नहीं होता हमारे बांग्ला हिंदू बंधुओं का ऐसा निर्मम नरसंहार अगर समय से पहले लागू हो गया होता CAA कानून; डॉ केतकी तारा कुमैय्यां
2014 से बड़ानी होगी कट ऑफ डेट ,भारत को इस अस्तित्ववाद के युद्ध में नेतृत्व करना ही होगा : डॉ केतकी तारा कुमैय्यां , राजनितिक विश्लेषक ,अल्मोड़ा
*हमें तो अपनों ने लूटा , गैरों में कहा दम था
मेरी कश्ती डूबी वहा जहा पानी कम था
यह वाक्य आज के भारत बांग्लादेशी रक्तरंजित परिदृश्य में सटीक बैठता है। विडंबना देखिए जहा बांग्लादेश में हाहाकार हो रहा है वही भारत में विपक्षी दल आक्रोशित हो रहा है की हिंदुओं को बचाने के लिए प्रयास नहीं किए गए लेकिन यह वही विपक्ष था जिसने सरकार की CAA प्रयास का मुखर विरोध किया था और आज इसका वीभत्स रूप हम हिंदुओं के हृदयविदारक नरसंहार के रूप में देख रहे है।
आज हर जगह हिंदुओं के नरसंहार की बात उठ रही है। यदि इस संवेदनशील CAA को समय से लागू करने दिया होता, यदि शाहीन बाग जैसे घटनाक्रमों को बढ़ावा नही दिया जाता , यदि पाकिस्तान समर्थकों को अपना आदर्श नही माना जाता, यदि सर्जिकल स्ट्राइक को कोसा नही जाता, तो आज हमारे सहोदर हिंदू बंधु ऐसे निर्मम नरसंहार का निशाना नहीं बनते।
जिस प्रकार से नेहरू लियाकत संधि के बाद से हिंदुओं का विभाजन पश्चात जनसंख्या प्रतिशत गिरा है वह आज भारत में बैठे हिंदुओं के लिए एक सोचनीय विषय बन चुका है। कट्टरपंथी शक्तियों को जिन्हे नेपथ्य में चीन का समर्थन एवम संरक्षण मिल रहा है ने पहले ही मालदीव, नेपाल म्यानमार ,पाकिस्तान, श्रीलंका ,अफगानिस्तान को अपने अधीन ही क्या बल्कि नवउपनिवेश बना लिया है ने अब हमारी बांग्लादेशी शुभचिंतक शेख हसीना का तख्तापलट कर दिया है ।
हिंदुओं की गिरती संख्या एवम प्रतिशत भारत के लिए बहुत बड़ा मसला बन चुका है। हर देश अपनी आज जनसंखियकीय शक्ति को बचाने में लगा है क्योंकि वही उनकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान का अमूल्य मानक है। नवसम्रज्यवाद की इस लहर में कई देशों ने अपनी मूल पहचान खो दी है। आज यदि रूस यूक्रेन युद्ध हुआ तो वह भी अस्तित्ववाद की लड़ाई थी जिसमे रूस शीत युद्ध में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करना चाहता था।
आज यह केवल बांग्लादेश का ही विषय नहीं है बल्कि भारत के लिए भी सबक है की उसे भी अब वृहद स्तर से अपनी रणनीति बनानी होगी तथा अपने इस चक्रव्यूह को स्वयं तोड़ना होगा। भारत को उस द्वापरयुग के अभिमन्यु की तरह नहीं बल्कि कलयुग का अभिमन्यु बनकर इस चक्रव्युह को ही नही तोड़ना बल्कि कट्टरपंथियों के पाश में फंसे अपने सहोदर राज्यों को भी निकालना होगा और उनका भ्रम तोड़ना होगा। यह घटनाक्रम केवल बांग्लादेश का ही नही है बल्कि आगामी घटनाक्रमों का भी भयावह सूचक है तथा अब अस्तित्ववाद का चरम युद्ध बन चुका है जिसमे भारत को ध्वजवाहक बन नेतृत्व करना होगा।