देहरादून

जंगलों की आग से चीड़ तो बेवजह बदनाम हो गया, समस्या के मूल में हम और हमारी लापरवाही है।

 

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

 

पर्यावरणविदों और नीति निर्माताओं के एक बड़े वर्ग ने चीड़ की पत्तियों अर्थात पीरुल को जंगल में आग लगने का मुख्य कारण बताया जिसके चलते चीड़ लगातार बदनाम होता गया।और अब यही वर्ग जंगलों में आग लगने के लिए घास को भी जिम्मेदार बताने लगा है कि घास नहीं कटने के कारण बड़ी घास जंगलों में आग लगने का कारण बन गई है। इस वर्ग ने जंगल में आग लगने के असली कारण मनुष्य और उसकी हरकतों ( ओण जलाने में लापरवाही, जानबूझकर या असावधानी से जंगल में आग लगाना)को कभी भी दोषी नहीं माना वरन प्रकृति की व्यवस्था को ही आग लगने का कारण बता कर समस्या के समाधान के रास्ते बंद कर दिये हैं।
हकीकत यह है कि जंगलों में आग लगने, जैवविविधता नष्ट होने के लिए प्रकृति ( चीड़ की पत्तियां, घास आदि बायोमास) जिम्मेदार नहीं हैं वरन समस्या के मूल में हम और हमारी लापरवाही है। और जब तक हम समस्या के मूल तक नहीं बन नहीं जाते हैं तब तक समाधान भी नहीं निकल सकता है।
अभी भी समय है पर्यावरणविदों और नीति निर्माताओं को ओण/ आडा़/ केडा़ जलाने की व्यवस्था को समयबद्ध और व्यवस्थित करने, जंगलों के बीच में सुव्यवस्थित फायर लाईन बनाने, प्रथम पंक्ति के फायर फायटर्स को संसाधन संपन्न बनाने की दिशा में काम करना चाहिए तभी जंगलों को, जल स्त्रोतों, जैवविविधता को नष्ट होने से बचाया जा सकता है

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