** लायन्स क्लब के तत्कालीन अंतरराष्ट्रीय चेयरमैन जेनिस रोज ने कहा था इसे दुनिया का 9 वां अजूबा **
*मध्य प्रदेश के सिंगरौली का बुधेला गांव का वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल *
मैं आपको ऐसी कला के बारे में बता रही हूं जिसकी कल्पना आपने कभी नहीं की होगी। यह हुनर देख आप कह उठेंगे अद्भुत, अकल्पनीय और अविश्वसनीय।
यहां बात हो रही है देश के दिल यानि मध्य प्रदेश की।
जी हां यहां बात हो रही है एमपी के सिंगरौली के छोटे से गांव बुधेला के वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल की। जिसकी स्थापना विरंगद शर्मा ने 8 जुलाई 1999 को की थी।
जेनिस रोज ने कहा था इसे 9वां अजूबा —-
लायंस क्लब के तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय चेयरमैन जेनिस रोज 2004-05 में बुधेला गांव अमेरीका से अपने जापानी मित्रों के साथ पहुंचे थे। तीन दिन रहने के बाद बच्चों को अपने साथ बनारस ले गए थे। जहां एक समारोह में इन बच्चों के हुनर को दिखाया गया। समारोह को संबोधित करते हुए रोज ने कहा था कि भारत में दुनिया का यह 9वां अजूबा है।
प्रथम राष्ट्रपति से मिली प्रेरणा और स्वयं का प्रयास—–
बेढ़न शहर से करीब 20 किमी. दूर स्थित बुधेला गांव में इस विद्यालय की नींव एक सोच के साथ रखी गई थी। गांव के निवासी वीरंगद शर्मा जबलपुर में आर्मी की ट्रेनिंग कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि,- एक दिन रेलवे स्टेशन पर एक पुस्तक में उन्होंने पढ़ा कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद दोनों हाथ से लिखते थे। ऐसा कैसे हो सकता है इस जिज्ञासा ने विद्यालय की नींव रखने की प्रेरणा दी। खुद प्रयास किया लेकिन अधिक सफल नहीं हुए तो बच्चों पर प्रयोग आजमाया जो सीखने में अव्वल निकले। अब सभी छात्रों की दोनों हाथ से एक साथ लिखने की कला विशेषज्ञता बन गई है।
छोड़ी सेना की नौकरी– ——-
इस अजीबोगरीब चीजों के बारे में पता चलते ही जिज्ञासा बढ़ती गई और वीरंगद ने आखिरकार आर्मी की नौकरी छोड़ दी। इसके बाद बैढऩ से एलएलबी किया। पर अपने जुनून को मुकाम तक पहुंचाने के लिए कभी कोर्ट कचहरी नहीं गए बल्कि स्कूल की स्थापना की।
एक बच्चा 11 घंटों में लिख सकता है 24,000 शब्द
आज वीणा वादिनी स्कूल में लगभग 200 बच्चे पढ़ते हैं और हर बच्चे के पास दोनों हाथों से लिखने का हुनर है। सिंगरौली आज 44 वर्षीय शिक्षक विरंगद प्रसाद शर्मा और उनके वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल के लिए जाना जाता है।
वीणा वादिनी में क्लास-1 से ही छात्रों को दोनों हाथों से लिखने की ट्रेनिंग दी जाती है, जब तक वह क्लास-3 में पहुँचते हैं, दोनों हाथों से लिखने में सहज महसूस करने लगते हैं। क्लास-7 और 8 तक आते-आते स्टूडेंट्स की स्पीड और एक्युरेसी बढ़ जाती है।
हर बच्चे को याद है 2 से 100 तक का पहाड़ा —
यह स्कूल केवल 8वीं कक्षा तक ही है, परंतु यहाँ के बच्चों का यह हुनर किसी भी बड़े शहर के स्कूली बच्चों से कहीं अधिक जबरदस्त है। यहाँ हर बच्चे को 2 से 100 तक के पहाड़े याद हैं जिनको वो आसानी से बोल जाते हैं।
स्कूल का समय सुबह 7 बजे से दोपहर 2 बजे तक का है, परंतु उससे पहले 2 घंटे का योग कराया जाता है, जिससे बच्चे अपने मन को एकाग्र चित्त करना सीखें।
कम्प्यूटर से भी तेज रफ्तार ——
वर्तमानमें विद्यालय में अध्ययनरत करीबे दो सौ बच्चे दोनों हाथ से एक साथ लिखने की कला में पारंगत हो चुके हैं। कम्प्यूटर के की बोर्ड से भी तेज रफ्तार से उनकी कलम चलती है। जिस कार्य को सामान्य बच्चे आधे घंटे में पूरा कर पाते उसे वह मिनटों में निपटा देते है।
दो भाषाओं में एक साथ लेखन ——
