*उत्तराखण्ड के आईपीएस अमित श्रीवास्तव के उपन्यास ‘गहन है अंधकारा’ में हत्या की तफ़्तीश और सामाजिक-प्रशासनिक जटिलताओं का गहरा अवलोकन*
उत्तराखण्ड राज्य में आईपीएस अधिकारी श्री अमित श्रीवास्तव का उपन्यास ” गहन है अंधकारा” एक हत्या की तफ्तीश के इर्द-गिर्द बुनी गई कहानी है, जो केवल एक अपराध को सुलझाने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह समाज के विभिन्न पहलुओं और पुलिस विभाग की जटिलताओं का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। उपन्यास में हत्या की तफ्तीश के माध्यम से लेखक ने न केवल पुलिस महकमे के कार्यप्रणाली को उजागर किया है, बल्कि समाज की उन चारित्रिक विशेषताओं को भी चित्रित किया है, जो सभी विभागों और कार्यालयों को आकार देती हैं।
उपन्यास की कहानी पुलिस के जांचकर्ताओं और उनके सामने उठने वाली चुनौतियों के चारों ओर घूमती है। यहाँ पुलिस कर्मचारी सिर्फ़ अपराधियों की तलाश में नहीं हैं, बल्कि वे उन सामाजिक तंतुओं और कमजोरियों का सामना भी कर रहे हैं, जो हर कदम पर उन्हें रोकती हैं। उपन्यास के पात्र अपने-अपने व्यक्तिगत स्वार्थों और भ्रांतियों से जकड़े हुए हैं, जिससे वास्तविकता को देखने में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। इस प्रकार, कार्यपालिका के अंदरूनी मामलों का चीर-फाड़ करना समाज की जटिलताओं को उजागर करता है।
श्रीवास्तव की भाषा, जो तेज़-धार औजार की मानिंद है, हमारे दृष्टिकोण को व्यापक बनाती है। यह भाषा न केवल घटना की सच्चाई को बयान करती है, बल्कि पाठक को भी उस सामाजिक व्यवस्था की परतों के भीतर झांकने का मौका देती है, जो अक्सर अनदेखी रहती है। उपन्यास के संवाद और आख्यान शैली हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने आस-पास की चीज़ों को कितनी सतही दृष्टि से देखते हैं। इस प्रकार की भाषा उन सभी ‘नागरिक’ चालाकियों को बेनकाब करती है, जो हमें यथार्थता से दूर ले जा सकती हैं।
दूसरी ओर, ” गहन है अंधकारा” उपन्यास एक रूपक के रूप में भी कार्य करता है जो यह सवाल उठाता है कि क्या हम समाज के छिपे हुए सच को जानने की कोशिश कर रहे हैं या फिर हमें जानकारी की सतह के पास ही रहना अधिक सुविधाजनक लगता है। यह प्रश्न न केवल पुलिस विभाग के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, बल्कि सामान्य जीवन में भी प्रासंगिकता रखता है।
अमित श्रीवास्तव का ” गहन है अंधकारा” एक अधूरे समाज की कहानी है, जो ढूंढता है सच्चाई को उस अंधेरे में, जहाँ हत्या की तफ्तीश सिर्फ़ एक बाहरी घटना नहीं, बल्कि एक गहन सामाजिक अनुमति और पहचान का प्रतीक है। यह उपन्यास पाठकों को सिखाता है कि अपने चारों ओर के अंधकार को समझना और उस पर विचार करना न केवल आवश्यक है, बल्कि यह हमारे सामाजिक विवेक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।
*फुलवारी में ‘गहन है अंधकारा’ पर साहित्यिक विमर्श*
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‘गहन है अंधकारा’ उपन्यास पर रविवार शाम को फुलवारी में एक सारगर्भित चर्चा आयोजित की गई। यह कार्यक्रम, जिसमें लगभग 50 श्रोता शामिल हुए, हर माह किसी विशेष पुस्तक पर चर्चा करने की परंपरा का हिस्सा है। मंच पर साहित्यकार अनिल रतूड़ी, जो स्वयं पूर्व डीजीपी रह चुके हैं, और श्रीमती विद्या सिंह ने उपन्यास के लेखक अमित श्रीवास्तव से तमाम सवाल पूछे। तीस मिनट बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि उपन्यास में क्या है।
