जानिए – यमकेश्वर डांडामण्डल – कौड़िया- किमसार मोटर मार्ग के लिये हुए विशाल जन आंदोलन का स्वर्णिम इतिहास।
जानिए – यमकेश्वर डांडामण्डल – कौड़िया- किमसार मोटर मार्ग के लिये हुए विशाल जन आंदोलन का स्वर्णिम इतिहास।
विकास के लिये सड़को की भूमिका महत्वपूर्ण होती हैं, किसी भी क्षेत्र की विकाद की रीढ़ की हड्डी वँहा की मुख्य सड़क होती है। आजकल डांडामण्डल की सड़क पुनः सुर्खियों में बनी हुई है, सड़क के किनारे झाड़ी कटान करने के लिए। झाड़ी कटान होना आवश्यक है, क्योकि इससे वाहन चालकों और सवारियों को बहुत सहूलियत हो जाती है। झाड़ी कटान करवाने के लिये प्रयास करने वाले सभी गणमान्य जन आभार के पात्र हैं। लेकिन पिछले दो सालों से लोहा सिद्ध के पास पुश्ते का निर्माण नही हो पाया है, और न ही पार्क द्वारा इसका डामरीकरण। खैर राजनीति, प्रशासन नीति हमेशा जन विरोधी रही हैं, और इस सड़क का निर्माण भी जन आंदोलन के फलस्वरूप हुआ है। इस सड़क पर केंद्रित होने वाली राजनैतिक जानकारों के लिये यह जानना जरूरी है कि इस सड़क का इतिहास क्या है। आज हम उस आंदोलन के इतिहास के पन्नो को पलटेंगे जिसके बलभूते पर इस सड़क को बनाया गया। वास्तव में जन आंदोलन यदि सकारात्मक हो और स्वार्थ से परे हो तो अनेको सार्वजनिक कार्यो को नई दिशा और दशा मिल जाती है, जिससे क्षेत्र का विकास ही नही होता बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिये एक नया आयाम स्थापित होने के लिये नींव पड़ जाती है।
यमकेश्वर – डांडामण्डल कौड़िया किमसार मोटर मार्ग का इतिहास: आज यमकेश्वर में भले ही बीजेपी सत्ता में हो लेकिन डांडामण्डल क्षेत्र की विकास की रीढ़ कही जाने वाली सड़क को लाने में यूकेडी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, इस भूमिका में क्षेत्र के कई गणमान्य व्यक्तियों का योगदान रहा है। इस आन्दोलन के मुख्य प्रेणता श्री महावीर प्रसाद कुकरेती और उनके भांजे श्री शक्तिशैल कपरवान जी रहे हैं। उनसे अलग अलग हुई वार्ता के अनुसार एवं जैसा उन्होंने हमे अपने साक्षात्कार में बताया उस घटनाक्रम को उसी अनुरूप लिख रहा हूँ।
श्री कुकरेती जी और श्री डॉ कपरवान जी बताते हैं कि उक्त सड़क का निर्माण एक दिन का नही बल्कि यह एक बड़े जन आंदोलन के परिणामो का फल है। 1988-1989 में जब उत्तराखंड आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो गयी तो उस समय पौड़ी जिले से यूकेडी के महामंत्री श्री डॉ शक्तिशैल कपरवान जी थे, उस दौरान 1988-89 में यूकेडी के द्वारा उत्तराखंड क्षेत्र में जल जंगल जमीन के मुद्दों पर वन अधिनियम कानून जो जन हितैषी नही थे उनका विरोध कर रही थी। इसी क्रम में 14 जनवरी 1989 को पौड़ी में यूकेडी की बैठक थी। उसी समय तत्कालीन वन मंत्री उत्तर प्रदेश श्री अजीत प्रताप सिंह का चीला में पार्क कार्यालय में किसी कार्यक्रम में आने का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था। उस समय पार्क प्रशासन ने वन नियम कठोर कर दिए थे ,और स्थानीय लोगो को जंगलों से घास लकड़ी काटने पर भी कठोर प्रतिबन्ध लगा दिए थे। ऐसे में वन मंत्री के घेराव की बात बैठक में रखी गयी। लेकिन इसी दौरान 28 जनवरी 1989 को ही उसी दिन यूकेडी के तात्कालिक अध्यक्ष श्री काशी सिंह ऐरी की श्रीनगर में कार्यक्रम था। बैठक में तय किया गया कि यमकेश्वर क्षेत्र के कार्यकर्ता वन नियमों के संदर्भ में एक ज्ञापन वन मंत्री को जनता के साथ मिलकर सौपेंगे।
