इस दीपावली पर अपना भाग्य उदय करें ,बिच्छू_बूटी (Nettle) के पौधे के द्वारा वंश परंपरागत वैद्य सुनील दत्त कोठारी (हर्बल टी विशेषज्ञ) ने इसके बारे में रहस्यमई तथ्यों को खोज निकाला!!
बिच्छू बूटी की अगर बात होती है तो सुनील दत्त कोठारी का नाम भी स्मरण किया जाता है, इसका कारण यह है व लगातार सन 2016 से वे इस बूटी पर कार्य कर रहे हैं। इस पौधे की पत्तियों के द्वारा हर्बल चाय का उपयोग के साथ साथ परंपरागत विधि द्वारा रेशा निर्माण तथा अन्य प्रकार आयुर्वेदिक मिश्रण के द्वारा उत्तम किस्म की हर्बल चाय का निर्माण लगातार कर रहे हैं ,तथा जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हर तरह से एवं कष्ट निवारक भी है।
इस श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए सुनील दत्त कोठारी इसके साथ शास्त्र सम्मत उपायों की व्याख्या लेकर, अब आप लोगों के सामने दिवाली के मौके पर नया दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहे हैं, इन कार्यों के द्वारा मानव हितार्थ एवं परंपरागत ज्ञान को उजागर करना है!
आज की भागदौड़ की जीवन में यह उपाय आपको कहीं ना कहीं लाभ अवश्य पहुंचाएंगे, वे बताते हैं, कि जड़ी बूटियों के द्वारा भी हमारे वैदिक सनातन परंपरा औषधि विभिन्न प्रकार के रूप में ,तथा मंत्रात्मक रूप में कहीं ना कहीं वर्णित किए गए हैं। आज आधुनिकता एवं चकाचौंध के जीवन में हमने अपने शरीर के चालक तत्वों को छोड़ दिया है।
जो हमारी उत्तराखंड की विरासत रही, सुनील कोठारी के परिवार में कई पीढ़ियों तक एवं का कार्य करते रहे हैं। कोठारी इन विषयों को नवीन विचारधारा के साथ आधुनिक परिवेश में उपजी समस्याओं का निराकरण कर मानव सेवा का जज्बा रखते हैं।
कोठारी बताते हैं, कि यह एक तरह का सॉफ्ट साइंस है ,अगर हम इनकी मान्यता को मानते तथा जीवन में धारण एवं विश्वास करते हैं, तो कहीं ना कहीं इसका प्रभाव मानव समाज को सुखद एवं बनाने में अहम भूमिका रखता है। आखिर हमारी संस्कृति मानव की रक्षा करना ही हमारी सनातन_धर्म की परंपरा हमेशा रही है।
आइए , यह जाने का प्रयास करते हैं बिच्छू बूटी किस तरह से लाभप्रद है।
शनिदेव के से बचा जा सकता है, इस दीपावली के पावन त्यौहार पर, आप भी प्रयोग करें ग्रह पूजित जड़ी बूटी से।
ग्रहों की स्थिति के अनुसार, शनि सूर्य से काफी दूर रहते हैं कि शनि ग्रह प्रकाशहीन है। प्रकाशहीन होने के कारण शनि ग्रह क्रोधि भी माने जाते हैं व सभी लोग शनिदेव से भयभीत कारक रहते हैं। लेकिन यह भी सच है की शनिदेव अत्यंत विशिष्ट देव हैं। शनि ग्रह भी हैं और देवता भी उनका प्रताप जैसा है कि राजा को रंग और रंक को राजा बना दे।
आइए, आपको बताते हैं कि शनिदेव की कृपा बिच्छू बूटी या बिछुआ_घास से आपके जीवन इस जड़ी_बूटी का क्या महत्व रखता है।
बिच्छू बूटी या बिछुआ घास से बनी माला, जड़, तना, एवं पत्ते की उपयोगिता को अगर अपने जीवन में धारण करते हैं, धारण करने से कई चमत्कारी प्रभाव दिखाई पड़ते हैं।
1.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास से शनिवार को स्नान करने से शनि दोष दूर होता है।
2.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास के के सेवन से खासकर चाय के रूप में पीने से शनि ग्रह शांति सुखद फल देता है।
