उत्तराखंडदेहरादून

*अगर नहीं जागे तो जोशीमठ से भी ज्यादा नैनीताल का होगा बुरा हाल ,दिलीप पांडेय

 

डरावना अनुभव

– कल्पना कीजिए… जहां कोई आदमी सो रहा हो उसके बेड के नीचे ही जमीन पर मोटी मोटी दरारें पड़ी हों । रात में उन्हीं दरारों से गड़गड़ाने की जोर जोर की डरावनी आवाजें आ रही हों । और भी खतरनाक बात ये कि पूरा इलाका भूकंप के अतिसंवेदनशील जोन 5 में हो । बिलकुल ऐसा ही डर जोशीमठ में है और लोगों में डर इतना ज्यादा है कि वो अपने घरों को छोड़कर बाहर बर्फीली सर्दी में भी रात बिताने को मजबूर हैं ।

-हम उत्तराखंड के चमोली जिले में मौजूद जोशीमठ की बात कर रहे हैं जिसे संस्कृत में ज्योतिर्मठ कहा जाता है । ये आदि शंकराचार्य द्वारा बनाई गई चार पीठों में से एक है । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जब जोशीमठ पहुंचे तो वहां रहने वाले लोग मुख्यमंत्री से अपना दर्द बांटते हुए फफक फफक कर रोने लगे ।  कुदरत की मार के सामने मुख्यमंत्री का पद भी बहुत छोटा होता है । धामी के पास सिर्फ सांत्वना के लिए शब्द थे और ये भरोसा कि सरकार ने स्थाई पुनर्वास के लिए इलाकों का चयन कर लिया है लेकिन ये दरारों वाले उजड़े घर तो अब छोड़ने ही पडेंगे ।

जोशीमठ का महत्व

-जोशीमठ (संस्कृत नाम ज्योतिर्मठ) सिर्फ एक शहर नहीं है बल्कि ये भारत की धार्मिक ऐतिहासिक पहचान भी है । आज से 2 हजार 810 साल पहले ये शहर आदि शंकराचार्य ने बसाया था । आदि शंकराचार्य इस शहर में रहे थे । हिंदुओं के चारों धामों में से एक श्री बद्रीनाथ धाम में जब बर्फ पड़ जाती है तो नारायण के श्रीविग्रह (प्रतिमा) को ज्योतिर्मठ में ही रखा जाता है । तब बद्रीनाथ जी के कपाट 6 महीने के लिए बंद हो जाते हैं और यहीं जोशीमठ में बद्री नारायण की पूजा होती है । बद्रीनाथ के रावल भी कपाट बंद होने के बाद यहीं जोशीमठ में ही रहते हैं । यहीं पर आदिशंकराचार्य का बसाया हुआ गुरुकुल माधवाश्रम भी है जहां आज भी करीब 60 विद्यार्थी पढ़ते हैं ।

हिमालय से तेज खिसकाव

-जोशीमठ को गेट वे ऑफ हिमालय भी कहते हैं । लेकिन जोशीमठ हिमालय से भी तेज खिसक रहा है ।  हिमालय के खिसकने की दर 40 मिलीमीटर प्रति साल है लेकिन जोशीमठ 85 मिलीमीटर प्रति साल की रफ्तार से खिसक रहा है । जोशीमठ में कुल 4,500 इमारतें हैं लेकिन 603 मकानों में अभी ज्यादा बड़ी दरारें देखी गई हैं । सभी मकानों के निवासियों को शेल्टर होम में ले जाया जा रहा है । 81 परिवारों को विस्थापित भी कर दिया गया है । ये पूरा इलाका डेढ किलोमीटर में फैला हुआ है । आधा शहर दरक चुका है । कुल 4 वार्ड पूरी तरह से असुरक्षित घोषित हुए हैं… इनमें गांधीनगर, सिंहद्वार और मनोहर बाग प्रमुख है । समुद्र तल से 6 हजार एक सौ पचास फीट की ऊंचाई पर बसे चमोली जिले का ये इलाका जोशीमट चीन सीमा से बहुत नजदीक है । लेकिन अब आर्मी की कुछ पोस्ट भी यहां से शिफ्ट की गई हैं ।

