देहरादून

समय से पहले ही खिलने लगा बुरांश डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

देहरादून:
बुरांस (रोडोडेंड्रोन), उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है. राज्य में बुरांस की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, जो ऊंचाई और स्थान के हिसाब से अलग-अलग होती हैं. आमतौर पर बुरांस लाल, गुलाबी और सफेद रंग के देखने को मिलते हैं. जिसमें लाल रंग के बुरांस का उपयोग ज्यादा किया जाता है. बुरांस में कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं. इसका जूस और शरबत बेहतर पेय पदार्थ में शामिल है. बुरांस का जूस दिल से लेकर लिवर को स्‍वस्‍थ रखता है. जबकि, पहाड़ों में बुरांस आय का जरिया भी माना जाता है. कई लोग बुरांस के जूस बेचकर से अपनी आजीविका भी चलाते हैं.यह हमारी खुशनसीबी है कि तमाम तरह के बदलावों के बावजूद प्रकृति से रिश्ता बनाये रखने वाले हमारे पारम्परिक रीत.रिवाजों के चलते ही प्रदेश में अब तक वनों का वजूद कायम है। खासतौर पर अपने उत्तराखण्ड जैसा प्रकृति की सहजता वाला समाज जहां आजीविका का बड़ा हिस्सा आज भी पानी,ईधन,चाय आदि वन उत्पादों के रूप में जुटता है। दावानल की प्रचंड ज्वालाएं सुनहरी घाटियों के लिये अभिशाप बन गयी है।पहाडो में जंगलों में लगी आग के कारण वनों का सौन्दर्य नष्ट होते जा रहा है खाक में विलय होते वन पर्यावरण जगत में गहरे संकट का कारण बनते जा रहे है। वसंत ऋतु में जहां प्रकृति ने फाग के विविध रंग बिखेर दिए हैं,  उत्तराखंड का राज्य पुष्प बुरांश की लालिमा से पहाड़ के जंगलों का सौंदर्य निखर गया है। पूरे यौवन में दिख रहा रहा बुरांश पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। बुरांश में कई औषधि गुण पाए जाते हैं। इसका शर्बत लोगों को खूब भाता है।उत्तराखंड का राज्य पुष्प बुरांश इन दिनों पूरे यौवन पर है। कत्यूर घाटी सहित पहाड़ के जंगलों में बुरांश खिला हुआ है। चीड़ व बांज के जंगलों के बीच में खिला बुरांश बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। सबके मन को भाने वाले बुरांश का वानस्पतिक नाम रोडोडेंड्रान आरबेरियम है। पहाड़ के लोक गायकों के केंद्र में भी बुरांश रहता है। बुरांश की सुंदरता व उसकी लालिमा पर कई रचनाएं लिखी जा चुकी हैं। समुद्र सतह से बारह हजार फिट की ऊंचाई पर खिलने वाले बुरांश को सरकार ने भी राज्य पुष्प की संज्ञा दी है।कत्यूर घाटी के कौसानी में जन्में प्रख्यात छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत ने बुरांश पुष्प पर कुमाउनी भाषा में एकमात्र कविता की रचना की थी। उनकी इस कृति ने भी साहित्यकारों के बीच बुरांश की लोकप्रियता को बढ़ा दिया। आज भी साहित्यकार व रचनाकार पहाड़ के बारे में लिखते वक्त बुरांश का जिक्र जरूर करते हैं। कवि पंत ने लिखा था – सार जंगल में त्वे जस क्वे न्हां रे बुरांश, खिलन क्ये छै जंगल जस जलि जा, सल्ल छ, दयार छ, पई छ, अयार छ, सबन में पुंगनक भार छ, पर त्वी में दिलै की आग छ, त्वी में जवानिक फाग छ। बुरांश अपनी सुंदरता के साथ-साथ औषधीय गुणों के लिए भी विख्तात है। बुरांश की पंखुड़ियों से निकलने वाला गुणकारी रस हृदय व उदर रोग के लिए लाभकारी माना जाता है। इसका उपयोग रंग बनाने के लिए भी होता है।वन्य जीव जन्तुओं का अब वनों में रहना दुश्वार हो गया है!सूखते जल स्रोतौ ने लोगों के माथे कि चिताएं बढा दी है।अनेक भागो मे इनके सूखने से गहरा जल संकट उत्पन्न होनें लगा है ठडी हवाओ की बहारे गर्मी की तपिस में तब्दील होने से लोग परेशान होने लगे है ।अमूमन हिमालय को जड़ी-बूटियों का खजाना कहा जाता है. यहां पाए जाने वाले पेड़-पौधों का उपयोग आयुर्वेद में बड़े पैमाने पर किया जाता है. इनसे बनायी जाने वाली औषधियां कई बिमारियों से लड़ने में सक्षम होती हैं. इसी फेहरिस्त में एक नाम बुरांश के पौधों का भी शामिल है. दरअसल बुरांश का पौधा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है. बुरांश औषधीय गुणों के साथ ही पोषक तत्वों से भी भरपूर होता है. बुरांश के फूलों का इस्तेमाल जूस बनाने के लिए किया जाता है. इन फूलों की पंखुड़ियों में क्विनिक एसिड पाया जाता है. जो कि स्वादिष्ट होने के साथ ही काफी फायदेमंद भी रहता है जलवायु परिवर्तन विश्वव्यापी है। उच्च हिमालयी क्षेत्र भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है। समय से तीन माह पहले बुरांश का खिलना भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को ही दर्शा रहा है‘जलवायु परिवर्तन के चलते बुरांश समेत तमाम वनस्पतियों में फूल और

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