बचपन में ही हो गया था अमर शहीद हेमू कालाणी में राष्ट्रवाद की भावना का संचार डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

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इतिहास गवाह है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में वीर सेनानियों ने, मां भारती को अंग्रेजों के शासन से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से,  देश के कोने कोने से भाग लिया था। इन वीर सेनानियों में से भारत के कई वीर सपूतों ने तो मां भारती के श्री चरणों में अपने प्राण भी न्योछावर कर दिए थे। हेमू कालाणी का जन्म सिन्ध प्रांत के सक्खर जिले में सवचार स्थान पर श्री पेसूमल जी कालाणी एवं माता श्रीमती जेठी बाई कालाणी के घर पर हुआ था। हेमू कालानी बचपन में ही सर्वगुण संपन्न व होनहार बालक थे, जो अपनी पढ़ाई लिखाई में तेज तर्रार होने के साथ साथ एक अच्छे तैराक, तीव्र साइकिल चालक तथा अच्छे धावक भी थे। वह कई बार तैराकी में भी कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके थे। बचपन में ही हेमू कालाणी “स्वराज्य सेना” नामक छात्र संगठन में सम्मिलित होकर इस संगठन के नेता बन गए थे। इन सभी विशेषताओं के ऊपर, हेमू कालाणी अपने बचपन काल से ही राष्ट्रवाद की भावना से भी ओतप्रोत थे एवं प्रारम्भ में केवल 7 वर्ष की आयु में ही तिरंगा झंडा लेकर उसे लहराते हुए अंग्रेजों की बस्ती में अपने साथियों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे। इसके बाद तो हेमू कालाणी ने अंग्रेजों की क्रूर हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प ही ले लिया था और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भी भाग लेना शूरू कर दिया था। अत्याचारी अंग्रेजों द्वारा संचालित सरकार के विरुद्ध छापामार गतिविधियों में भाग लेकर उनके वाहनों को जलाने में हेमू कालाणी अपने साथियों का नेतृत्व भी करने लगे थे। यह भी एक अजीब संयोग ही कहा जाएगा कि हेमू कालानी की जन्मतिथि एवं अमर शहीद श्री भगतसिंह जी की पुण्यतिथि एक ही है वर्ष 1942 में मात्र 19 वर्ष की अल्पायु में हेमू कालाणी ने ने “अंग्रेजो भारत छोड़ो” के नारे को पूरे सिंध में गूंजायमान कर दिया था। हेमू कालाणी के अदम्य साहस एवं उत्साह ने तो पूरे सिंधवासियों में ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए जोश भर दिया था। हेमू कालाणी द्वारा अपनी किशोरावस्था में ही विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का आग्रह सिंधवासियों से किया जाता था एवं उस समय पर भी सिंध प्रांत के नागरिकों में स्वावलम्बन का भाव जगाने का प्रयास हेमू कालाणी द्वारा किया जा रहा था। मां भारती के प्रति तो उनके मन में एक विशेष भाव था एवं अंग्रेजों की हुकूमत उन्हें बिलकुल भी रास नहीं आती थी इसलिए अल्पायु में ही वे सिंधवासियों का आवहान करते नजर आते थे कि वे केवल देश में निर्मित वस्तुओं का ही उपयोग करें जिससे भारतीय नागरिकों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जा सके।अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ मात्र 19 साल की उम्र में हेमू कालाणी ने जो किया, इस पर पूरे देश को आज भी गर्व है। वर्ष 1942 में “करो या मरो”, “अंग्रेजों भारत छोड़ो”, के नारों में एक आवाज हेमू कालाणी की भी थी। सिंध प्रांत के सक्खर शहर में देश की आजादी के लिए कार्य कर रही संस्था “स्वराज्य सेना” के एक युवक ने हेमू कालाणी को यह जानकारी दी कि आजादी के लिए प्रयासरत आंदोलनकारियों को कुचलने और उनका दमन करने के लिए रोहड़ी (सिंध) से अंग्रेज सैनिकों एवं हथियारों से भरी एक विशेष रेलगाड़ी सक्खर से होकर बलूचिस्तान की ओर जाने वाली है। यह सुनकर हेमू कालाणी और उनके जाबांज साथी रेल ट्रैक पर गए और रेल की पटरी के नट बोल्ट खोलने लगे, परंतु हेमू कालाणी पर अंग्रेज सिपाहियों की नजर पड़ गई और उसे पकड़कर लिया गया कर फिर जेल भेज दिया गया। आजादी के दीवाने मात्र 19 साल के इस जवान का हौसला ही था कि पकड़े जाने व घोर यातनाओं को सहन करने के बाद भी उसने अंग्रेजों को यह राज नहीं बताया कि पटरियों के नट बोल्ट खोलने में उसके और कौन कौन साथी थे। हेमू कालाणी के हौसले एवं उसकी देश भक्ति के आगे हार कर अंग्रेजों द्वारा 21 जनवरी 1943 को प्रातः सक्खर (सिंध) के केंद्रीय कारागार में हेमू कालाणी को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इससे पूरा देश गमगीन हो गया। देश के युवाओं में बदले का भाव जगा और वे भी अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हो गए एवं इस प्रकार अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन और अधिक तेज हो गया।कालांतर में आजादी के मतवाले अमर शहीद हेमू कालाणी को श्रद्धांजलि प्रदान करने के उद्देश्य से हेमू कालाणी जी की माताजी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज के सेनानियों द्वारा स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया गया था। 