दुनिया समझेगी मोटे अनाज की ताकत लेकिन खाद्य क्रांति अभी दूर है डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
वैश्विक परिदृश्य में मोटे अनाज के उत्पादन की बात करें तो यहां भारत सबसे आगे है। 2020 में, वैश्विक उत्पादन 30.5 मिलियन टन था। दुनिया भर में 32 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि में इसकी खेती की जाती हैं। भारत, नाइजर और चीन दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक हैं, जिनका वैश्विक उत्पादन में 55.0% से अधिक हिस्सा है। इनके बाद नाइजीरिया, माली और इथोपिया का नंबर आता है। बदलते जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के वर्षों में, अफ्रीका में मोटे अन्न के उत्पादन में अचानक वृद्धि हुई है। हमारे देश में खेती करने के तौर-तरीक़ों में बहुत तेज़ी से परिवर्तन हो रहे हैं। भारत सरकार ने परम्परागत खेती को बढ़ावा देने के लिए अनेक नीतिगत निर्णय लिये हैं तथाबजट में पर्याप्त निधि आवंटित की गई है। जैविक खेती व मोटे अनाजों की खेती के उत्पादों का राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय
बाज़ारों में व्यापार बढ़ाने के लिए अथक प्रयास किए जा रहे हैं। बदलते पर्यावरण और बढ़ती जनसंख्या की भरण-पोषण की चिंता के बीच भारत के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र की ओर से वर्ष 2023 को मिलेट ईयर या मोटे अनाजों का
वर्ष घोषित किया गया है। अफ्रीका महाद्वीप सर्वाधिक मोटे अनाजों का उत्पादन करने वाला महाद्वीप है। यहाँ 489 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाजों की खेती की जाती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट्स रिसर्च हैदराबाद के अनुमान के
अनुसार भारत एशिया का 80 प्रतिशत व विश्व का 20 प्रतिशत उत्पादन करता है। हरित क्रांति के बाद इन फसलों के क्षेत्रफल में निरंतर कमी आती रही है। एफएओ के अनुसार, वर्ष 2020 में मोटे अनाजों का विश्व उत्पादन
30.464 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) था और भारत की हिस्सेदारी 12.49 एमएमटी थी, जो कुल मोटे अनाजों के उत्पादन का 41 प्रतिशत है। भारत ने 2021-22 में मोटे अनाजों के उत्पादन में 27 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, जबकि पिछले वर्ष यह उत्पादन 15.92 एमएमटी था।एक जनवरी 2023 से अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज साल आरम्भ हो गया है इसके फलस्वरूप सभी घरों की थालियों से गायब हो चुके मोटे अनाज के दिन फिर से बहुरने वाले
हैं. मोटा अनाज और उनकी कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए स्वयं पीएम के नेतृत्व में हिंदुस्तान गवर्नमेंट ने कमर कस ली है. हिंदुस्तान इस साल शंघाई क्षेत्रीय योगदान संगठन (एससीओ) तथा जी-20 जैसे अंतर्राष्ट्रीय समूहों की
अध्यक्षता कर रहा है. राष्ट्र के 55 शहरों में जी-20 सम्मेलन होने जा रहे हैं इसके अतिरिक्त भी इस साल कई मेगा इवेंट राष्ट्र में होने जा रहे हैं. मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए इन अवसरों का भरपूर फायदा लिया जायेगा. सभी सम्मेलनों में कृषि मंत्रालय और खाद्य मंत्रालय तथा राज्य सरकारों के योगदान से मोटे अनाजों से बने
उत्पादों का ही प्रदर्शन किया जायेगा और राष्ट्र विदेश से आ रहे सभी मेहमानों को मोटे अनाज से बने व्यंजन परोसे जाएंगे जिससे उनका डंका विश्व भर में बजना तय हो गया है.मोटे अनाज का प्रचलन बढ़ने से जनसामान्य सहित
