*फीका न होने देंगे यह वर्दी का रंग!!!* *अर्जुन सिंह भंडारी*
बादल के आ जाने से सूरज की किरणे कोशिश कर बाहर आ ही जाती है,
सर्दी हो या गर्मी यह वर्दी जमाने की बुराईयों से डर कर अपने रंग में लिपटी अपनी पहचान को दगा नही देती।।
यह वर्दी ही तो है साहब-जो एक सिपाही को कभी भूलने नही देती की उसकी पहचान क्या है!! यह वर्दी ही तो है साहब जो उसको आम जनता का रखवाला बनाती है, और यह वर्दी ही तो है साहब जो उसे समाज में आलोचना के दौर को दरकिनार कर अपने फर्ज पर डटे रहने की याद दिलाता है।यह तस्वीर भी कुछ ऐसा बयां करती है। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर हुई है जिसमे मुरादाबाद के संभल फाटक पर दो सिपाही शायद ड्यूटी पर तैनात थे और इस बीच इस पुल पर यह लोहे के सरिये ले जाते इस व्यक्ति को चढ़ाई में गाड़ी खीचने में दिक्कत हो रही थी। उसमे से एक सिपाही ने बिना देरी किये उस गाड़ी चालक की गाड़ी को धक्का देकर उसकी सहायता करने में संकोच न किया।तभी यह तस्वीर किसी न अपने फोन में कैद कर ली।
इस तस्वीर में उस सिपाही द्वारा गाड़ी खिंचने वाले की ‘स्वाभाविक अंदाज़न’ सहायता करने की कोशिश समाज के उस हिस्से को जगाने के लिए काफी है जो अक्सर पुलिस की एक गलती पर आलोचनाओं की झड़ी लगा देते है और वर्दी पर पड़े एक छींटे को वर्दी दागदार कहने से पीछे नही हटते। यह तस्वीर कहीं न कहीं यह एक बात सोचने के लिए एक जरिया है जब हम कुछ गलत होने पर वर्दी की आलोचना कर सकते है तो वर्दी के ऐसे इंसानियत भरे काम को भी ज़ेहन में संजोय रखना समाज के इन पहरेदारों को सलाम करना चाहिए।
जय हिन्द! जय भारत!