पारा चढ़ने के साथ उत्तराखंड में धधकी आग डॉ.हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में शुष्क मौसम में पारा चढ़ने के साथ ही जंगल धधकने का सिलसिला फिर शुरू हो गया है। मार्च में मौसम की मेहरबानी के चलते प्रदेश में जमकर वर्षा हुई और जंगल की आग से राहत रही। हालांकि, अप्रैल में शुरुआत से ही मौसम शुष्क बना हुआ है।खासकर बीते तीन दिन से पारे में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में दो दिन के भीतर प्रदेश में जंगल की आग की 14 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 40 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा। आने वाले दिनों में वन विभाग की मुश्किलें बढ़ने की आशंका है। हालांकि, विभाग की ओर से आग की रोकथाम के भरसक प्रयास करने का दावा किया जा रहा है।प्रदेश में अनियमित वर्षा के पैटर्न के चलते बीते कुछ सालों से शीतकाल में भी आग की घटनाएं बढ़ गई हैं। हालांकि, ग्रीष्मकाल में ही जंगलों को आग का खतरा सर्वाधिक रहता है। मार्च से जून तक का समय आग के लिहाज से अत्यधिक संवेदनशील माना जाता है।
खासकर कम वर्षा होने और वातावरण शुष्क होने के कारण जंगल की आग तेजी से फैलती है।इस बार मार्च में वर्षा अधिक होने से जंगल की आग की घटनाएं न के बराबर हुईं। हालांकि, अब अप्रैल में पारा तेजी से चढ़ रहा है और फिलहाल वर्षा के आसार नहीं दिख रहे हैं। इसके बाद मई और जून भी वन विभाग के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं।बीते दो दिन की बात करें तो कुल 14 घटनाओं में से 10 घटनाएं आरक्षित वन क्षेत्र में हुईं और चार घटनाएं सिविल क्षेत्र की हैं। हालांकि, नुकसान आरक्षित क्षेत्र में 8.7 हेक्टेयर और सिविल क्षेत्र में 31.5 हेक्टेयर जंगल को हुआ है।मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन ने कहा कि वन विभाग की ओर से जंगल की आग रोकने को तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। फायर क्रू स्टेशन को अलर्ट मोड पर रखा गया है और मुख्यालय स्थित कंट्रोल रूम से निगरानी की जा रही है। वन पंचायतों का सहयोग लेने के साथ ही ग्रामीणों को भी जागरूक किया जा रहा है। उत्तराखंड में मौसम शुष्क है और चटख धूप झुलसाने लगी है। पहाड़ से लेकर मैदान तक पारा तेजी से चढ़ रहा है। ज्यादातर मैदानी क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 33 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है। बारिश कम होने के कारण इस बार सर्दियों के मौसम में भी लगातार जंगल धधकते रहे। पिछले वर्ष अक्टूबर तक मॉनसून की बारिश होती रही थी। उसके बाद राज्य में सिर्फ छिटपुट बारिश हुई। नतीजा यह हुआ कि दिसंबर और जनवरी जैसे ठंडे महीनों में भी जंगलों के कई जगहों पर आग लगी रही। इस आग को बुझाने के लिए वन विभाग ने भी कोई इंतजाम नहीं किये। फरवरी का महीना एवरेज से ज्यादा गर्म रहा और इसी के साथ फॉरेस्ट फायर की घटनाएं भी बढ़ गई। उत्तराखंड में शुष्क मौसम में पारा चढ़ने के साथ ही जंगल धधकने का सिलसिला फिर शुरू हो गया है। मार्च में मौसम की मेहरबानी के चलते प्रदेश में जमकर वर्षा हुई और जंगल की आग से राहत रही। हालांकि, अप्रैल में शुरुआत से ही मौसम शुष्क बना हुआ है। इसके बाद मई और जून भी वन विभाग के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं। इस बीच वन विभाग ने हर वर्ष की तरह इस बार भी जंगलों को आग से बचाने के लिए हर तरह के प्रयास शुरू करने की बात कही है। इनमें मास्टर कंट्रोल रूम बनाने, क्रू स्टेशन स्थापित करने, वाच टावर व्यवस्थित करने, कंट्रोल बर्निंग और फायर लाइन साफ करने के साथ जंगलों के आसपास के गांवों में लोगों को जागरूक करने जैसे कदम शामिल हैं। लेकिन, वन विभाग की मुख्य समस्या कर्मचारियों की कमी है।जंगलों में आग बुझाने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार फॉरेस्ट गार्ड और फॉरेस्टर के सैकड़ों पद अब भी खाली हैं। खासकर फॉरेस्ट गार्ड की नियुक्ति में लगातार विभाग की ओर से लापरवाही की जा रही है। राज्य में जरूरत से काफी कम फॉरेस्ट गार्ड के पद स्वीकृत हैंस्वीकृत पदों की संख्या करीब 3600 है, लेकिन इनमें से भी कुल 13 सौ फॉरेस्ट गार्ड ही नियुक्त हैं। वन विभाग जंगलों को आग से बचाने के लिए आम नागरिकों पर ही मुख्य रूप से निर्भर है।लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।