किसानों को फायदा मिलने की बड़ी सम्भावना है. एक ओर इससे कुपोषण की परेशानी से निपटने का नया और आसान मार्ग मिलेगा वहीं दूसरी ओर इससे किसानों की आय दोगुनी होने का मार्ग भी प्रशस्त होगा. यही कारण
है कि मोटा अनाज साल में एक ओर किसानों को इन अनाजों की खेती करने के लिए सतर्क किया जाएगा और दूसरी ओर लोगों को मोटे अनाज के महत्व से अवगत कराया जाएगा जिससे इनकी खपत बढ़े और किसान इनकी खेती में रूचि दिखाएं. इसके अतिरिक्त मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए गवर्नमेंट ने इस साल मोटे अनाज के समर्थन मूल्यों में भी वृद्धि कर दी है. एक समय था जब हिंदुस्तान की हर थाली में सिर्फ ज्वार, बाजरा, रागी, चीना,
कोदो, सांवा, कुटकी, कुटटू और चौलाई से बने हुए व्यंजन ही हुआ करते थे लेकिन फिर समय बदलता गया और आज स्थिति यह हो गयी है कि लोग इन अनाजों का महत्व तो दूर नाम भी भूल गए हैं. आज के वातावरण में जब घरों में बड़े बुजुर्ग इन अनाजों का नाम लेते हैं या नयी पीढ़ी को इनका महत्व बताते हैं तो या तो वो अचरज से सुनती है या नाम सुनते ही मुंह बनाने लगती है. मोटा अनाज साल के माध्यम से नयी पीढ़ी के लोग भी इन अनाजों का वैज्ञानिक आधार पर महत्व समझेंगे और स्वीकार करेंगे और जब स्वीकार करेंगे तब वह भी इनकी खेती और इनसे बने नयेव्यं जनों को बनाकर स्टार्टअप्स और नवाचार भी कर सकेंगे. पिछले कुछ दिनों की चर्चा से ही राष्ट्र के कई युवा उद्यमियों ने ज्वार, बाजरा सहित अन्य मोटे अनाज से बनने वाले कई तरह के व्यंजनों पर नवाचार आरम्भ भी करदिया है. ज्वार, बाजरा के आटे से दोसा बन रहा है, लड्डू बन रहा है और पापड़ भी बन रहे हैं.दिसंबर 2022 में
न्यूयॉर्क में संयुक्त देश महासभा की बैठक में विदेश मंत्री ने पूरे विश्व के राजदूतों को मोटे अनाज से बने व्यंजनों कीदावत दी, राजधानी दिल्ली में संसद सत्र के दौरान सभी सांसदों को मोटे अनाज से बने व्यंजन परोसे गये और उन्हें मोटा अनाज साल के संबंध में अहम जानकारी दी गई. अब मोटे अनाज की दावतों का सिलसिला सम्पूर्ण हिंदुस्तान ही नहीं वरन सम्पूर्ण विश्व में चल रहा है. 2018 में हिंदुस्तान गवर्नमेंट ने मोटे अनाजों को पोषक अनाज की श्रेणी में रखते हुए इन्हें बढ़ावा देने की आरंभ की थी तब से गवर्नमेंट की ओर से उठाये गये कदमों का सकारात्मक असर अब सामने आने लगा है. वर्तमान समय में 175 स्टार्टअप इस दिशा में काम कर रहे हैं. मार्च 2021 में संयुक्त देश महासभा द्वारा हिंदुस्तान की ओर से प्रस्तुत एक प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया जिसके भीतर साल 2023 को मोटा अनाज साल घोषित किया गया. मोटा अनाज साल का उद्देश्य बदलती जलवायु परिस्थितियों में मोटे अनाज के पोषण और स्वास्थ्य फायदा और इसकी खेती के लिए उपयुक्तता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है.मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, कुटकी, कोदो, सांवा आदि शामिल हैं. हम सभी को यह भी पता होना चाहिए कि अप्रैल 2016 में संयुक्त देश महासभा ने भूख को मिटाने और पूरे विश्व में कुपोषण
के सभी प्रकारों की रोकथाम की जरूरत को मान्यता देते हुए 2016 से 2025 तक पोषण पर संयुक्त देश कार्रवाई दशक की भी घोषणा की थी. मोटा अनाज उपभोक्ता, उत्पादक और जलवायु तीनों के लिए अच्छा माना गया है. ये
