केरल : केरल में इस मंदिर में हर साल होने वाले ‘चमयाविलक्कू उत्सव में पुरुष ठीक महिलाओं की तरह साड़ी और गहने पहनते हैं. आमतौर पर मंदिर परिसर में ही परिवर के अन्य सदस्य या मेकअप आर्टिस्ट पुरुषों को तैयार करते हैं. सवाल है कि आखिर क्यों पुरुष, स्त्री का रूप धारण कर पूजा करते हैं? इसके पीछे की वजह यहां की लोक कथाओं से पता चलता है.
केरल के कोल्लम जिले में स्थित कोट्टंकुलंगार श्री देवी मंदिर मे आयोजित होने वाला ‘चमयाविलक्कू उत्सव’ शायद दुनिया में अपनी तरह का एकमात्र ऐसा त्योहार है, जहां पुरुष पारंपरिक महिलाओं की पोशाक में तैयार होते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. दो साल में यह पहली बार था जब जनता की भागीदारी के साथ चमयाविलक्कू उत्सव आयोजित किया गया था. कोरोना महामारी की वजह से साल 2020 और 2021 में वार्षिक उत्सव को रद्द कर दिया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल भक्तों की संख्या कोरोना काल से पहले की तुलना में कम थी, लेकिन विभिन्न आयु समूहों के सैकड़ों पुरुषों ने महिलाओं के रूप में इस उत्सव में भाग लिया. मंदिर के अधिकारियों के अनुसार प्री-कोविड समय में प्रतिभागियों (स्त्री बनने वाले पुरुष) की संख्या 3000-4000 तक थी.
इस मौके पर पुरुष ठीक महिलाओं की तरह साड़ी और गहने पहनते हैं. आमतौर पर मंदिर परिसर में ही परिवर के अन्य सदस्य या मेकअप आर्टिस्ट पुरुषों को तैयार करते हैं.
महिलाओं की ही तरह पुरुष करते हैं मेकअप
विधि-विधान से होती है पूजा
तैयार होने के बाद यात्रा निकाली जाती है, जिसमें पुरुष हाथ में पांच बत्ती से जलाया गया दीपक रखे हुए होते हैं. बता दें कि चमयाविलक्कु का शाब्दिक अर्थ है श्रृंगार प्रकाश यानी पांच बत्ती से जलाया गया दीप.
प्राचीन मान्यताएं
ऐसी मान्यता है कि महिलाओं का रूप धारण कर पूजा करने से उन्हें नौकरी, धन आदि की प्राप्ति होगी. यानी जो भी मनोकामना होगी, वह पूर्ण होगी. वैसे इस उत्सव के पीछे की कई स्थानीय लोक कथाएं भी प्रचलित हैं. एक लोक कथा के अनुसार, एक बार कुछ चरवाहों ने एक नारियल को जंगल में मिले पत्थर पर मारकर तोड़ने की कोशिश की, लेकिन पत्थर से खून की बूंदे टपकने लगी. वे डर गए और गांववालों को बताया.
बाद में, स्थानीय लोगों ने ज्योतिषियों से परामर्श किया. ज्योतिषियों ने कहा कि पत्थर में वनदुर्गा की अलौकिक शक्तियां हैं और मंदिर के निर्माण के तुरंत बाद पूजा शुरू की जानी चाहिए. इसलिए गांववालों ने उस जगह पर एक मंदिर का निर्माण किया.
कोट्टंकुलंगार श्री देवी मंदिर
उन दिनों से केवल युवा लड़कियों को ही यहां फूलों की माला और दीपक जलाने की अनुमति थी. बाद में स्थानीय गाय चराने वाले पुरुष महिलाओं और लड़कियों रूप धारण कर मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे. इस तरह पुरुषों और लड़कों को महिलाओं और लड़कियों के रूप में तैयार करने की परंपरा शुरू हुई.इन दिनों चमयाविलक्कू भी ट्रांसपर्सन का त्योहार है क्योंकि अब कई समुदाय के सदस्य उत्सव में शामिल होते हैं.