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उत्तराखंड के संस्कृतिक जगत ने सच्चा हीरा खो दिया- विजय बहुगुणा

उत्तराखंड के संस्कृतिक जगत ने सच्चा हीरा खो दिया- विजय बहुगुणा उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने आज चिन्हित राज्य आन्दोलनकारी समिति द्वारा मशहूर लोक गायक हीरा सिंह राणा की स्मृति में आयोजित एक वीडियो कॉन्फ्रेंस श्रद्धांजलि बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि हीरा सिंह राणा के निधन से “उत्तराखंड के सांस्कृतिक जगत ने “एक सच्चा हीरा” खो दिया
चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति के मुख्य संरक्षक व पूर्व मंत्री धीरेंद्र प्रताप के संयोजन में आयोजित इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए श्री विजय बहुगुणा जो करीब 4 वर्ष बाद किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में पहली बार आए थे उन्होंने कहा की हीरा सिंह राणा के निधन को वह राज्य केलिए एक महान क्षति मानते हैं ।उन्होंने कहा कि उनके हीरा सिंह राणा से निजी संबंध थे। और वह उनके गीतों के कायल थे। उन्होंने कहा कि हीरा सिंह राणा के गीतों में उन्हें पहाड़ों की पीड़ा दिखाई देती थी ।उन्होंने कहा उनके गीत चिरंजीवी रहे इसके हमें भरसक प्रयास करने चाहिए। उनकी स्मृति में भावविभोर होकर उन्होंने कहा कि “एक बार उन्होंने हीरा सिंह राणा से पूछा था उत्तराखंड बनने से उन्हें क्या मिला उन्होंने गौरव से कहा था कि “पहले हमें कुमाऊनी और गढ़वाली के नाम से जाना जाता था लेकिन अब हमारी पहचान उत्तराखंडी के तौर पर हुई है जिसका हमें बहुत गौरव है।” उन्होंने कहा उनके जाने से एक युग का अंत हो गया है। उन्होंने कहा उनकी लेखनी और वाणी में एक सार और समानता थी। उन्होंने उनके गीतों को उत्तराखंड के पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग उठाई और कहा कि वे मुख्यमंत्री से कहेंगे कि उनके गीतों को माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। उत्तराखंड की प्रतिपक्ष की नेता डॉक्टर इंदिरा ह्रिदयेश ने हीरा सिंह राणा को उत्तराखंड की धरती का महान लोक गायक बताते हुए कहा कि उनके निधन से उत्तराखंड का संगीत जगत कमजोर हो खया है ।।            उन्होंने कहा हीरा सिंह राणा के गीतों में देहात की पीड़ा ,पहाड़ी माताओं का क्रंदन पलायन व खनन खड़िया वनों की पीड़ा प्रमुख थी। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने हीरा सिंह राणा को राज्य आंदोलन का अजेय कवि व् लोक गायक बताया । सुप्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने उन्हें कुमाऊनी भाषा का श्रेष्ठतम लोक कलाकार बताया और कहा कि उन्होंने उनके साथ 100 से अधिक कार्यक्रमों में भागीदारी की और वह उन्हें कभी नहीं भूल सकेंगे। उन्होंने उत्तराखंडी धरती का सच्चा कलाकार बताया। पदम श्री बसंती बिष्ट ने उन्हें कुमाऊनी और गढ़वाली भाषा पर साधिकार गीतों की रचना करने और स्वयं गाने गाने वाला एक जादूगर गीतकार बताया। जिसका गढ़वाली कुमाऊनी और जौनसारी भाषा के गीतों पर समान अधिकार था। गायिका संगीता धौंडियाल फिल्म अभिनेत्री सविता ध्यानी स्वर्गीय चंद्र सिंह राही के सुपुत्र और गायक वीरेंद्र नेगी राही ने भी हीरा सिंह राणा को याद किया व उनके परिवार की खराब माली हालत का जिक्र करते हुए उनके परिवार को तत्काल आर्थिक सहायता व उनके पुत्र को सरकारी नौकरी दिए जाने की मांग उठाई। राज्य आंदोलन के बड़े नेता काशी सिंह ऐरी,पीसी तिवारी,धीरेन्द्र प्रताप, जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण पूर्व विधायक व कांग्रेस उपाध्यक्ष रणजीत सिंह रावत, कांग्रेस के संयुक्त सचिव हरिपाल रावत, आंदोलनकारी समिति के अध्यक्ष हरिकिशन भट्ट प्रमुख राज्य आंदोलनकारियों नवीन मुरारी, अनिल जोशी डॉ विजेंद्र पोखरियाल, जी एस रमोला, नंदन सिंह रावत मनमोहन शाह जाने-माने पत्रकार व लेखक प्रदीप वेदवाल दैनिक जयंत के संपादक नागेंद्र उनियाल समेत सभी वक्ताओं ने हीरा सिंह राणा के गायन के क्षेत्र में और राज्य निर्माण आंदोलन के क्षेत्र में योगदान का विशेष उल्लेख करते हुए उनके अमर गीत
” लश्कया कमर बांधा, हिम्मत का साथा” का बार-बार जिक्र किया और कहा कि उनका यह कालजई गीत सदैव उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारियों को नए उत्साह से प्रेरित करता था, जिसे वर्षों तक भुलाना मुश्किल होगा
श्रद्धांजलि सभा में सभा के संयोजक धीरेंद्र प्रताप के उस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया जिसमें स्वर्गीय हीरा सिंह राणा की स्मृति में उत्तराखंड में किसी सड़क संस्थान या योजना का नाम रखे जाने व उनके परिवार को आर्थिक सहायता दिए जाने के साथ-साथ उनके पुत्र को सरकारी नौकरी दिए जाने की सरकार से मांग उठाई गई। करीब 2 घंटे चली इस कॉन्फ्रेंस में दो दर्जन से ज्यादा वक्ताओं ने हीरा सिंह राणा का भावपूर्ण स्मरण किया। धीरेंद्र प्रताप ने कोरोना की वजह से कलाकारों की खराब दशा को लेकर एक आर्थिक पैकेज का प्रस्ताव भी कॉन्फ्रेंस में रखा जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।

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