3.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास को अपने घर में रखने से शनि ग्रह द्वारा उत्पन्न क्लेश एवं नशा आदि की प्रवृत्ति तथा कुसंगत से परिवार के लोग बचे रहते हैं।
4.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास को विशेषकर दीपावली या अन्य शुभ पर्व पर अपनी तिजोरी या जेब में पर्स के अंदर रखने से, शनि ग्रह के प्रभाव से दिन पर प्रतिदिन धन वृद्धि का योग बने रहते हैं।
5.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास को दुकान, फैक्ट्री वह सभी प्रकार के व्यवसायिक प्रतिष्ठान में दीपावली वाले दिन रखने से दुकान और व्यापार वृद्धि के कारण और सहायक सिद्ध होते हैं।
6.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास को सोते समय तकिए के नीचे रखकर सोने से मानसिक तनाव में सुधार आत्मक परिवर्तन देखा गया है।
7.बिच्छू बूटी या बिछुआ घास को वाहन में रखने के अंदर रखने से दुर्घटनाओं में भी कमी पाई गई है।
कोठारी आगे बताते हैं उत्तराखंड में पाए जाने वाली लगभग 45,000 प्रजातियां के पौधे जिन्हें हम हीलिंग हर्ब्स के नाम से जानते हैं, ऐसे ही परंपरागत पौधों पर कार्य करते हुए उनको “बैकुंठ औषधि” का नाम दिया है, शायद आयुर्वेद के किसी पुस्तक में इनका विवरण संभवत न के बराबर हो, इन पर कार्य एवं खोज जानकारी के अभाव से कुछ प्रमुख व्यक्तियों के हाथों में ही है जिनके पित्र पूर्वज इस प्रकार की जड़ी बूटियों पर काम करते थे, ऐसी कुछ व्यक्तित्व जिनकी पीढ़ियों में काम होता रहा जिला पौड़ी गढ़वाल के ब्लॉक द्वारीखाल चेलुसैन में स्थित संस्था कोठारी पर्वतीय विकास समिति के अंतर्गत इस प्रकार के कार्यों का निर्वाह करते हैं। इस संस्था का उद्देश्य अपनी संस्कृति को बचाते हुए उत्पाद के रूप में आधुनिक परिवेश में इनकी उपज को बढ़ाना है ताकि मानव और मानवता जीवित रह सके।
एक लंबे समय से कोठारी इस पर शोध आत्मक कार्य कर रहे हैं इस कार्य में सहायक रही संस्था एवं उनके पित्र पूर्वजों की हस्तलिखित किताबें आपके पास विरासत रूप में मिली हुई है जो लगभग 400 वर्ष भी पुरानी है। उन्हीं को आधार लेकर आप कार्य कर रहे हैं, जो वास्तव में उत्तराखंड की परिवेश में अपनी संस्कृति को बचाने के साथ-साथ आजीविका वर्धन का कार्य भी कर रहे हैं।
आज आवश्यकता आन पड़ी है इस आधुनिक परिवेश में उत्तराखंड जसे परिवेश में अपनी मूल विरासत को बचाने का प्रयास करना।
सुनील दत्त कोठारी आगे बताते हैं इस बूटी का प्रतिपादन एवं विधि का प्रयोग योग्य पंडित द्वारा विशेष नक्षत्र एवं दिन, मुख्यतः जिनकी ईस्ट और आराध्य देवी दक्षिण कालिका रही हैं, वही इस जड़ी बूटी को अभिमंत्रित करने का शुद्धता रखते हैं।
तभी यह जड़ी बूटी सामान्य व्यक्तियों के लिए बड़े ही लाभप्रद और सिद्ध कारक होगी। सुनील दत्त कोठारी बताते हैं अगर नीलम जैसी रत्नों के द्वारा शनि ग्रह की कुदृष्टि को बदला जा सकता है तो बिच्छू बूटी या बिछुआ घास का प्रभाव इसके लिए कई गुना लाभप्रद है।
सुनील दत्त कोठारी बताते हैं, इस बूटी पर शोध का कार्य अनेक पहलुओं को लेकर चाहे आयुर्वेदिक मिश्रण द्वारा चाय तैयार करना हो, या मंत्रात्मक रूप में इस पर कार्य करना अलग-अलग परिवेश में अभी भी जारी है।