दिमाग और नजरों से इतने मजबूत हैं कि दोनों हाथ से हिन्दी-अंग्रेजी या उर्दू-रोमन अर्थात दो भाषाओं में एक साथ लिखकर हैरत में डाल देते हैं।
बच्चे को एक साथ दो लिपियों में लिखने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। यानी स्कूल का हर बच्चा एक साथ अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में लिख सकता है। दोनों हाथ से लिखने के कारण सभी बच्चों का मानसिक विकास तेजी से होता है, जहाँ आम तौर पर किसी लेख को लिखने में एक बच्चे को घंटों लगते हैं, वहीं वीणा वादिनी स्कूल के बच्चे लगभग आधे समय में लेख पूरा कर लेते हैं।
बच्चों को है 6 भाषाओं ज्ञान –
स्कूल कक्षा 1 से 8 तक की पढ़ाई होती है। नन्हें हाथ देवनागरी लिपि, उर्दू, स्पेनिश, रोमन, अंग्रेजी सहित छह भाषाओं में लिखते हैं। दोनों हाथों से लिखने का कम्पटीशन होता है जिसमे औसतन एक बच्चा 11 घंटे में 24000 शब्द लिखने की क्षमता रखता है।
250 शब्दों का ट्रांसलेशन ————-
45 सेकंड में उर्दू में गिनती, 1 मिनट में रोमन में गिनती, 1 मिनट में देवनागरी लिपि में गिनती, 1 मिनट में देवनागरी लिपि में पहाड़ा और 1 मिनट में दो भाषाओं के 250 शब्दों का ट्रांसलेशन कर देते हैंं।
वीणा वादिनी स्कूल में आसपास से पोड़ी, बुधेला, पिपरा झांपी, नौगई, डिग्घी, बिहरा, राजा सर्रई आदि गांव के बच्चे यह कला सीख रहे हैं।
32000 शब्द लिखने की क्षमता ——–
वीरंगद को विद्यालय के संचालन के दौरान पता चला कि नालंदा विश्वविद्यालय के छात्र औसतन प्रतिदिन 32000 शब्द लिखने की क्षमता रखते थे। इस पर पहले भरोसा करना कठिन था लेकिन इतिहास को खंगाला तो कई जगह इसका उल्लेख मिला। इसी से सीख लेकर बच्चों की लेखन क्षमता बढ़ाने का प्रयास शुरु किया और अब आलम यह है कि 11 घंटे में बच्चे 24 हजार शब्द लिख डालते हैं। वीरगंद शर्मा ने देश के पुराने इतिहास को वर्तमान में सार्थक करने की ठान ली है। जो पूरा होता नजर आ रहा है।
करीब दो सौ बच्चे करते हैं अदभुत लेखन —–
वीरंगद बताते हैं कि बच्चों पर ज्यादा बोझ नहीं पड़े और रुचि भी बनी रहे, इसलिए पहले धीरे-धीरे दोनों हाथों से लिखने की कला सिखायी। वह घर जाते तो चर्चा करते। अभिभावक आते तो उनको समझाना पड़ता। कुछ ही सालों में क्षेत्र के लोग इस कला को लेकर आकर्षित हो गए।
आसान नहीं था इस कला को जीवंत करना —–
वीरगंद शर्मा कहते हैं कि स्कूल खोलकर दोनों हाथों से लिखने की कला बच्चों को सिखाएंगे यह अभिभावकों से शुरुआत दौर में नहीं बताया था। उन्हें डर था कि शायद अभिभावक इसे फितूर समझकर बच्चों को विद्यालय नहीं भेजेंगे। स्कूल मेें प्रथम सत्र में सामान्य बच्चों की तरह पढऩे पहली बार महज 13 बच्चों ने प्रवेश लिया। उन्हीं से शुरु हुआ यह सफर अब नए मुकाम की ओर है।
आज वे देश और दुनिया को नालंदा विश्वविद्यालय की धरोहर को बताने में जुटे हैं।
संसाधनों के अभावों में पलती प्रतिभा ———–
यह कोई सरकारी स्कूल नहीं है इसलिए इस स्कूल का कोई भवन नहीं है बल्कि कुछ कक्षाएं तो पेड़ के नीचे लगाई जाती है। और बच्चों को बैठने के लिए टाट पट्टी होती है।
संसाधनों के हिसाब से दिल्ली, मुंबई सहित देश के किसी भी महानगर के पब्लिक स्कूल का यह विद्यालय मुकाबला चाहे भले नहीं कर पाए पर यहां की प्रतिभा सभी को मात दे रही है।
स्कूल का संचालन शर्मा परिवार के दो सदस्य करते हैं।
वास्तव में इन बच्चों पर माँ वीणा वादिनी का वरदान है, जो वे इतनी सरलता और कुशलता से अपने दोनों हाथों से दो अलग-अलग भाषाओं में लिखने का हुनर सीख रहे हैं। बच्चों के इस सफलता का श्रेय पूर्व सैनिक विरंगद प्रसाद शर्मा को जाता है, जिन्होंने अपने भविष्य की चिंता किए बिना इन बच्चों को शिक्षित करने का सराहनीय कार्य किया है।
स्त्रोत — गूगल बाबा
धन्यवाद। 🙏