेचती हैं परन्तु उनकी शुद्धता की जांच नहीं की जा सकती. शुद्ध काली हल्दी के बाजार में दाम बहुत अधिक है. यदि किसान भाई शुद्ध काली हल्दी की खेती करना चाहते है तो उक्त जानकारी इसकी खेती के लिए उपयुक्त है. काली हल्दी का पौधा दिखने में केली के समान होता है, काली हल्दी या नरकचूर याक औषधीय महत्व का पौधा है. जो कि बंगाल में वृहद् रूप से उगाया जाता है.हल्दी (टर्मरिक) भारतीय वनस्पति है. यह अदरक की प्रजाति का 2-3 फुट तक बढऩे वाला पौधा है जिसमें जड़ की गांठों में हल्दी मिलती है. हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीनकाल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है. औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, वरवर्णिनी, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रिया, हट्टविलासनी, हरदल, कुमकुम आदि नाम दिए गए हैं. आयुर्वेद में हल्दी को एक महत्वपूर्ण औषधि कहा गया है. भारतीय रसोई में इसका महत्वपूर्ण स्थान है और धार्मिक रूप से इसको बहुत शुभ समझा जाता है.हमने आमतौर पर पीले रंग की हल्दी देखी है और उपयोग में भी लेते हं हल्दी के प्रजातियों में काली हल्दी बहुत ही दुर्लभ प्रजाति है. काली हल्दी, आम हल्दी की तुलना में काफी अलग दिखती है. सामान्यत ‘काली हल्दी’ यह झिंगिबेरासी कुल की ही बारहमासी जड़ी बूटी है, जो काले-नीले प्रकंद के साथ पाई जाती है. यह किस्म धीरे-धीरे अपने बेजोड़ औषधीय गुणों के लिए लोकप्रियता बढ़ा रही है. काली हल्दी का पौधा औषधीय गुणों से भरपूर होती है. काली हल्दी का उपयोग कैंसर जैसी दवाइयां बनाने के साथ अन्य दवाइयों में भी इसका प्रयोग होता है इसलिए देश और विदेश में यह बहुत अधिक दामों पर बिकती है. बड़े पैमाने पर इसकी खेती दवाई के लिए तथा सौंदर्य प्रसाधन के सामान बनाने के काम के लिए की जाती है. विदेशी व्यापार में काली हल्दी की मांग बहुत अधिक है. बहुत सी ऑनलाइन रिटेल कम्पनी भी इसे बेचती हैं परन्तु उनकी शुद्धता की जांच नहीं की जा सकती. शुद्ध काली हल्दी के बाजार में दाम बहुत अधिक है. इस वनस्पति में में 30 विभिन्न रासायनिक तत्व पाये जाते हैं जिनमे 97% तैलीय तत्व होते हैं जिनमे कपूर (28%), ar-turmerone (12%), (Z)-ocimene (8%), ar-curcumene (7%), 1,8-cineole (5%), elemene (5%), borneol (4%), bornyl acetate (3%) and curcumene (3%) आदि मुख्य घटक हैं।इसके ताजे सुखाए हुए कन्दों को लियोकोडर्मा ,दमा,ट्यूमर,बुखार,बवासीर आदि के उपचार में प्रयुक्त होती है। वैज्ञानिक शोध काली हल्दी के एंटीहायपरग्लाइसीमिक,एंटीमाइक्रोबियल,एंटीपायरेटिक ,लारविसाइडल प्रभावों को बताते हैं।हल्दी की इस वेराइटी को एंडेन्जर्ड स्पेसीज में रखा गया है ।काली हल्दी में पाये जानेवाले तेलीय तत्व एंटिफंगल गुणों से युक्त पाये गये है साथ ही गठिया के दर्द में भी काफी लाभकारी पाये गये हैं ।इसके कन्दों से बनाई गई पेस्ट का प्रयोग डीसेंट्री एवं पुल्टिस का प्रयोग दर्द और सूजन को कम करने में किया जाता है ।आसाम की खमती जनजाति के लोग इसके कन्द से बिच्छु और सांप के काटे में प्रयोग करते हैं।इसमे पाये जानेवाले रासायनिक तत्व कूरकुर्मिनोइड्स एंटीऑक्सीडेंट गुणों से युक्त होते हैं।बड़े पैमाने पर सौंदर्ययुक्त साधन के निर्माण एवं औषधियों के निर्माण में इसका काफी प्रयोग होता है।काली हल्दी के साथ कई टोटके भी जुड़े हुए बताये जाते हैं जिन्हें प्रयोग कर किस्मत बदलने के दावे किये जाते हैं । उत्तराखंड के किसान अब रासायनिक खेती छोड़ धीरे-धीरे ऑर्गेनिक खेती की ओर काम कर रहे हैं। जिससे लोगों तक जैविक उत्पाद पहुंच सकें और लोगों की सेहत के साथ-साथ खेतों की उर्वरा शक्ति भी ठीक हो सके। साथ ही किसानों की आमदनी में भी इजाफा हो सके। ऐसे में हल्द्वानी से सटे गौलापार के रहने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद्र मेहरा ने जैविक खेती के दम पर एक पौधे से करीब 15 किलो काली हल्दी का उत्पादन करने का दावा किया है। इतनी बढ़ी मात्रा में हल्दी का उत्पादन क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे पहले किसान नरेंद्र मेहरा के द्वारा विकसित किए गए गेहूं की उन्नत प्रजाति नरेंद्र 09 को भारत सरकार ने मान्यता दी है। नरेंद्र 09 को 2017 में पेटेंट किया गया था, तकरीबन साढे़ चार साल बाद भारत सरकार ने नरेंद्र 09 को किसान नरेंद्र मेहरा के नाम रजिस्टर कर दिया। लंबे समय से जैविक खेती के लिए काम कर रहे नरेंद्र मेहरा वर्षा आधारित धान बीज पंत-12 में गोंद कतीरा तकनीक के प्रयोग के साथ ही ऑर्गेनिक आलू और अदरक की पैदावार भी कर चुके हैं। खेती में सफल प्रयोग और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए नरेंद्र मेहरा को राज्य सरकार के साथ कई अन्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। इम्यूनिटी बूस्टर के तौर पर भी इसका उपयोग किया जाता है. आपको बता दें कि सामान्य पीली हल्दी 60 से 100 रुपये प्रति किलो के भाव में बिकती है. लेकिन काली हल्दी की कीमत 500 से 4,000 रुपये या इससे ज्यादा भी पहुंच जाती है. सबसे बड़ी बात ये कि मौजूदा समय में काली हल्दी बड़ी मुश्किल से मिलती है.
लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।