अखबारों के हवाले खबर दी गयी कि वन मंत्री को स्थानीय लोग पार्क के अमानवीय कठोर नियम जैसे मूलभूत आवश्यक्ताओ पर लगाये गए प्रतिबंधों को हटाने के लिये ज्ञापन देगे। इधर गंगाभोगपुर यानी कौड़िया में आंतरिक योजना बनायी गयी कि 28 जनवरी 1989 को चीला में होने वाले कार्यक्रम में विरोध स्वरूप एक रैली का आयोजन किया जायेगा, कार्यक्रम की रूप रेखा जब तय की गई तो स्थानीय लोगो द्वारा अपने जंगल के उपयोग में आने वाले हथियारों के साथ प्रदर्शन करना होगा।
तय योजना के अनुसार गंगाभोगपुर के पास चीला जाने के लिये बनी पुलिया से पूरे डांडामण्डल क्षेत्र के लोग, गंगाभोगपुर के निवासी कुनाउ क्षेत्र एवं वन गुज्जर अपनी कुल्हाड़ी दरांती लेकर सड़क पर हुजूम के रूप में जमा हो गए। गंगाभोगपुर से चीला तक विशाल जन समूह जब हथियारों के साथ चीला पार्क कार्यालय के समीप पहुंचा तो वन मंत्री सकते में आ गए। फिर एक शिष्ट मंडल को वार्ता के लिये बुलाया गया, और उनसे वार्ता हुई। शिष्ट मंडल में श्री महावीर प्रसाद कुकरेती श्री शक्तिशैल कपरवान, श्री महेशा नंद शास्त्री, श्री मनोहर श्याम कंडवाल आदि गणमान्य व्यक्ति मिलने गए, उनके सामने व्यवहारिक समस्या से अवगत कराया गया तब उन्होंने पार्क क्षेत्र में घास लकड़ी आदि जरूरत की सामग्री को बिना पार्क के आज्ञा से उपयोग कर सकते हैं, इस हेतु पार्क अधिकारीयो को भी उसी समय दिशा निर्देश जारी कर दिए गए। इस तरह जन आंदोलन की यह क्षेत्रवासियों की पहली जीत थी।
उसके बाद पार्क प्रशासन से डांडामण्डल क्षेत्र के लिये सड़क की माँग की जाने लगी लेकिन पार्क अधिकारी वर्ग द्वारा वन नियमो का हवाला देकर सड़क बनवाने के लिये साफ इंकार कर दिया गया।
यूकेडी एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों द्वारा डांडामण्डल क्षेत्र में उक्त सड़क को बनवाने एवं पुनः जन आंदोलन करने के लिये जगह जगह गांव में गुपचुप बैठकों का आयोजन किया जाने लगा। सबसे बड़ी समस्या सड़क पर आने वाले पेड़ो को काटने की थी। क्योकि पार्क प्रशासन कभी भी इसकी अनुमति नही देता। आखिर 11 अप्रैल 1989 को पुनः जन आंदोलन करने की योजना बनाई गई और लोहा सिद्ध से पूर्व जँहा पार्क की सीमा शुरू होती है, वँहा 1000 से अधिक लोगो का हुजूम उमड़ पड़ा। यूकेडी के सभी नेता, क्षेत्र के सभी गणमान्य व्यक्ति, पार्क के सभी अधिकारी, 8 रेज कार्यालय के वन अधिकारी कर्मचारी वँहा एकत्रित हो गए। भीड़ और पार्क प्रशासन के मध्य विवाद शुरू हो गया। देखते ही देखते पेड़ काटने कार्य शुरू हो गया। पार्क प्रशासन के सामने पेड़ काटते देखकर उनके हाथ पाँव फूल गए और उनकी जबाब देही बन गयी। जनता पर पेड़ काटने के आरोप में सामूहिक मुक़दमा दर्ज कराने की तैयारी सुरु हुई तो, श्री शक्ति शैल कपरवान और श्री महावीर प्रसाद कुकरेती अन्य द्वारा उक्त मुकद्दमा को अपने ऊपर ले लिया, और आश्वाशन पर जन आंदोलन स्थगित कर दिया गया। आंदोलकारियों ने कहा कि सड़क बनने के बाद हम इससे दो गुना पेड़ सड़क के किनारे लगायेंगे, हम पर्यावरण के प्रति संजिदगी रखते हैं, लेकिन मानवीय हितों को भी अनदेखा नही कर सकते हैं। सड़क बनने के बाद पुनः इस क्षेत्र में पेड़ लगवाये गए।