14 अक्टोबर 1983 को भारतीय डाक व तार विभाग द्वारा अमर शहीद श्री हेमू कालाणी की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया गया था एवं भारत के संसद भवन में 21 अगस्त 2003 को हेमू कालाणी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इस प्रतिमा का लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी द्वारा किया गया था। साथ ही, देश के कई भागों में अमर शहीद हेमू कालाणी के नाम पर कई मार्गों का नामकरण किया गया है एवं कई प्रसिद्ध चौराहों पर हेमू कालाणी की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। जैसे, इंदौर में उज्जैन मार्ग पर शहीद हेमू कालाणी नगर के नाम से एक कालोनी विकसित की गई है, इंदौर में ही एक चौक का नामकरण हेमू कालाणी के नाम पर करके उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है, ग्वालियर के एक व्यस्ततम मार्ग, बाड़ा चौक पर हेमू कालाणी की प्रतिमा स्थापित की गई है, मुंबई के चेम्बूर उपनगर में एक मार्ग का नाम हेमू कालाणी मार्ग रखा गया है, उल्हासनगर जो सिंधुनगर भी कहलाता है में भी हेमू कालाणी की एक प्रतिमा एक चौक पर स्थापित की गई है, जोधपुर (राजस्थान) में एक चौक का नामकरण हेमू कालाणी के नाम पर करके उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है, संसद भवन प्रांगण में डिप्टी स्पीकर के कार्यालय के सामने हेमू कालाणी की एक प्रतिमा स्थापित की गई है, अजमेर (राजस्थान) में दिग्गी बाजार चौक में शहीद हेमू कालाणी के प्रतिमा स्थापित की गई है एवं फैजाबाद शहर के अयोध्या मार्ग पर स्थित एक राजकीय पार्क का नामकरण हेमू कालाणी पार्क किया गया है एवं इस पार्क के बीच में हेमू कालाणी की एक 15 फुट की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। 23 मार्च 2022 से अमर शहीद हेमू कालाणी का जन्मशताब्दी वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। अमर शहीद हेमू कालाणी का जन्म एवं मृत्यु अखंड-अविभाज्य भारत में हुआ है जो आज हम सभी को एक पवित्र संकल्प का स्मरण कराता है। अतः देश में समस्त सिंधी समाज सहित हम समस्त नागरिकों को इस संकल्प को लेकर देश की एकता एवं अखंडता के लिए आगे आना चाहिए एवं सिंधु के जल का अभिषेक करना एवं कराना चाहिए। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों से भी आग्रह है कि आजादी के दीवाने अमर शहीद हेमू कालाणी के जन्मशताब्दी समारोह (दिनांक 23 मार्च 2022 से 23 मार्च 2023 तक) को, विशाल रूप में मनाया जाकर, यादगार बनाया जाना चाहिए ताकि देश के युवा अमर शहीद श्री हेमू कालाणी के बलिदान से प्रेरणा लेकर समय आने पर मां भारती के लिए अपने प्राण भी न्यौशावर करने को तैयार रहें। हेमू ने ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ नारे के साथ सिंधवासी में जोश और स्वाभिमान भर दिया। वे विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार एवं स्वदेशी अपनाने का स्वावलंबन सूत्र भी देशवासियों को दे रहे थे। विदेशी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का संकल्प लेकर वह स्वतंत्रता आंदोलन की सक्रिय गतिविधियों में शामिल हो गए। गोपनीय सूत्रों से सिंध के क्रांतिकारियों को जानकारी मिली कि बलूचिस्तान में चल रहे उग्र आंदोलन को कुचलने के लिए 23 अक्टूबर,1942 की रात अंग्रेज सैनिकों, हथियारों व बारूद से भरी रेलगाड़ी सिंध के रोहिणी स्टेशन से रवाना होकर सक्खर शहर से गुजरती हुई बलूचिस्तान के क्वेटा नगर जाएगी। यह समाचार सुनकर सक्खर के 19 वर्षीय छात्र हेमू कालाणी ने रेलगाड़ी को गिराने का दायित्व अपने ऊपर लिया,जिसमें उनके साथ दो सहयोगी नंद और किशन भी थे। रेलगाड़ी गुजरने से पहले ही तीनों नवयुवक एक सुनसान स्थल पर पहुंचे। हेमू का हर बार यही उत्तर होता था, ‘मेरे दो साथी थे—रिंच और हथौड़ा।’ सक्खर की मार्शल ला कोर्ट ने देशद्रोह के अपराध में 19 वर्ष कुछ माह होने के कारण हेमू कालाणी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अनुमोदन के लिए निर्णय हैदराबाद (सिंध) स्थित सेना मुख्यालय के प्रमुख अधिकारी कर्नल रिचर्डसन के पास भेजा गया। ब्रिटिशराज का खतरनाक शत्रु करार देते हुए कर्नल रिचर्डसन ने हेमू कालाणी की सजा को फांसी में बदल दिया। 21 जनवरी, 1943 को प्रात: सात बजकर 55 मिनट पर हेमू कालाणी को फांसी पर लटकाया गया। हेमू ने ‘इंकलाब-जिंदाबाद’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते हुए खुद अपने हाथों से फंदा गले में डाला,मानो फूलों की माला पहन रहे हों। मात्र 19 वर्ष की आयु में अमर शहीद हेमू कालाणी का प्राणोत्सर्ग सदैव याद रखा जाएगा। स्वतंत्रता के बाद संसद परिसर में उनकी प्रतिमा स्थापित हुई और भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों से भी आग्रह है कि आजादी के दीवाने अमर शहीद श्री हेमू कालाणी के  जन्मशताब्दी समारोह (दिनांक 23 मार्च 2022 से 23 मार्च 2023 तक) को, विशाल रूप में मनाया जाकर, यादगार बनाया जाना चाहिए ताकि देश के युवा अमर शहीद श्री हेमू कालाणी के बलिदान से प्रेरणा लेकर समय आने पर मां भारती के लिए अपने प्राण भी न्यौशावर करने को तैयार रहें।

 

लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं।

दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

 

 

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