नई दिल्ली

दिल्ली के नजदीक है ये गाँव जहाँ तैयार किये जाते है बाउंसरो की फ़ौज। 

 

 

 

दिल्ली/हरियाणा:- आज के भागमभाग जिन्दगी में  सेलिब्रिटी हो या नेता व संस्थान,पब,रेस्त्रां ,होटल, सभी को बाउंसर्स की जरूरत पड़नी आम बात हो गई। और  रसूख या अपने को हाईलाइट करने का ये भी अच्छा जरिया लोगों ने ईजाद कर लिया है। इसी को ध्यान में रखते हुए आज इसी कड़ी में हम बता रहे हैं दिल्ली के पास स्थित असोला-फतेहपुर बेरी नाम के इस गांव को बाउंसर्स के  गांव से पहचाना जाता है।

दिल्ली दिन में जितनी भागती दौड़ती दिखती है रात को उतनी ही जगमगाती भी है। लोग दिन की थकान मिटाने अलग-अलग क्लब जाते हैं। जिससे वे दो पल बैठकर आराम कर सकें और अपनो के साथ कुछ वक्त बिता सकें। यही मौज मस्ती आज एक नए पेशे को जन्म दे चुकी है। ये काम है बाउंसर का।

जिसमें गांवों के युवा अच्छे भविष्य के लिए शहर आने लगे हैं। दिल्ली में बसे दो गांव इसी लिए जाने जाते हैं, जहां हर दूसरा युवक बाउंसर है या फिर ट्रेनिंग ले रहा है। ट्रेनिंग के दौरान इनकी खुराख भी अच्छी रहती है। एक बाउंसर दिन में करीब 4 लीटर दूध और 2 किलो दही अनिवार्य है।

असोला-फतेहपुर बेरी, दो गांव ऐसे हैं, जहां के तकरीबन हर घर का एक बेटा बाउंसर ट्रेनिंग ले रहा है। इतना ही नहीं, बाउंसर्स ट्रेनिंग के बाद इन दोनों गांवों के हालात पहले से काफी बेहतर हो गए हैं।

गरीब किसानों के युवा अब अच्छी सैलरी वाले बाउंसर्स हो गए हैं। गांवों की 90 प्रतिशत से ज्यादा पुरुष यानी करीबन 50 हजार से ज्यादा युवा दिल्ली के सैकड़ों पबों में बाउंसर्स का काम कर रहे हैं।

‘इस गांव में एक भी ऐसा लड़का नहीं है, जो कभी जिम नहीं गया’ ये कहना है विजय पहलवान का, असोला गांव के एक अखाड़े के मुख्य ट्रेनर हैं। वे कहते हैं ‘ गांव के लड़के बचपन से अखाड़ों में आमद देना शुरू कर देते हैं। सभी लड़के कसरत करते हैं, वे सभी अपने शरीर को मजबूत बनाने के लिए जुटे रहते हैं।

इनमें से कोई भी शराब नहीं पीता और न ही तंबाकू खाता है।’ गांव के अखाड़ों में कसरत करने वाले लड़के भी अपने भविष्य को लेकर बेहद स्पष्ट हैं। उनके सामने सिर्फ एक गोल है- बाउंसर बनना।

जमकर बहाते पसीना

सुडौल शरीर बाउंसर अखाड़े, जिम में जमकर पसीना बहाते हैं। असोला गांव के किशन कहते हैं कि उनके गांव में कोई भी ऐसा लड़का नहीं होगा जो अखाड़े में ट्रेनिंग नं लेता हो।

वे कहते हैं कि आज से 10 साल पहले तो अखाड़ा ही अभ्यास स्थान होता था, लेकिन अब जिम खुल चुके हैं, जहां प्रतिदिन चार से पांच घंटे तक पसीना बहाना पड़ता है। इन्हें योगा का अभ्यास भी करना पड़ता है।

किशन कहते हैं कि राजधानी में उद्योग धंधे बढ़े और विकास हुआ तो उन स्थानों को भी फायदा हुआ जहां से ज्यादा बाउंसर आते हैं। इन जगहों पर लड़के बचपन से अखाड़ों में आना शुरू कर देते हैं। सभी लड़के कसरत करते हैं, वे शरीर को मजबूत बनानेके लिए जुटे रहते हैं। इनमें से कोई भी शराब नहीं पीता और न ही तंबाकू खाता है।

40 से 50 हजार रुपये की मासिक आय

एक बाउंसर रोजाना औसतन 1500 रुपये कमा लेता हैं और इस तरह वह महीने में 30 से 50 हजार रुपये कमा लेता है। किशन बताते हैं कि पहले बहुत कम आय होती थी, लेकिन हाल के समय में आय बढ़ गई है। चुनाव, खेलकूद, किसी विशेष आयोजन के दौरान घंटे के हिसाब से बाउंसर रखे जाते हैं।

चुनाव के दौरान तो राजनेताओं के साथ सुरक्षा में लगे बाउंसरों का बाकायदा कांट्रैक्ट होता है। अब तो कई ऐसी कंपनियां भी खुल गई हैं जो जरूरत व बजट के हिसाब से लोगों को बाउंसर उपलब्ध कराती हैं।

बाउंसर की खुराक

बाउंसर की डाइट, जिम ट्रेनर तय करते हैं। किशन कहते हैं कि बाउंसर बनने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इसलिए डाइट पर ज्यादा ध्यान देना पड़ता है। उन्हें एक खास डाइट प्लान के तहत चलना पड़ता है, जो उनके ट्रेनर तय करते हैं। इस डाइट में खास तौर पर एक छात्र को कम से कम 3 से 4 लीटर दूध पीना होता है। दर्जन भर केले और करीबन आधा किलो फल। लंच में 1.5 से 2 किलोग्राम दही, वह भी 3-4 फ्लैट ब्रेड के साथ। शाम को, फ्लैटब्रेड के 2 पीस और एक से 1.5 किलोग्राम बादाम मिला दूध पीना होता है। जो मासाहारी हैं, उनके लिए भी अलग डाइट प्लान है। मासाहारियों के लिए उबला चिकन, 10 अंडे की जर्दी (पीला वाला हिस्सा), दर्जन भर केले और दिन में कम से कम 10 लीटर दूध शामिल होता है।

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