“उत्तराखंड में जहाँ पर 108 सेवा की एम्बुलेंस (AMBULANCE) न जा पाए वहां पर डॉली- कंडी एम्बुलेंस के लिए एक सुव्यवस्थित नीति बने, एसपी नौटियाल
S P Nautiyal
देहरादून -टिहरी गढ़वाल- usk- पहाड़ की स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधाओं के बारे में आप भली भांति अवगत है की किस प्रकार से पहाड़ के लोग डाक्टर की कमी, नोन-क्लिनिकल स्टाफ की कमी व अन्य सुविधाओं से जूझ रहे हैं। सबसे अधिक परेशानियों उन जगहों पर हो रही है जहाँ अभी तक मोटर रोड नहीं पहुँची तथा गाँव के लोग / परिजन गंभीर बीमार लोगों को डंडी व कंडी पर सड़क या अस्पताल तक पहुंचाते हैं, समय पर चिकित्सा सुविधा न मिलने पर या डंडी कड़ी की व्यवस्था न होने पर घर पर या रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। ऐसा अधिकतर जच्चा-बच्चा के मामलों में हो रहा है. सरकार के पास आंकड़े तो होंगे ही। महोदय, ये स्थिति केवल मोटर रोड न होने के कारण ही नहीं है बल्कि वर्षात में जब सैकड़ों सड़क बंद हो जाती है तो डंडी कडी ही इन असहाय लोगों का सहारा होता है।
महोदय, उक्त समस्या से निबटने के लिए मेरा सुझाव है की जिस प्रकार 108 एम्बुलेंस सेवा स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल है उसी प्रकार डॉली व कंडी को भी स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल किया जाये जिसके लिए आपके सेवा में विचारार्थ निम्न सुझाव व तथ्य
प्रस्तुत है:-
1. डॉली का प्रयोग सामान्यतः पहाड़ में दुल्हन को सुरक्षित रूप से उसकी ससुराल तक पहुंचाने का है, उसी भावना के साथ रोगी को डोली से स्वास्थ्य केंद्र या एम्बुलेंस वाहन तक पहुँचाया जाये|
2. कुछ स्थानों पर पहाड़ी रास्ता छोटा होने के कारण डॉली का प्रयोग न किया जा सके तो वहां पर कंडी का इस्तेमाल हो।
3. पहाड़ के गांवों में पलायन का एक कारण स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है जिसका उल्लेख पलायन आयोग, उत्तराखंड ने भी अपनी रिपोर्ट में किया है।
4. उक्त विषय की नीति के अंतर्गत उन गांवों को समायोजित किया जाये जो सड़क से नहीं जुड़े हैं या नहीं जुड़ पायेंगे व वर्षात तथा बर्फ सीजन में सामान्यतः सड़कें बंद हो जाती है।
5. उक्त विषय की व्यवस्था रोगियों तक ही सीमित न हो बल्कि नी:शक्तजनों व अधिक बुजुर्ग लोगों के लिए भी हो |
6. 108 सेवा केवल मोटर रोड़ तक ही है, कभी कबार इमरजेंसी में ये सेवा मोटर रोड़ तक भी उपलब्ध नहीं हो पाती है।
7. 108 की सेवा देने वाले मैनेजमेंट से या किसी इस तरह की एजेंसी से उक्त विषय के सेवा देने की बात सरकार करें।
8. मेरी जानकारी में आया है की सर्वश्री कोठारी विकास समिति, चैलुसैण, ब्लाक द्वारी खाल, जनपद पौड़ी गढ़वाल ने उक्त विषय पर कुछ शोध किया है। यदि सरकार गाँव-गाँव तक स्वास्थ्य सेवायें देने के लिए प्रतिबद्ध है तो उनसे भी इस बारे में भी जानकारी ली जा सकती है
(श्री सुनील कोठारी, मोबाइल नंबर 9819548257)
9. गाँव में लोग दिन-प्रतिदिन पलायन से कम हो रहे हैं जिससे प्रयाप्त लोग डंडी-कंडी के
लिए उपलब्ध नहीं हो पाते, ऐसे में सरकार का उक्त विषय की सेवा देने के बारे में
गंभीरता से सोचना चाहे |
10. भारतीय संविधान के अनुछेद 21 में स्वास्थ्य का अधिकार, आपत्कालीन चिकित्सा सुविधा का अधिकार का उल्लेख है, जब सरकार कुछ स्थानों तक 108 उपलब्ध करा रही है तो अन्य स्थानों के लिए भी 108 की वैकल्पिक व्यवस्था बनाने के लिए सरकार को ही नीति बनानी चाहे।
11. उत्तराखंड विधान सभा चुनाव 2022 में व्यवस्था की गयी की पहाड़ों से गर्भवतियों का व नी:शक्तजनों को लेने आयेगी डॉली, मतदान प्रतिशत बढ़ाने की पहल। सरकार की यही अवधारणा गंभीर रोगियों के लिए भी होनी चाहे |
12. जिस प्रकार 108 का हेल्पलाइन काम करता है वैसे ही उक्त विषय का हेल्पलाइन भी काम करे जहाँ पर उस गाँव के प्रधान, आसपास के गाँव के प्रधान, नवयुवकों आदि का मोबाइल नंबर भी हो।
13. एम्बुलेंस डॉली के साथ फर्स्ट ऐड बॉक्स भी हो तथा साथ में फर्स्ट ऐड का प्रशिक्षित व्यक्ति भी हों।
14. डॉली लाने-ले जाने के भुगतान सरकार की तरफ से किया जाये जैसा 108 में होता है।
15. डॉली के साथ टूल्स, इक्विपमेंट तथा श्रमशक्ति :-
(i) डॉली का डिजाईन इस तरह से हो की रोगी पैर सीधा रख सके, फ्रंट में रात्रिकालीन के लिए लाइट की भी व्यवस्था हो। दुल्हन की डॉली व रोगी के डॉली के ढांचा में अंतर होगा |
(ii) फर्स्ट ऐड बॉक्स
(iii) कम वजन का ऑक्सीजन किट
(IV) भारी टोर्च, सेफ्टी बेल्ट, गर्म व सादे पानी की किट
(v) गर्म व साधरण कम्बल
(vi) रेन कोट
(vii) डॉली के लिए वाटरप्रूफ कैनोपी (CANOPY)
(viii) चार व्यक्ति डॉली ले जाने के लिए व एक फर्स्ट ऐड का जानकार (ix) महिला रोगी की दशा में एक महिला कर्मचारी भी साथ हो
अन्य जो एक्सपर्ट सलाह दें
महोदय, यदि आप सैद्धांतिक रूप से उक्त तथ्यों से सहमत हों व संविधान के अनुछेद 23 के प्रावधानों के प्रति आप प्रतिबद्ध है तो उक्त विषय के जानकार लोगों से व वर्तमान 108 सेवा के सेवाप्रदाता से बैठक की जाये, जनता से भी सुझाव आमंत्रित किया जाये (बजट, चुनाव, शिक्षा का अधिकार आदि में भी तो जनता के सुझाव लिए गए थे) जिससे एक सुव्यवस्थित नीति उक्त विषय के लिए प्रख्यापित की जा सके।
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“अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुये आदर के साथ|
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