दुख और पीड़ा

– लोग रोते हुए घर खाली कर रहे हैं और घर खाली करवाने के लिए भी SDRF के 60 जवान लगातार काम में जुटे हुए हैं । 603 घरों में दरारें हैं और सभी घरों में लाल निशान लगा दिए गए हैं ।

वजह क्या है 

-उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जब हिमालय की उत्पत्ति हुई थी तब ही जोशीमठ की जमीन दरअसल भूस्खलन से ही बनी थी । और यहां जमीन की सतह बहुत पुराने मलबे पर ही है । कई एक्सपर्ट्स इस मलबे के नीचे भी पानी होने का दावा कर रहे हैं ।

पुरानी जांच रिपोर्ट

– इस खतरे को लेकर पहली बार अंग्रेजों के जमाने में यानी कि 1886 के हिमालयन गजेटियर में जोशीमठ में भूस्खलन के मलबे पर होने का उल्लेख किया गया था । 1976 में भी यहां मकानों में दरारों के समाचार आए थे तब । गढवाल के कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की देखरेख में एक कमेटी की रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि जमीन कभी भी दरक सकती है । 47 साल पहले आई इस रिपोर्ट में ही बता दिया गया था कि ड्रेनेज, ईंट बजरी सीमेंट का इस्तेमाल यहां नहीं होनी चाहिए और ऊंची इमारतें भी यहां नहीं बननी चाहिए इसके अलावा यहां पहाड़ों के अंदर सुरंग और पहाडों पर विस्फोट करने की मनाही जैसा गाइडलाइंस भी जारी की गई थीं लेकिन दुर्भाग्य है कि लगभग 50 साल पुरानी इन गाइडलाइंस को फॉलो ही नहीं किया गया । जिन क्षेत्रों में दरारें नहीं हैं वहां गाइडलाइन तैयार कर दी गई हैं । लेकिन पता नहीं लोग इन गाइडलाइन्स को कितना मानेंगे ?

प्रधानमंत्री का एक्शन

-प्रधानमंत्री स्वयं इस मामले को देख रहे हैं । धामी से पीएम ने बात भी की है । इस पर उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक भी हुई है । केंद्र ने कमेटी भी बनाई है और एक्सपर्ट्स की टीमें दौरें भी कर रही हैं ।

नैनीताल पर संकट

– उत्तराखंड के करीब 484 गांव ऐसे हैं जहां पर ऐसी ही आपदा मुहाने पर है । अब  बदरीनाथ और केदारनाथ में भी पूरी तरह से निर्माण रोकने की बात कही जा रही है । नैनीताल उत्तरकाशी और चंपावत के कई गांवों में डर का माहौल है । खतरा नैनीताल में भी बताया जा रहा है । नैनीताल की पहाड़ियां तीन तरफ से दरक रही हैं एक्सपर्ट्स का मानना है कि नैनीताल पर भार क्षमता से ज्यादा वजन है ।

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लेखक राष्ट्रीय स्तर विभिन्न जटिल मुद्दों पर अपना लेख  पब्लिस करते रहते है,

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*नोट- कई मित्रों ने 7011795136 मोबाइल नंबर दिलीप नाम से सेव किया है लेकिन मिस्ड कॉल नहीं की , लेख के लिए मिस्ड कॉल और नंबर सेव,  दोनों काम करने होंगे क्योंकि मैं ब्रॉडकास्ट लिस्ट से मैसेज भेजता हूं जिन्होंने नंबर सेव नहीं किया होगा उनको लेख नहीं मिलते होंगे.. जिनको लेख मिलते हैं वो मिस्डकॉल ना करें प्रार्थना*

 

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