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भारत की वो मंडियां जिसकी आर्थिक गतिविधियां नेपाल पर टिकी हैं, जानें अब कैसे हैं यहां के व्यापारी

भारतीय व्यापारी रमेश चंद्र सरकार से गुहार लगाते हुए कहते हैं कि उनकी नेपाल पर निर्भरता दूर करने का प्लान बनाया जाय। जौलजीबी-टनकपुर रोड बनने से ये निर्भरता खत्म हो सकती है।

पिथौरागढ़। लॉकडाउन के चलते उत्तराखंड में नेपाल बॉर्डर से सटी मंडियों का कारोबार पूरी तरह चौपट हो गया है। असल में 275 किलोमीटर के इंटरनेशनल बॉर्डर पर दोनों मुल्कों का कारोबार एक-दूसरे पर टिका है। लेकिन बीते 6 महीने से भारत-नेपाल के बीच किसी भी प्रकार आवाजाही नहीं पाई है, जिस कारण बॉर्डर के व्यापारियों को सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ रहा है। धारचूला से बनबसा तक नेपाल बॉर्डर पर आधा दर्जन से अधिक व्यापारिक मंडियां अब तक के सबसे बुरे वक्त से गुजर रही हैं। भारत की ये मंडियां जहां सदियों से नेपाली ग्राहकों पर टिकी हैं, वहीं नेपाल की मंडियां भारतीय खरीददारों पर हीं निर्भर हैं। लेकिन कोरोना काल में बॉर्डर की मंडियों को बुरे दिन आ गए हैं। हालात इस कदर खराब है कि बॉर्डर की दुकानों पर बीते 6 महीने से ताले लगे हुए हैं।

वहीं, कारोबार चौपट होने से भारतीय व्यापारी अपने घर का चुल्हा जलाने के लिए भी दूसरों की मदद पर निर्भर हैं। झूलाघाट मंडी के व्यापारी दीपक इजरवाल बताते हैं कि न तो उनके पास दुकान का किराया देने के पैसे हैं और न ही बैंक की क़िस्त वो चुकता करने की हालत में हैं। ऐसे में खुद के साथ परिवार का पेट पालना खासा मुश्किल हो गया है। 6 महीने से एक भी ग्राहक नहीं आया है। नतीजतन लाखों का खराब सामान काली नदी में बहाना पड़ा। असल में धारचूला, बलुआकोट, जौलजीबी, डौडा, झूलाघाट, पंचेश्वर और बनबसा की मंडियां नेपाल के करीब हैं। ऐसे में यहां सबसे अधिक खरीददारी नेपाली नागरिक ही करते हैं। नेपाल के ग्राहकों पर निर्भर होने के कारण यहां का कारोबार सिर्फ और सिर्फ नेपाल पर टिका है। दशकों से नेपाल पर निर्भरता से भारतीय व्यापारी इस कदर परेशान हो गए हैं कि अब वे सरकार से दूसरे विकल्पों पर विचार करने की गुहार लगा रहे हैं।

नेपाल पर निर्भरता दूर करने का प्लान बनाया जाय
भारतीय व्यापारी रमेश चंद्र सरकार से गुहार लगाते हुए कहते हैं कि उनकी नेपाल पर निर्भरता दूर करने का प्लान बनाया जाय। जौलजीबी-टनकपुर रोड बनने से ये निर्भरता खत्म हो सकती है। लेकिन किसी को मतलब नहीं है। कालानदी किनारे टनकपुर से जौलजीबी तक रोड बनने से बॉर्डर की अधिकांश मंडियां अन्य इलाकों से भी जुड़ सकती थीं। लेकिन ये अहम रोड लम्बे समय से राजनीति की भेंट चढ़ी हुई है। ऐसे में ये कह पाना तो कठिन है कि ये इलाके अन्य विकल्पों से कब जुड़ेगें। लेकिन इनता जरूर है कि अगर बॉर्डर के व्यापारियों की मदद नही की गई तो हजारों परिवारों की रोजी-रोटी पर बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।

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