उत्तराखण्ड का एक – ‘गुमनाम कलाकार’ जगदीश ढ़ौंडियाल को नहीं मिला उनकी प्रतिभा का सम्मान,,,
वीरेंद्र जुयाल उपिरि
नई दिल्ली: उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना भले ही सन् 2000 में हुई हो लेकिन राज्य में संगीत और लोक संस्कृति का प्रचार – प्रसार करने वाले अनेक सितारों का जन्म उत्तर प्रदेश के विभाजन से भी पहले हुआ है | जिनको आज तक भी उनकी प्रतिभा के अनुरूप सम्मान नही मिल पाया | ऐंसे कुछ नाम है जो ताउम्र दृढ़तापूर्वक लग्न से अपने काम से जुड़े हुए हैं | जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हुए भी अपने काम के प्रति समर्पित रहे | अपने स्वाभिमान से समझौता न करने वाले ऐसे ही एक शख्स आदरणीय श्री जगदीश ढ़ौंडियाल जी है |
आदरणीय श्री ढ़ौंडियाल जी पौड़ी गढ़वाल जिले के सूदूरवर्ती क्षेत्र पैतृक गाँव दिवोली नजदीक बैजरो के हैं | श्री ढ़ौंडियाल जी ने सुप्रसिद्ध घराने जयपुर घराने से कत्थक में गुरु-शिष्य परंपरा के अनुरूप शिक्षा ग्रहण की है | उनके गुरु श्री हजारीलाल जी थे | श्री हजारीलाल जी की लगभग आठ पीढ़ियों से संगीत में सुर साधना चल रही थी | लगभग पांच – छै: दशक की श्री ढ़ौंडियाल जी की संगीत साधना है | जीवन के शुरुआती दौर में उन्होंने उस विधा को अपनाया जिस पर उस समय में सोचना उत्तराखण्ड के कलाकारों के लिए दूर की कौड़ी था | और आज भी पेशेवर कलाकार के रूप में कत्थक के क्षेत्र में उत्तराखण्ड से संभवतः कोई भी नहीं है |
श्री कृष्ण भगवान ने संगीत के बारे में अर्जुन से कहा था कि- “वेदानाम सामवेदो अस्मि |” लेकिन संगीत के क्षेत्र में श्री ढ़ौंडियाल जी की कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं है | लेकिन श्री ढ़ौंडियाल जी राग – रागनियों और तालों की विस्तृत जानकारी रखते हैं साथ ही ढ़ोल सागर के भी विद्वत जानकार हैं | उनकी हायर सैकेंड़री तक की शिक्षा दिल्ली में हुई है | उन्होंने हायर सैकेंड़री शिक्षा 1961-62 में प्राप्त कर ली थी | उन्होंने उत्तराखण्ड के लोकगीतों पर भी काम किया है | उनके गीतों का प्रसारण सन 1960-70 के दशक में दिल्ली रेडियो स्टेशन से होता था | उन्होंने उस दौर में लगातार 8 साल रेडियो पर गीत गायें जब मनोरंजन का एकमात्र सुलभ साधन रेडियो ही था | या फिर विभिन्न क्षेत्रों की रामलीलाओं का दौर होता था | तब ब्लैक एंड ह्वाइट टेलीविजन का जमाना था |
उन्होंने रंगमंच पर भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है | उन्होंने 14 साल की उम्र से रामलीला में पदार्पण किया | उनके द्वारा निभाये गये शेषनाग अवतारी लक्ष्मण का अभिनय आज भी उस दौर के लोग बखूबी याद करते हैं | तब “गढ़वाल प्रादेशिक सभा” – अंध विद्यालय पंचकुइयां रोड़ दिल्ली रामलीला मंचन का आयोजन करती थी | इसके अलावा विभिन्न कार्यक्रमों में लास्य तांडव, शिव तांड़व, भैरव तांडव, कृष्ण तांडव(नटवरी नृत्य), हनुमत तांडव नृत्य आदि में पारंगत होने के कारण अभिनय भी करते थे | मशहूर दिवंगत अभिनेता देवानंद जी के फिल्मों के गानों की फरमाइश लोग आज भी उनसे करते हैं | इसके अलावा श्री ढ़ौंड़ियाल जी द्वारा हिंदी के सुप्रसिद्ध रचनाकार श्री जयशंकर प्रसाद जी के कालजयी कृति ‘कामायनी’ के लगभग ढाई हजार एपिसोड का निर्देशन भी किया है |
उत्तराखण्ड संस्कृति विभाग ने ऐसे बड़े कलाकार कीइसके अलावा श्री ढ़ौंड़ियाल जी द्वारा हिंदी के सुप्रसिद्ध रचनाकार श्री जयशंकर प्रसाद जी के कालजयी कृति ‘कामायनी’ के लगभग ढाई हजार एपिसोड का निर्देशन भी किया है | अनदेखी की हुई है अभी तक विभाग से श्री ढ़ौंडियाल जी को कोई पेंशन इत्यादि नही मिलती है | हिंदी व गढ़वाली गीतों के गायन में भी श्री ढ़ौंडियाल जी को महारत हासिल है | दर्जी दिदा फेम गायिका उत्तराखण्ड की स्वर कोकिला वरिष्ठ गायिका श्रीमती रेखा धस्माना उनियाल जी ने भी उनके गीतों को अपनी आवाज दी है | उनके कई गढ़वाली गीत उस दौर में बहुत लोकप्रिय हुए | जिनमें ‘बिजी जावा बिजी हे…. मोरी का नारैण’, ‘ऊँचा हिमालै का मूड’ आदि गीत आज भी सुनने वालों को रोमांचित कर देते हैं | रागों की पूरक जानकारी, हारमोनियम सहित कई वाद्ययंत्रों पर पकड़, नृत्य की हर शैली के पारखी, वेद सम्मत् गूढ़ ज्ञान के धनी, उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति के प्रखर ध्वजवाहक, बहुमुखी कलाओं से परिपूर्ण, कई गरिमामयी पुरस्कारों से सम्मानित जीवन के अठहत्तर (78) बसंत देख चुके श्री ढ़ौंडियाल जी आज गुमनामी के अंधेरे में जी रहे हैं |