पौष्टिक होने के साथ कम पानी वाली सिंचाई से भी उगाए जा सकते हैं. जानकारों का मत है कि कुपोषण मुक्त और टिकाऊ भविष्य बनाने के लिये मोटे अनाज की अहम किरदार होगी और इसके लिए राष्ट्रों को मिलकर काम करने
की जरूरत है.मोटे अनाज को प्रोत्साहन वर्तमान समय की मांग भी है क्योंकि यह अनाज आधुनिक जीवन शैली में परिवर्तन के कारण सामने आ रहीकई रोंगों और कुपोषण को रोकने में सक्षम है. केंद्र गवर्नमेंट ने मोटा अनाज साल को सफल बनाने के लिए काफी समय पूर्व से ही तैयारियां प्रारंभ कर दी थीं और अब यह सफलतापूर्वक धरातल पर उतरने को तत्पर हैं. मोटा अनाज साल को सफल बनाने के लिएकेंद्र गवर्नमेंट कई योजनाएं लेकर आई है. राशन प्रणाली के अनुसार मोटे अनाजों के वितरण पर जोर दिया जा रहा है. आंगनबाड़ी और मध्याह्न भोजन
योजना में भी मोटे अनाजों को शामिल कर लिया गया है. पीएम ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोटे अनाजों से बने व्यंजनों का उल्लेख करते रहते हैं. सर्वाधिक जरूरी बात यह है कि अब ”मोटा अनाज, खाओ और प्रभु के गुण गाओ”
का नारा खूब चलने वाला है. मोटा आनाज पोषण का सर्वश्रेष्ठ आहार बोला जाता है. मोटे अनाज में 7 से 12 फीसदी प्रोटीन, 65 से 75 फीसदी कार्बोहाइड्रेट और 15 से 20 फीसदी डायटरी फाइबर तथा 5 फीसदी तक वसा मौजूद रहता है जिसके कारण यह कुपोषण से लड़ने में सक्षम पाया जाता है. मोटे अनाज का आयुर्वेद में भी बहुत महत्व है.भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही मोटे अनाज की खेती के प्रमाण मिलते हैं तथा विश्व के 131 राष्ट्रों में इनकी खेती होती है. मोटे अनाज के अंतरराष्ट्रीय उत्पादन में हिंदुस्तान की हिस्सेदारी 20 फीसदी और
एशिया में 80 फीसदी है. ज्वार के उत्पादन में हिंदुस्तान विश्व में प्रथम जगह पर है. हिंदुस्तान में ज्वार का सर्वाधिक उत्पादन महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और मध्य प्रदेश में होता है. बाजरे के उत्पादन में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक आगे हैं.मोटा अनाज साल में हम सभी को बढ़ चढ़कर भाग लेना चाहिए और अपने भोजन में इसको नियमित रूप से जगह देना चाहिए क्योंकि इसमें कई विषेषतएं होती हैं. पोषण के मुद्दे में यह अनाज अन्य अनाजों- गेहूं और धान की तुलना में बहुत आगे हैं. इनकी खेती सस्ती और कम पानी वाली होती है. मोटे अनाज का भंडारण आसान होता है. भोजन में
इन अनाजों को शामिल करने से स्वास्थ्य संबंधी कई बड़ी परेशानियों से बचना संभव हो सकता है. यही कारण है कि
आज मोटा अनाज के प्रति गवर्नमेंट किसानों को सतर्क करने के लिए देशभर में विशेष जागरूकता अभियान चलाने
जा रही है ताकि राष्ट्र के किसान अधिक से अधिक मात्रा में इन अनाजों की खेती करें और अपनी कमाई दोगुनी करें. किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से पहल प्रारम्भ की जा
रही है तथा भविष्य में राष्ट्र के अन्य कई कृषि यूनिवर्सिटी इस अभियान में जुड़ेंगे. मोटे अनाजों के कुल उत्पादन का41 प्रतिशत उत्पादन भारत अकेले करता है. फूड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में मोटे अनाजों का कुल उत्पादन 30.464 मिलीयन मीट्रिक टन ( एमएमटी ) हुआ. इसमें भारत की हिस्सेदारी 12.49एमएमटी की थी. जो कुल मोटे उत्पादन का 41 प्रतिशत है. भारत में 2021-22 में मोटे अनाजों के उत्पादन में 27
