कोरोनाकाल के चलते, विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी के दीदार को तरसे पर्यटक
चमोली:- उत्तराखंड के हिमालई क्षेत्र में स्थित फूलों की घाटी का अद्भुत प्राकृतिक व अलौकिक सौंदर्य रहा है, और यही वजह है कि लोग इसे पारलौकिक और परियों का संसार भी कहते हैं।
उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र चमोली जिले में स्थित वैली ऑफ फ्लावर्स जिसे आमतौर पर फूलों की घाटी कहा जाता है भारत का राष्ट्रीय उद्यान है।नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान सम्मिलित रूप में विश्व धरोहर स्थल घोषित हैं। वैली ऑफ फ्लावर्स नेशनल पार्क और नंदा देवी की दुर्गम उबड – खाबड पहाड़ियां एक दूसरे का पूरक हैं। वैली ऑफ फ्लावर्स की हरी-भरी वादियां नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान तक फैली हुई हैं। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान को 1988 में विश्व धरोहर में शामिल किया गया है।
इन दोनों स्थानों की खूबसूरती और हिमालय की श्रृंखला के बीच पर्यटकों और पर्वतारोहियों को लगभग एक शताब्दी से लुभाती रही है। राष्ट्रीय उद्यान – नंदा देवी और फूलों की घाटी को राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता है। पश्चिम हिमालय की घाटियों में स्थित वैली ऑफ फ्लावर्स स्थानीय अल्पाइन फूलों और दूर-दूर तक फैले हरे भरे घास के मैदानों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
प्राकृतिक रूप से समृद्ध यह स्थान लुप्त प्राय जानवरों जिनमें एशियाटिक, ब्लैक बियर, स्नो लैपर्ड, ब्राउन बियर और ब्लू शीप का प्राकृतिक आवास भी हैं। बर्फ से ढके पर्वतों से घिरा हुआ और फूलों की 500 से अधिक प्रजातियों से सजा क्षेत्र बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए प्रसिद्ध स्थल बन गया है।
खोज – इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्ड्सवर्थ ने लगाया था। प्रसिद्ध ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक 1931 में गढ़वाल स्थित कामेट शिखर (24,447 फुट) से सफल आरोहण के बाद धौलीगंगा के निकट गम शाली गांव से रास्ता भटक जाने के बाद पश्चिम की ओर बढ़ते चले गए।
वे 16700 ऊंचाई का दर्रा पार करते हुए भ्यूंडार घाटी पहुंचे। वहां से जब वह थोड़ा आगे बड़े तो उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। उन्हें अकल्पनीय खुशी का एहसास हुआ। हुए वहां के सौंदर्य को देखकर स्तब्ध रह गए और अपना टेंट वही गाड लिया। वहां से लौटने के बाद उन्हें इस घाटी की सुंदरता 1937 में दोबारा से यहां खींच लाई। यहां पहुंच कर उन्होंने गहन रिसर्च किया और लगभग 300 किस्म के फूलों की पर जातियों को ढूंढ निकाला।
भारतीय धार्मिक मान्यता के अनुसार किवदंती है कि रामायण काल में हनुमान जी संजीवनी बूटी की खोज में इसी घाटी में पधारे थे। मौसम – 87.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली यह घाटी नवंबर-दिसंबर से अप्रैल-मई तक बर्फ से पूरी तरह ढकी रहती है।जून में जब बर्फ पर चलने की शुरुआत होती है तो यह क्षेत्र हरियाली की चादर ओढ़ लेती है।
जुलाई तक यहां के पौधों में फूल महकने लग जाते हैं।अगस्त में फूलों की घाटी सबसे सुंदर नजर आती है क्योंकि इस दौरान फूल पूरी तरह खिल चुके होते हैं। लेकिन अक्टूबर में फूल धीरे-धीरे मुरझाने शुरू हो जाते हैं। पर्यटक -हर वर्ष देश-विदेश के पर्यटक फूलों की घाटी के दीदार के लिए हजारों की संख्या में पहुंचते हैं।
लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के चलते पर्यटक फूलों की घाटी के दीदार नहीं कर पा रहे हैं।