काॅलेज टाइम बनाम हाॅस्टल रूमानियत
College Time vs. Hostel Romantic. (Remembrance) Courtesy Neeraj Nathani
कुछ पुराने सहपाठियों ने आजकल एक नया वाट्सअप ग्रुप बनाकर मुझे भी जोड़ दिया है।हांलाकि इसमें अधिकता उन मित्रों की है जो विद्यार्थी काल में (1979-1985) श्रीनगर में हास्टल में रहते थे।मैं तो बाजार में अपने परिवार के साथ घर में रहता था।पर प्राय: अपने साथियों से गपियाने,चेस खेलने,कैरम खेलने और तमाम तरह की मौज मस्ती करने हास्टल जाता रहता था।साथियों की हास्टल लाइफ बहुत अपीलिंग लगती थी।अलग अलग जगहों के रहने वाले,अलग अलग सब्जेक्ट कम्बिनेशन वाले,अलग अलग क्लास व कोर्स वाले ,अलग अलग बोली भाषा बोलने वाले लड़कों से दोस्ती करना,उनके संग बैठकर बैठकर घंटों बतियाना बहुत अच्छा लगता था।
अब चूंकि अपन के ऊपर कलमकार/लेखक का ठप्पा चस्पा हो ही रखा है तो स्वाभाविक रूप से। अपन को एक बड़ा कैनवास हासिल हो गया,
है,कई तरह के स्केच चित्रित करने के लिए।अंतहीन संभावनाओं से भरा पड़ा है यह ग्रुप।उन समस्त साथियों,दोस्तों,साथ पढ़ने वालों,अपने से जूनिअर,सीनिअर,रिसर्च स्कालर्स आदि के चरित्र,स्वभाव,आदतों,हरकतों,शैतानियों,कारनामों,कीर्तिमानों,उपलब्धियों,सफलताओं,असफलताओं से लेकर वक्त के चलते पंहिये के साथ उनके बूढ़े या वरिष्ठ नागरिक बन जाने का यह रोजनामचा शायद आपको पसंद आए।हां,किस्सों की इन ढेर सारी किश्तों में सीधे किसी का भी नाम लेने से गुरेज करूंगा।साथ ही निश्छल मन से बता दूं कि इस लेख श्रृंखला का उदे्श्य ना तो किसी अपने खास मित्र का महिमामंडन करना है और ना ही किसी गैर का अपमान करना या उसे लज्जित करना।यह सिर्फ एक फंतासी का काल्पनिक संसार है किसी लघु उपन्यास के पन्नों की तरह गतांक से आगे पढ़ते जाइए व अतीत सरोवर में डुबकी लगाकर आनंदित होइए। तो जल्द पेश हो रही है अगली किश्त
नीरज नैथानी उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध हास्य व व्यंग्य कवि है ।
यह लेख केवल स्मरण के अनुसार कॉलेज टाइम पर साथियों के साथ बिताए सुखद पलो को उकेरित किया गया है। किसी भी ब्यक्तिगत के ऊपर ये उदित नही है। सिर्फ एक व्यंग है।