टिहरी गढ़वाल में स्थित बूढाकेदार मंदिर की मान्यता है कि बूढ़ा केदार की यात्रा के बिना चार धाम यात्रा अधूरी मानी जाती है
*बूढाकेदार मंदिर टिहरी (शीशपाल राणा) विकासखंड भिलंगना का बूढ़ा केदार शिव मंदिर काफी प्राचीन एवम प्रचलित है। मंदिर के अंदर विशालकाय पत्थर कि शीला है जिस पर पांडवों की आकृतियां हैं।
यह मंदिर काफी प्राचीन है जिसे अब भव्य रुप दिया गया है पूर्व में जब आवागमन की सुविधा नहीं थी तो यात्री पहले बूढ़ा केदार के दर्शन करते थे और उसके बाद बाबा केदारनाथ के दर्शन को जाते थे बूढ़ा केदार की यात्रा के बिना चार धाम यात्रा अधूरी मानी जाती है। मानी जाती थी, श्रवण मास में यहां से से पैदल कावड़ यात्रा होती है ओर इस माह मैं यहां काफी अत्यधिक संख्या में यात्री दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं ।
बूढ़ा केदार को पांचवा धाम घोषित करने के लंबे समय से मांग की जा रही है पर सरकार के अनदेखी के कारण यहां मंदिर जितना प्राचीन है जितनी मान्यता है उतना यहां मंदिर प्रचलित नहीं हो पाया।
*इतिहास* बूढ़ा केदार प्राचीन केदार में एक माना जाता है जिसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है बताया जाता है कि गोत्र हत्या से मुक्ति के लिए जब इस मार्ग से होते हुए स्वर्गारोहण के लिए जा रहे थे तब वहां बूढ़ा केदार में रुके थे यहां पर भगवान शंकर ने उन्हें बूढ़े व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए थे जिससे उनकी गोत्र हत्या यही मुक्त हो गई थी ।
यहां पर भगवान शंकर आदिकाल से वास करते हैं भगवान शंकर ने पांडवों को यहां पर बूढ़े रूप में दर्शन दिए थे जिसके बाद इस धाम का नाम पहले वृद्ध केदार और बाद में बूढ़ा केदार हो गया यहा धाम धर्म गंगा पार गंगा के मध्य स्थित है इस मंदिर की नींव शंकराचार्य ने रखी थी बूढ़ा केदार के दर्शन से केदारनाथ जैसा फल मिलता है भगवान शंकर यहां पर अपने पूरे परिवार सहित पांच पांडव चार धाम के चार चरण एवं अपने साकार रूप एवं निराकार रूप में इस लिंग में हैं आज भी बड़ी संख्या में देश के विभिन्न जगह से यात्री बूढ़ा केदार के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं श्रवण मास में बड़ी संख्या से यहां श्रद्धालु पहुंचते हैं