हरित क्रांति के साथ ही शुरू हुई लोबिया की खेती की उपेक्षा डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

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लोबिया खरीफ के मौसम में बोई जाने वाली एक दलहनी फसल है। यह मुख्य रूप से चारे के लिए उगायी जाती है।  लोबिया की खेती अफ्रीका, अमेरिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया व भारतीय महाद्वीपों में की जाती है।
विश्व के कुल क्षेत्र एवं उत्पादन का लगभग 85% अकेले अफ्रीका में स्थिति है। भारत में उत्तर प्रदेश,
उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश व हरियाणा में की जाती है। लोबिया एक प्रकार की बीन या फलियां हैं जो लंबी और हरे रंग की होती हैं। इन फलियों को लोबिया या काउपिया कहा जाता है।
काउपिया का वैज्ञानिक नाम विग्ना अनगुइकलता है। प्रारंभ में लोबिया को खरपतवार के रूप में पशूओं को खिलाया जाता था। लेकिन औषधीय गुण होने के कारण अब इसका उपयोग विशेष खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है। लोबिया के दानों का आकार अंडाकार होता है जो कि क्रीम रंग के होते हैं। इन पर काले धब्‍बे भी होते हैं जिसके कारण इसे काली आंख की मटर या ब्‍लैक-आइड पीज के नाम से भी जाना जाता है। लोबिया का इस्‍तेमाल मुख्‍य रूप से उत्‍तर
भारत में विभिन्‍न प्रकार के व्‍यंजनों में किया जाता है। उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं में ही नहीं, यहां के खान-पान में भी विविधता का समावेश है। पौष्टिक तत्वों से भरपूर उत्तराखंडी खान-पान
में मोटी दालों को विशेष स्थान मिला हुआ है। लोबिया या सुंठा की दाल आमतौर पर रोजाना घरों में
बनाई जाती है। हल्के पीले और सफेद रंग की लोबिया में अन्य दालों के मुकाबले फाइबर की मात्रा अधिक होती है। लोबिया में एंटी आक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं। यह शरीर में लगने वाली बीमारियों से बचाता हैं। यह 100 रुपये प्रति किग्रा की कीमत में बाजार में बिक रही है। स्टैंडर्ड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखता है: चोली या काउपीस हमारे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को उल्लेखनीय रूप से कम रख सकते हैं. यह घुलनशील आहार फाइबर और प्रोटीन का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जो हमारे रक्त के प्लाज्मा में मौजूद खराब कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है। इनमें स्टेरॉयड यौगिक भी होते हैं जिन्हें फाइटोस्टेरॉल कहा जाता है। ये हमारे शरीर
में मानक कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखने में बहुत प्रभावी हैं।ब्लड कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित
करता है: काउपीस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी कई अन्य खाद्य पदार्थों की तुलना में काफी कम है। कई शोधों ने साबित कर दिया है कि लो-ग्लाइसेमिक-इंडेक्स-डाइट हमारे ब्लड लिपिड
प्रोफाइल के लिए बेहद फायदेमंद है। इसलिए, यह एक और तरीका है जिसके माध्यम से फलियाँ
हमारे रक्त कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रख सकती हैंफ्री रेडिकल्स को हटाता है: काउपपस, विशेष
रूप से मलाईदार सफेद, हल्के भूरे, काले और लाल वाले, एंटीऑक्सिडेंट एजेंटों से भरे होते हैं – विटामिन ए और विटामिन सी इसलिए, इन बीन्स का सेवन हमें हानिकारक मुक्त कणों से