प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इससे पहले के वर्ष ( 2020-21 ) में यह उत्पादन 15.92 एमएमटी था.यूं तो भारत में मोटे अनाजों का उत्पादन हर राज्य में ही होता है लेकिन पांच राज्यों में विशेष तौर पर इनका उत्पादन होता है. ये राज्य हैं राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश. अभी फिलहाल अनाज निर्यात में मोटे अनाजों का कुल हिस्सा महज एक प्रतिशत है लेकिन उम्मीद है कि 2025 तक यह अभी के 9 बिलीयन डॉलर से बढ़कर 12 बिलीयन डॉलर हो जाएगा. एपीडा के अनुसार मोटे अनाजों का निर्यात बढ़ रहा है। ज्वार, बाजरा, प्रमुख निर्यातक फसलें हैं। इंडोनेशिया, बेल्जियम, जर्मनी, मैक्सिको, इटली, अमेरिका, ब्रिटेन, ब्राज़ील और नीदरलैंड प्रमुख आयातक देश
हैं। एपीडा द्वारा मोटे अनाजों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है। मोटे अनाजों के तहत ज्वार, बाजरा, कंगनी, कोदो, सावां, चेना, रागी, कुटटू, चौलई, कुटकी आदि प्रमुख पौष्टिक फसलें है। इनमें रेशे, बी-
कॉम्प्लेक्स विटामिन, अमीनो एसिड, वसीय अम्ल, विटामिन- ई, आयरन, मैगनीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम,विटामिन बी- 6 व कैरोटीन ज़्यादा मात्रा में पाये जाते हैं। ग्लूकोज़ कम होने से मधुमेह का ख़तरा कम होता है।इसलिए इन फसलों को सुपर फ़ूड कहते हंै। यह फसलें कम पानी में अर्ध शुष्क क्षेत्रों में उगाई जा सकती हंै तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के परिणाम आसानी से सहन करने की क्षमता रखती है। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक होने से उत्पादन लागत बहुत कम हो जाती है। उच्च पोषण और बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करते हुए बदलती जलवायु परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता के कारण देश में मोटे अनाज को पुनर्जीवित करने में रुचि बढ़ रही है। मोटे अनाज की खेती और विपणन को बढ़ाने की दिशा में विभिन्न एजेंसियों द्वारा कई तरह की पहलों को बढ़ावा दिया जा रहा है। व्यापक प्रभाव के लिए प्रमुख प्राइवेट कम्पनियों, आपूर्ति श्रृंखला के हितधारकों जैसे एफपीओ,
स्टार्टअप, निर्यातकों और मोटे अनाजों पर आधारित गुणमूल्य संवर्धित उत्पादों के उत्पादकों के बीच एकीकृत दृष्टिकोण और नेटवर्किंग की महती आवश्यकता है।दुनिया के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भोजन और चारे के रूप में मोटे
अनाज, छोटे अनाज वाले घास के अनाज का एक समूह महत्वपूर्ण है। भारत में, मुख्य रूप से गरीब और सीमांत किसानों द्वारा और कई मामलों में आदिवासी समुदायों द्वारा शुष्क भूमि में मोटे अनाजों की खेती की जाती रही है।
इस देश में मोटे अनाजों की खेती को पुनर्जीवित करने के लिए बढ़ती रुचि पोषण, स्वास्थ्य और लचीलेपन के विचारों से प्रेरित है। ये अनाज शुष्क क्षेत्रों और उच्च तापमान पर अच्छी तरह से बढ़ते हैं; वे खराब मिट्टी, कम नमी
और महंगे रासायनिक कृषि आदानों से जूझ रहे लाखों गरीब और सीमांत किसानों के लिए आसान फसलें रही हैं।क्योंकि उनकी कठोरता और अच्छे पोषण की गुणवत्ता के कारण वे वास्तव में जलवायु परिवर्तन को अपनाने के लिए महत्वपूर्ण रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं। मोटे अनाज में कई लोगों की रुचि जग चुकी है और अगर अच्छी मार्केटिंग की जाए तो मोटे अनाज को निश्चित रूप से लोकप्रिय बनाया जा सकता है. लेखक दून विश्वविद्यालय
कार्यरत हैं।