उत्तराखंड में वन भूमि पर काबिज अतिक्रमण पर चलेगा शासन का डंडा,दोषियों पर मुकदमे भी होंगे दर्ज,,,
उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में धार्मिक आधार पर मजार, कब्रिस्तान, मंदिर व मस्जिदों आदि के लिए बड़े पैमाने पर कब्जा किए जाने की बात इन दिनों प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में हैं। राज्य सरकार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में इस पर गंभीर है और इस संबंध में मुख्यमंत्री धामी ने वनाधिकारियों को कड़े निर्देश दिए गए हैं। इस संबंध में मुख्यमंत्री धामी ने अपने प्रमुख सचिव, वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी, वन संरक्षक डॉ. पराग मधुकर धकाते को नोडल अधिकारी बनाया है। न वन भूमि पर कब्जे को लेकर डॉ. धकाते से सीधी बात की तो कई सनसनीखेज खुलासे हुए। जैसे यह कि राज्य में वर्ष 2017 से 2020 के बीच में लगभग 2000 हैक्टेयर वन भूमि पर कब्जे किए गए हैं। यह भी बड़ा खुलासा हुआ है कि वन भूमि पर वर्ष 2020 के बाद और खासकर धार्मिक आधार पर हुए कब्जों के बारे में वन विभाग को कोई जानकारी नहीं है। अब इस बारे में पूरी जानकारी एकत्र की जा रही है। इस तरह राज्य में चल रही मुहिम का धार्मिक आधार पर अतिक्रमण हटाने से कोई सीधा संबंध नहीं है, बल्कि / यह वन भूमियों पर हर तरह के अतिक्रमण से मुक्त करने की मुहिम छेड़ी है।
डॉ. धकाते ने बातचीत में यह बड़ा खुलासा किया कि वर्ष 2017 की रिपोर्ट में पूरे उत्तराखंड में 9,400 हैक्टेयर वन भूमि पर कब्जा किया गया था, जबकि मार्च 2020 की रिपोर्ट में लगभग 2000 हैक्टेयर क्षेत्रफल में कब्जा बढ़ गया है। उन्होंने यह भी बताया कि 2017 में रामनगर के जिम कॉर्बेट पार्क क्षेत्र का 0.40 हैक्टेयर अतिक्रमित था, जबकि विभागीय संलिप्तता या लापरवाही या लोगों की कब्जे की सुनियोजित साजिश के कारण मार्च 2020 में यहां 9 हैक्टेयर क्षेत्रफल पर कब्जा हो गया।
यानी केवल तीन वर्षों में जिम कॉर्बेट पार्क के पर्यटन गतिविधियों वाले क्षेत्र में साढ़े आठ हैक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल पर कब्जा बढ़ गया है। इनमें आमडंडा व चोरपानी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हुए कब्जे भी शामिल हैं। अलबत्ता डॉ. धकाते ने साफ किया कि अभी वन विभाग के पास इनमें से धार्मिक आधार पर किए गए अतिक्रमणों के बारे में कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। यह जरूर है कि पुलिस एवं एलआईयू आदि के पास इस संबंध उन्होंने यह भी साफ किया है कि मार्च 2020 के बाद वन भूमि पर कब्जों के बारे में कोविड की परिस्थितियों व अन्य कारणों से वन विभाग की कोई रिपोर्ट नहीं आई है। अब वन विभाग नई मुहिम के तहत देखेगा कि वन भूमि पर कब्जों की वर्तमान स्थिति क्या है और यह वृद्धि किस तरह हुई है। मजारों आदि के अतिक्रमण से संबंधित मीडिया में आई रिपोर्टों के आधार पर भी संबंधित प्रभागीय वनाधिकारियों को रिपोर्ट देने को कहा गया है।
डॉ. धकाते ने बताया कि पूरे उत्तराखंड में वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए रणनीति तैयार की जा रही है। इस संबंध में संबंधित प्रभागीय वनाधिकारियों को वन अधिनियम की अतिक्रमण संबंधित सुसंगत धाराओं में कड़ी कार्रवाई करने व अतिक्रमण हटाने के लिए निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि राज्य की वन भूमियों में तीन तरह के अतिक्रमण हैं। पहला, 1980 से पूर्व के कुछ अतिक्रमण हैं। यह अतिक्रमण विनियमितीकरण के दायरे में भी आते हैं।
इनमें यह देखना है कि लीज की अवधि होने के बाद भी कितने कब्जे बरकरार हैं। दूसरा, कुछ लोग व्यक्तिगत तौर पर वन भूमि में अतिक्रमण किए हुए हैं। तीसरा धार्मिक आधार पर अतिक्रमण किया गया है । तीनों तरह के अतिक्रमणों का चिन्हित किया जा रहा है। इनमें से विनियमितीकरण के दायरे में आने वाले कब्जों पर शासन को निर्णय लेना है। जबकि अन्य तरह के अतिक्रमणों को पूरी तरह से हटाया जाना है। ऐसे मामलों में वन भूमि पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ मुकदमे भी पंजीकृत किए जाएंगे