जोशीमठ आपदा (भूधंसाव) को एक माह हो चुका है और अभी तक भी लार्ज स्केल कंटूर मैपिंग चुनौती बना है। आइटीडीए ने ड्रोन से सर्वे कर कंटूर मैपिंग की है। आइटीडीए निदेशक नितिका खंडेलवाल के अनुसार, जोशीमठ रेड जोन में आता है। ऐसे में ड्रोन को अधिक ऊंचाई से उड़ाया गया।ऐसे में संभव है कि तस्वीरें उतनी स्पष्ट न मिलें। वहीं, आपदा प्रबंधन सचिव की बैठक में यह बात भी सामने आई कि लार्ज स्केल कंटूर मैपिंग के लिए लिडार तकनीक से सर्वे किया जाएगा। यह काम सर्वे ऑफ इंडिया या किसी निजी एजेंसी को दिया जा सकता है।जोशीमठ प्रकृति के साथ मानव का जिस तरह का व्यवहार है, उसका परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना पड़ेगा । लगातार पिछले दो दशक से दुनिया के देशों में ग्लोबल वार्मिंग की घटनाएं देखी गई,जिसमें इस समय वर्षा के साथ साथ जिन स्थानों में सूखा मरुस्थल स्थान है वहां पर ओलावृष्टि की घटनाएं देखी गई। जलवायु परिवर्तन की घटनाएं भारत में सबसे पहले लद्दाख में देखी गई,जिसे सरकार ने माना कि और घटना जलवायु परिवर्तन के कारण हुई है उत्तराखंड के 2013 में केदारनाथ की आपदा की घटनाएं भी जलवायु परिवर्तन की इर्द-गिर्द घूमती दिखती है अत्यधिक पर्यटन विकास के दबाव में हिमालय में लगातार मीथेन गैस ,कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ना तापमान का बढ़ना प्लास्टिक कचरे के कारण हिमालय में प्रदूषण फैलना इन घटनाओं के कारण के कारण जलवायु में परिवर्तन देखा गया है । जोशीमठ के रैणी मैं ऋषि गंगा पर ग्लेशियर टूटने की घटना 7 फरवरी 2021 को उस समय हुई थी जोशीमठ के इलाके में शानदार धूप खिली हुई थी । उस समय रोगटी नामक ग्लेशियर का कुछ हिस्सा टूट गया था जिसके कारण ऋषि गंगा और धौलीगंगा में बाढ़ की हालत पैदा हो गई थी । और गंगा पांवर प्रोजेक्ट पूर्व से मिट्टी में मिल गया था इसमें कई लोगों की जानें गई जिन्हें आज भी मुआवजा नहीं मिल पाया वही बिष्णुगाढ़ तपोवन 520 मेगावाट जल विद्युत परियोजना की मुख्य डायवर्जन टनल में 280 लोगों की अकाल मृत्यु हो गई थी । आज तक उनकी लाशे मिल रही है इसी तरह जोशीमठ में भी जिस तरह से भूधंसाव की घटना 2 जनवरी 2023 के आसपास बढी है। पिछले 3 महीने से अधिक समय हो गया था। जोशीमठ में वर्षा नहीं हो पायी थी सूखे में जोशीमठ का दरकना यह सिद्ध करता है कि कहीं ना कहीं हम लोगों ने प्रकृति के साथ अत्यधिक छेड़छाड़ कर दिया है। जोशीमठ में जहां अत्यधिक दबाव मानव निर्मित भवन बड़े-बड़े जल विद्युत परियोजनाओं के लिए निर्मित होने वाले भवन टनल उनमें होने वाली अत्यधिक विस्फोटक सामग्रियों का प्रयोग इन्होंने पहाड़ को कमजोर करने का काम किया इतना ही नहीं जोशीमठ मैं भारतीय सेना का ब्रिगेडियर हेड क्वार्टर स्थित है पहले यहां पर सेना के द्वारा अपने कर्मचारी एवं फैमिली क्वार्टर के लिए टीन के बने भवनो का उपयोग किया जाता रहा था विगत 3-4वर्षों से लगातार सीमेंट की मकानों का बनना आर्मी के द्वारा भी जारी रखा गया इतना ही नहीं बड़े-बड़े औद्योगिक रूप से संचालित जोशीमठ के होटलो के कारण भी जोशीमठ में अत्यधिक पानी का उपयोग चारधाम यात्रा के कारण अत्यधिक गाड़ियों का चलना के साथ-साथ जोशीमठ में ड्रेनेज सिस्टम का विकसित न होना सीवरेज लाइन का विधिवत रूप से न बन पाना मुख्य बड़ा कारण है इसके साथ जोशीमठ में जिस तरह से होटल मकान के लिए बगीचों एवं पेड़ों का कटान लगातार चलता रहा इसका भी एक बड़ा कारण यहां के विनाश का कारण हो सकता है जोशीमठ पर जि। जोशीमठ के होटलो के कारण भी जोशीमठ में