अप्रैल 1989 के घटना चक्र के बाद सड़क की माँग जोर पकड़ने लगी, जन आंदोलन कर्ताओ ने भी सड़क निर्माण के लिये अपने प्रयास जारी रखे, पार्क प्रसाशन पत्राचार जारी रहा ,लेकिन कोई नतीजा नही मिलने पर श्रमदान से सड़क बनाने का निर्णय लिया गया। 15 सितम्बर 1989 को गंगाभोगपुर से सड़क निर्माण का कार्य श्रमदान से शुरू हो गया, और क्षेत्र के सभी ग्राम सभा प्रधानो से अपील की गई कि वह अपने क्षेत्र में जवाहर रोजगार योजना से या श्रमदान से उक्त सड़क का निर्माण कार्य करना शुरु करें। एक 23 सितम्बर 1989 के दिन पुनः पार्क निदेशक द्वारा जन आंदोलनकारी नेताओ को वार्ता के लिये बुलाया गया। यूकेडी ने स्पस्ट कर दिया कि हम जनहितों के लिये बिना लिखित अनुमति के सड़क कार्य को बंद नही करेगे और नही कोई समझौता करेगे। यदि पार्क प्रशासन लिखित रूप में अपने स्तर से सड़क निर्माण हेतु आश्वासन दे देता है तो हम सड़क निर्माण कार्य रुकवा देगे। आख़िर कार 25 अक्टूबर 1989 को राजा जी नेशनल पार्क प्रशासन की ओर से लिखित आश्वासन प्राप्त हो गया, लेकिन इस बीच श्रमदान से लगभग 11 किलोमीटर की सड़क तैयार हो गयी थी। 1994 – 95 में पार्क ने सड़क निर्माण का कार्य स्वयं अपने हाथों में ले लिया और पार्क सीमा के बाद पीडब्ल्यूडी द्वारा सड़क के लिये टेंडर जारी हो गए। उक्त सड़क पर श्री चन्दर सिंह निवासी बेलवाला ग्राम सभा बुकण्डी की गाड़ी जिसके चालक श्री सुरेश सिंह नेगी ग्राम किमसार थे के द्वारा चलाई गई थी।
उक्त आंदोलन के अगुवाई करने वाले प्रमुख आंदोलनकारी श्री महावीर प्रसाद कुकरेती, डॉ शक्तिशैल कपरवान, श्री शत्रुघन प्रसाद शर्मा गंगाभोगपुर से, श्री पुरषोत्तम कंडवाल और श्री खुशाल सिंह आजाद, किमसार से, श्री मनहोर श्याम कंडवाल, तल्ला बनास श्री बलदेव प्रसाद कुकरेती, भूमियाकिसार श्री दयाल सिंह नेगी, तल्ला बनास श्री त्रिलोक सिंह बिष्ट, श्रीमती सुशीला बिष्ट, मल्ला बनास , श्री महेशानंद शास्त्री, व श्रीमती सावित्री देवी, रामजीवाला श्री कुलानंद शर्मा, धारकोट से श्री चैत राम ग्वाड़ी देवराना से श्री वसुदेव अमोली अमोला से एवं अन्य सभी क्षेत्रीय लोग शामिल रहे हैं। श्री दयाशंकर भट्ट द्वारा भी उक्त आंदोलन में अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी रही, किमसार गाँव के मध्य सड़क पहुचाने के लिये उनका संघर्ष काफी सराहनीय रहा।
डांडामण्डल क्षेत्र में सड़क के लिये तात्कालिन लोगो ने जो संघर्ष किया वह वास्तव में जन आंदोलन का एक बड़ा स्वरूप था, तब लोगो मे सहयोग की भावना थी, आपसी मतभेद भी रहे होंगे लेकिन जनता सार्वजनिक कार्यो के प्रति एकजुटता नजर आती थी। वर्तमान परिपेक्ष्य में लोग पार्टीवादी विचारधारा में बंटकर रह गये है। आज जँहा लोग जागरूक हुए वंही विकास कार्यो के प्रति आपसी मतभेद भी बढ़े है। यमकेश्वर की वर्तमान राजनीति अब अंदरूनी रूप में बहुत ही बिखरी हुई एवं टूटी हुई नजर आती है। यही कारण है कि यमकेश्वर क्षेत्र विकास के मामले में सबसे ज्यादा पिछड़ी हुई है। आज यमकेश्वर में जनता कम नेता ज्यादा हो गए हैं, यमकेश्वर ही नही पूरे उत्तराखंड के लिये जन आंदोलन करने वाली यूकेडी आज हासिये पर सिमट गई है। आगामी 2022 के चुनाव में यमकेश्वर की जनता किसे अपना सिरमौर बनाती है यह आने वाला वक्त ही तस्दीक देगा।
©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से। 16 सितम्बर 2020