देहरादून

*एक पूर्व प्रधानमंत्री जिसको मकान मालिक ने धक्के देकर सामान सहित घर से बाहर फेंक दिया था*

 

 

दिलीप पांडेय

एक बार 94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने के कारण मकान से निकाल दिया। बूढ़े व्यक्ति के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई और सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी और उनके कहने पर मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए उस बूढ़े आदमी को कुछ दिनों की मोहलत देने के लिए मना लिया।

-वह बूढ़ा आदमी अपना सामान अंदर ले गया। रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया,
”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”

– फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।
पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है?

पत्रकार ने कहा, नहीं।

अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था

”भारत के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं”।
खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पाने के कारण कैसे उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया।

-टिप्पणी की थी कि आजकल फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं। जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं??

-दरअसल गुलजारीलाल नंदा को वह स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को भी अस्वीकार कर दिया था, कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई नहीं लड़ी। बाद में दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया कि उनके पास जीवन यापन का अन्य कोई स्रोत नहीं है। अतः वो इसी पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे।

-अगले दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार कोई और नहीं बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री गुलजारीलाल नंदा जी हैं जो दो दो बार भारत के पूर्व प्रधान मंत्री रह चुके हैं।

लेखक दिलीप पांडेय जी का नम्बर अवश्य सेव करके मिस कॉल करे अदभुत जानकारी आपको आपके मोबाइल पर मिलती रहेगी।

*(मेरे कई मित्रों ने मेरा लेख व्हाट्सएप पर पाने के लिए मुझे इस नंबर 8527524513 पर मिस्ड कॉल तो किया है लेकिन मेरा ये नंबर दिलीप पांडे के नाम से सेव नहीं किया है इसीलिए उनको मेरे लेख नहीं मिल रहे हैं अगर वो मिस्ड कॉल के बाद नंबर भी सेव कर लेंगे तो उनको मेरे लेख जरूर मिलेंगे !)*

-मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा जी के चरणों में झुक गया। अधिकारियों और वीआईपीयों ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया। श्री गुलजारीलाल नंदा ने इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।

-और अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे। 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व एच डी देवगौड़ा के मिलेजुले प्रयासो से उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
पिछले 10 जून को उनकी 26 वीं पुण्यतिथि थी,  पर शायद किसी व्यक्ति को स्मरण रहा हो।

गुलज़ारीलाल नंदा ने दो बार 13 दिनों के लिए भारत के कार्यवाहक प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया। जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद उन्हें पहली बार 1964 में अंतरिम प्रधान मंत्री के रूप में चुना गया था। गुलज़ारीलाल नंदा ने दूसरी बार कार्यभार तब संभाला जब 1966 में भारत के दूसरे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई।

नंदा ने नेहरू और शास्त्री दोनों के मंत्रिमंडल में कार्य किया। उन्हें श्रमिक मुद्दों पर उनके काम के लिए सबसे ज्यादा पहचाना गया और वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा थे। 1921 में, वह असहयोग आंदोलन में शामिल हुए और कई बार जेल गए।

गुलज़ारीलाल नंदा का जन्म 4 जुलाई, 1898 को अविभाजित पंजाब के सियालकोट में एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा लाहौर, अमृतसर, इलाहाबाद और आगरा विश्वविद्यालयों में पूरी हुई। उन्होंने लक्ष्मी से शादी की और उनके दो बेटे और एक बेटी है। 15 जनवरी 1998 को उनका निधन हो गया।

 

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