अत्यधिक पानी का उपयोग चारधाम यात्रा के कारण अत्यधिक गाड़ियों का चलना के साथ-साथ जोशीमठ में ड्रेनेज सिस्टम का विकसित न होना सीवरेज लाइन का विधिवत रूप से न बन पाना मुख्य बड़ा कारण है इसके साथ जोशीमठ में जिस तरह से होटल मकान के लिए बगीचों एवं पेड़ों का कटान लगातार चलता रहा इसका भी एक बड़ा कारण यहां के विनाश का कारण हो सकता है जोशीमठ पर जिस तरह लगातार मकानों में दरारें खेतों में दरारें देखी गई है इस घटना के लिए मानव स्वयं जिम्मेदार है जोशीमठ में 868 घरों पर दरारें देखी गई है और सरकार के द्वारा 181 से अधिक घरों को पूर्ण रूप से असुरक्षित घोषित किया गया है वहीं पूर्व में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में भी तापमान के तेजी से बढ़ने पर पूरा विश्व चिता कर चुका है। 2030 तक पृथ्वी के पारे में 2.7 डिग्री तक बढ़ोतरी होने की आशंका है।कभी पहाड़ों में मौसम अनुकूल रहता था। गर्मियों में मौसम सुहावना और पारा भी बहुत अधिक नहीं चढ़ता था। लेकिन अब लगातार जलवायु परिवर्तन से मौसम पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। मौसम विभाग की मानें तो इस बार मार्च में पारा सामान्य से चार से पांच डिग्री तक बढ़ा है। मार्च समाप्ति तक यह सामान्य से आठ डिग्री तक भी बढ़ सकता है। जबकि अप्रैल और मई की बात करें तो इन दो महीनों में भी तापमान सामान्य से अधिक रहेगा। उधर पिछले वर्ष स्काटलैंड में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में भी जलवायु परिवर्तन से मौसम में हो रहे बदलाव को लेकर जलवायु परिवर्तन को लेकर विश्व बिरादरी भी काफी चितित है। इससे पूरे विश्व में ही तापमान में लगातार बढ़ोतरी के साथ ही विभिन्न समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में हो रहे जलवायु परिवर्तन पर किए गए शोध में 2030 तक पृथ्वी के तापमान में 2.7 डिग्री तक बढ़ोतरी होने की आशंका है। सम्मेलन में इसे नियंत्रित कर 1.5 से 2 डिग्री पर रोकने के प्रयास करने पर चर्चा हुई थी। तकनीक बढ़ने से पहले मिल जाती है सटीक जानकारी जलवायु परिवर्तन हिमालयी क्षेत्रों के ग्लेशियरों की सेहत के लिए चिंता का सबब बनता दिख रहा है। उत्तराखंड के ग्लेशियर भी इससे अछूते नहीं हैं। यहां के ग्लेशियर प्रतिवर्ष 10 मीटर की औसत दर से पीछे खिसक रहे हैं। इसी तरह से जोशीमठ के अलावा उत्तराखंड के कई अन्य गांव है यहां पर लगातार भूस्खलन की घटनाएं बढ़ती जा रही है जिसमें 2013 की आपदा के बाद जोशीमठ के ही उरगम देवग्राम, गीरा, वांशा, गणाई,दाडमी, गांव की काफी हालत खराब है मकानों पर दरारे लगातार बढ़ती जा रही है हर वर्ष आपदा की घटनाएं बढ़ती जा रही है जहां बुग्यालओ मैं भी कटाव होता जा रहा है इन घटनाओं को व्यवस्थित रूप से अध्ययन के साथ सरकार के द्वारा सही नियोजन का भाग नहीं बनाया गया तो आने वाले समय में गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा क्षेत्रों में यहां की जलवायु और यहां की भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर ही यहां के विकास की योजनाएं बनाई जानी चाहिए हिमालय क्षेत्रों में अति संवेदन शिलता के साथ विकास को नया स्वरूप दिया जाना चाहिए प्रकृति का बैलेंस है यदि उसको नजरअंदाज किया तो इसका खामियाजा मानव को लंबे समय तक भोगना पड़ेगा। जोशीमठ एक चेतावनी भी दे रहा है कि इस भोगवादी पूंजीवादी विकास मॉडल के इतर, स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित विकास मॉडल विकसित किया जाये। ।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।