छुटकारा पाने में मदद कर सकता है, जो अंततः कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोक सकता है।रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है: घुलनशील फाइबर में उच्च होने के कारण, गाय मटर मधुमेह की स्थिति के लिए एक महान समाधान के रूप में काम करता है। यह हमारे रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित कर सकता है और हमें मधुमेह मेलेटस से दूर रहने में मदद कर सकता है।हृदय रोगों का इलाज करता है: गाय मटर में मौजूद द्वितीयक मेटाबोलाइट्स
फ्लेवोनोइड भी विभिन्न हृदय संबंधी मुद्दों के इलाज में सुपर प्रभावी हैं। अपने नियमित आहार
में वेजी को शामिल करके, आप कई हृदय रोगों के विकास के जोखिमों को आसानी से काट
सकते हैं। लोबिया खाने के लाभ रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए भी होते हैं। इसमें मौजूद विटामिन सी एक एंटीऑक्‍सीडेंट है साथ ही इसमें विटामिन ए भी अच्‍छी मात्रा में होता है। इसमें मौजूद अन्‍य पोषक तत्‍व आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक हो सकते हैं। काउपिया का नियमित सेवन करने से आप विभिन्‍न प्रकार के संक्रमण फैलाने वाले रोगाणुओं का उपचार कर सकते हें। लोबिया का सेवन करना आपको कई संभावित बीमारियों से
बचाने के प्रभावी तरीकों में से एक हो सकता है। लोबिया में आयरन की उच्‍च मात्रा होती है।
आयरन नई लाल रक्‍त कोशिकाओं के उत्‍पादन को बढ़ाने में मदद करता है। शरीर में पर्याप्‍त रक्‍त न होने से शरीर के सभी अंगों को ऑक्‍सीजन नहीं मिल पाती है। इस समस्‍या को ठीक करने के लिए आप अपने दैनिक आहार में लोबिया को शामिल कर सकते हैं। जो कि आपके रक्‍त को बढ़ाने और एनीमिया का इलाज कर सकता है। लोबिया के हेल्‍थ बेनिफिट्स में इसके पाचन गुण भी शामिल हैं। क्‍योंकि लोबिया का सेवन करने का फायदा पाचन संबंधी परेशानियों
को दूर कर सकता है। भोजन मे इसका प्रयोग दाल के रूप में होता है। जिसमें 25% प्रोटीन, 4%
कार्बोहाइड्रेट, 2% वसा, 3% रेशा तथा 10% जल पाया जाता है। इसकी फलियाँ हरी सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती है। हरी खाद के रूप में इसकी खेती की जाती है। इसका पौधा सूखे के लिए सहनशील होता है। जल मांग की आवश्यकता कम होती है।100 ग्राम लोबिया में लगभग 28 % फाइबर होता है। जिसके कारण यह कब्‍ज और अन्‍य पाचन समस्‍याओं को रोकने में सक्षम होता है।
अपच, दस्‍त या कब्‍ज का उपचार करना चाहते हैं तो लोबिया को अपने दैनिक आहार का हिस्‍सा बना सकते हैं। लोबिया पहले के समय में किसान की पैदावार अच्छी होती थी तो वह इन दालों को बाजार में बेचता था लेकिन अब केवल अपने भरण-पोषण के लायक ही पैदावार करता है। विशिष्ट गुणों के कारण लोबिया इन की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग बढ़ रही है। इसकी एक वजह यह भी है कि पर्वतीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाली इन फसलों में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं
किया जाता। इसलिए इन फसलों से प्राप्त होने वाला उत्पाद जैविक श्रेणी में आता है। पर्वतीय क्षेत्रों
में उगाई जाने वाली परंपरागत एवं स्थानीय फसलें सिर्फ व्यवसायिक ही नहीं बल्कि औषधीय व पोषण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। कुपोषण को दूर करने व पोषण वाला भोजन तैयार करने में यह
काफी मददगार साबित होंगी, लेकिन इन फसलों में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले प्रोटीन की जानकारी न होने के कारण लोग इन्हें अपनाने में परहेज करते हैं। प्रदेश से बाहर इन फसलों का काफी अच्छी मांग है, लेकिन अपने ही राज्य में यह फसलें केवल परंपरागत पहाड़ी व्यंजनों तक सीमित रह गई हैं।

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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