अमित श्रीवास्तव का यह उपन्यास, वर्तमान समय में चर्चा का विषय बना हुआ है, न केवल इसके साहित्यिक गहराई के कारण, बल्कि इस बात के कारण भी कि लेखक स्वयं एक पुलिस अधिकारी हैं। चर्चा के दौरान कई श्रोताओं ने अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं, यह बताते हुए कि उपन्यास में वास्तविकता का चित्रण अत्यंत सटीकता के साथ किया गया है। इस चर्चा में भाग लेते हुए लेखकों ने अमित श्रीवास्तव की साहित्यिक विधा को गहरा बताया। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पहली बार उनकी कृति पढ़कर साहित्यिक गहराई को पूरी तरह से समझना कठिन हो गया। इस बात पर सहमति जताते हुए, अनिल रतूड़ी ने यह स्पष्ट किया कि पुलिस में अंधकार होने का अस्तित्व नहीं है। उन्होंने यह विचार भी प्रस्तुत किया कि समाज के अन्य क्षेत्रों में भी अंधकार है, लेकिन यह धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। देहरादून में फुलवारी, जो उत्तराखंड की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी एवं अनिल रतूड़ी का निवास स्थान है, इस कार्यक्रम के दौरान रंग-बिरंगे फूलों से महक रहा था। मार्च के उत्तरार्द्ध में यहाँ के पुष्प वातावरण को और भी रमणीय बना रहे थे। इस छोटे से घर में जब अतिथियों का आगमन होता है, तो आकृष्ट माहौल में जीवन की विभिन्नताएँ अनुभव की जा सकती हैं।
*प्रोफ़ेसर बटरोही की समीक्षा एवं अल्मोड़ा के साहित्यिक मंच पर ‘गहन है अंधकारा’ की प्रशंसा*
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2020 में सुप्रसिद्ध हिंदी के विद्वान प्रोफेसर बटरोही ने इस उपन्यास की समीक्षा करते हुए इसके कई पहलुओं पर प्रकाश डाला है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ” गहन है अंधकारा” केवल एक कहानी नहीं, बल्कि विचारों का एक समृद्ध संसार है। प्रो.बटरोही ने इस उपन्यास में प्रस्तुत विभिन्न चरित्रों की गहराई को सराहा है। उन्होंने कहा है कि लेखक ने पात्रों के माध्यम से मानव मन की जटिलताओं का सुन्दर चित्रण किया है। पाठक को यह अनुभव होता है कि वह स्वयं भी उन परिस्थितियों का सामना कर रहा है, जिनसे चरित्र गुजरते हैं। इस प्रकार, अमित श्रीवास्तव ने पाठक को केवल एक बाहरी दृष्टिकोन से नहीं, बल्कि आंतरिक अनुभव के माध्यम से कथानक में लाने का प्रयास किया है।
2019 में अल्मोड़ा में आयोजित एक साहित्यिक कार्यक्रम में कई अन्य साहित्यकारों और लेखकों ने भी “गहन है अंधकारा” की शान में कसीदे पढ़े। उन्होंने इस उपन्यास को न केवल भाषा की सौंदर्यपूर्णता के लिए, बल्कि उसकी विषयवस्तु और भावनात्मक गहराई के लिए भी सराहा। यह उपन्यास समाज में व्याप्त अंधकार और मनःस्थिति के संघर्ष को उजागर करता है, जो कि आज के समय की एक प्रासंगिक आवश्यकता है।
अमित श्रीवास्तव की लेखनी में एक विशेष प्रकार की ताजगी है, जो युवा पाठकों को आकर्षित करती है। उन्होंने अनूठे स्वरुप और वास्तविकता की गहराई में जाकर उन मुद्दों पर काम किया है, जो आज के समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं। “अंधकारा” में भौतिक और मानसिक अंधकार के विषय पर गहराई से विचार किया गया है, जो पाठक को अपनी दैनिक जंगी में देखना पड़ता है।
*शीशपाल गुसाईं , फुलवारी में!*
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