उत्तराखंड में जेल मैन्युअल अब नई सरकार के आने पर ही लागू हो सकेगा? डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में जेल के वर्षों पुराने कानून की जगह नया माडल जेल मैन्युअल (नियमावली) केंद्र के दिशा-निर्देशों के तीन वर्ष बाद भी लागू नहीं हो पाया है। यह स्थिति तब है जब इसके लिए बाकायदा समिति का गठन किया गया है। समिति ने इस पर एक रिपोर्ट दी, लेकिन इसमें सुधार की गुंजाइश देखते हुए इसे दोबारा समिति को लौटाया गया। इसके बाद से ही अभी तक यह मूर्त रूप नहीं ले पाया है देश भर में जेलों की हालत में सुधार लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2019 में सभी राज्यों को वर्षों पुराने जेल मैन्युअल के स्थान पर नया जेल मैन्युअल बनाने को कहा था। इसके लिए केंद्र का मैन्युअल भी जारी किया गया। केंद्र सरकार द्वारा जारी मैन्युअल में कैदियों की सुविधाओं, विशेषकर स्वास्थ्य आदि पर काफी फोकस किया है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि बैरक में कितने कैदी रहेंगे और इन्हें क्या सुविधा दी जाएगी। इसमें कैदियों की पढ़ाई के साथ ही स्वरोजगार परक शिक्षा पर जोर दिया गया है। कहा गया कि राज्य अपनी स्थिति के हिसाब से इसमें कुछ आवश्यक परिवर्तन कर सकते हैं। इस कड़ी में उत्तराखंड में भी इसके लिए तैयारियां शुरू की गईं और तत्कालीन सचिव गृह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति में अपर सचिव न्याय और महानिरीक्षक जेल को शामिल किया गया। इस समिति का काम केंद्र के मैन्युअल का अध्ययन कर प्रदेश का अपना अलग मैन्युअल बनाना था। दरअसल, उत्तराखंड में अभी तक वर्षों पुराने जेल मैन्युअल के मुताबिक ही काम चल रहा है। यहां जेलों की हालत बहुत अच्छी नहीं है। उत्तराखंड में 13 जेल हैं, जिनकी कैदी रखने की क्षमता तकरीबन 3500 है। इसके सापेक्ष जेलों में पांच हजार से अधिक कैदी रखे गए हैं, जिन्हें पूरी सुविधा नहीं मिल पा रही है।जेल मैन्युअल बनाने के लिए गठित समिति ने मैन्युअल पर काम करना शुरू कर दिया था। इस बीच वर्ष 2020 में कोरोना ने दस्तक दी और लाकडाउन लग गया। 2021 में इस पर फिर से काम शुरू होना था लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कारण फिर बात आगे नहीं बढ़ पाई। अब सचिव गृह व महानिरीक्षक जेल समेत समिति में शामिल सदस्य बदल चुके हैं। राज्य में चुनाव की आचार संहिता के कारण काम रुके हुए हैं। इस कारण यह मैन्युअल अब नई सरकार के आने पर ही लागू हो सकेगा। प्रदेश की जेलों को अत्याधुनिक बनाने की बातें तो की जा रही हैं, लेकिन सरकार जेलों को मिलने वाले वार्षिक बजट को बढ़ाने के बजाय घटाने में लगी है। 2018-19 की तुलना में 2020-21 में प्रदेश की जेलों के लिए 52 प्रतिशत कम बजट जारी किया गया। 2018-19 में जेलों के लिए 65.8 करोड़ बजट जारी किया था। जबकि 2019-20 में 55.9 करोड़ रुपये जारी हुए और 2020-21 में 31.2 करोड़ रुपये दिए गए। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से यह आंकड़े जारी किए गए हैं। प्रदेश की 11 जेलों में लंबे समय से कार्मिकों की भर्ती नहीं हुई है। इस कारण सुरक्षा व्यवस्था बनाने में भी दिक्कतें पेश आती हैं। प्रदेश की नौ जेल व दो सब जेल में 1067 स्वीकृत पद हैं, मगर इनमें से 637 पद भरे हुए हैं और 430 पद खाली चल रहे हैं। स्टाफ की भारी कमी के कारण जेलों में नशा, रंगदारी व मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया जा रहा है। पिछले दिनों अल्मोड़ा जेल में मोबाइल मिलने व नशा तस्करी की दो घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जबकि पौड़ी जेल से मोबाइल व रंगदारी मांगने का मामला सामने आया था। उत्तराखंड की स्पेशल टास्क फोर्स ने इसका पर्दाफाश किया था, लेकिन स्टाफ की कमी के कारण जेल प्रशासन कैदियों से साठगांठ करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाया। जेल स्टाफ को प्रशिक्षित करने के लिए हर साल रिफ्रेशर, स्पेशलाइज्ड और ओरिएंटेशन कोर्स जरूरी हैं। 2020 में केवल 13 अधिकारियों व कर्मचारियों को कोर्स करवाया गया। वहीं, जेलों के नवीनीकरण करने में भी उत्तराखंड पीछे है। बजट के अभाव के चलते 2020 के दौरान सिर्फ एक ही सब जेल का नवीनीकरण हो पाया है। जबकि कई जेलों की बैरकों की स्थिति खराब है, जिनके नवीनीकरण के लिए कई बार प्रस्ताव भेजे जा चुके हैं। अपराध बढ़ने पर जेलों में कैदियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई, लेकिन सुविधाएं व स्टाफ कम होता जा रहा है। 2018 में प्रदेश की नौ जेल व दो सब जेलों में 3540 कैदियों को रखने की क्षमता थी, जिसके सापेक्ष 5311 कैदी रखे गए थे। 2019 में क्षमता तो वही रही, लेकिन कैदियों की संख्या बढ़कर 5629 हो गई। 2020 में 5969 कैदी रखे गए। मौजूदा समय में जेलों की क्षमता 3450 ही है, लेकिन कैदियों संख्या 5800 से अधिक हो गई है। महिला अपराधियों के लिए अलग से कोई जेल ही नहीं है। ऐसे में उन्हें सामान्य जेलों में ही रखा जाता है। प्रदेश की जेलों में 2018, 2019 और 2020 में क्रमश: 134, 154 व 154 महिला कैदियों को रखने की क्षमता थी। इनमें 2018 में 221, 2019 में 262 और 2020 में 241 महिला कैदियों को रखा गया है। महिला कैदियों की सुरक्षा के लिए जेलों में अलग से कोई जेल सुपरिटेंडेंट व डिप्टी जेल सुपरिटेंडेंट भी तैनात नहीं है। डीआइजी जेल ने बताया कि 2018-19 के मुकाबले 2020 व 2021 में बजट कम मिला है। इस बार जेलों के नवीनीकरण व स्टाफ बढ़ाने को लेकर बजट अब यह शासन पर निर्भर है कि कितना बजट पास किया जाता है। चुनाव उन्हीं मुद्दों पर लड़े जाते हैं जिन पर राजनीतिक दलों को जनता का झुकाव दिखता है। इसीलिए चुनाव में अस्पताल, शिक्षा, सड़क ही मुद्दे बनाए जाते हैं।जेल की गतिविधियों पर नहीं है। राजनीतिक दल घोषणा पत्रों में जेल का नवीनीकरण के मुद्दों को शामिल नहीं करेंगे।
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।