Sunday, September 8, 2024
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पर्सनल लॉ बोर्ड की UCC के विरोध के एवज में लॉ कमीशन में UCC के समर्थन में सुझाव भेजेगा पसमांदा समाज, डॉक्टर फैयाज अहमद

  

Muslim Personal Law Board:पर्सनल लॉ बोर्ड की तर्ज़ पर लॉ कमीशन में यूसीसी के समर्थन में सुझाव भेजेगा

Muslim Personal Law Board:नई दिल्ली। समान नागरिक संहिता पर देश भर में सामाजिक संगठनों की गतिविधियां तेज रफ्तार से चल रही हैं।जहां एक तरफ कई मुस्लिम संगठन जिनमे प्रमुख रूप से ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यूसीसी को शरीयत में हस्तक्षेप मानते हुए,उसके विरोध में विधि आयोग में सुझाव दर्ज करा रहा है,वहीं दूसरी ओर पसमांदा समाज ने यूसीसी के पक्ष में सामूहिक रूप से सुझाव भेजने का अभियान चलाने की घोषणा की है।

इस संबंध में प्रमुख रूप से पसमांदा आंदोलन में सक्रिय लेखक,अनुवादक और सामाजिक कार्यकर्ता डाक्टर फैयाज अहमद फैज़ी ने अभियान शुरू करने की घोषणा की है।इसके बारे में उन्होंने बताया कि मैं देशज पसमांदा समाज से आता हूं जिसकी सभ्यता संस्कृति भारतीय है।

‘पर्सनल लॉ से मेल नहीं खाता पसमांदा मुसलमानों की संस्कृति’

यह विदित है कि पर्सनल लॉ के मामले में व्यक्ति विशेष या समाज विशेष अपनी सभ्यता एवं संस्कृति के अनुरूप ही व्यवहार करता है।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में ऐसी बहुत से बातें हैं जो देशज पसमांदा मुसलमानों के स्थानीय सभ्यता संस्कृति से मेल नहीं खाती हैं जैसे बहु पत्नी विवाह, सिर्फ पुत्रियों वाले माता पिता अपनी पूरी पैतृक संपत्ति को अपनी बेटियों को नहीं दे पाते हैं उन्हें अपने भाई या परिवार के पुरुष पक्ष को भी एक बड़ा भाग देना पड़ता है क्योंकि शरिया में महिलाओं को पैतृक संपत्ति में केवल एक चौथाई हिस्सा पाने का ही अधिकार है। जबकि इस्लामी सिद्धांत “उर्फ” के अनुसार व्यक्ति अपनी स्थानीय सभ्यता संस्कृति का पालन इस शर्त के साथ कर सकता ही उससे इस्लाम के किसी मूल भूत सिद्धांत से टकराव न होता हो।

Muslim Personal Law Board:संयुक्त परिवार का ध्वजवाहक है पसमांदा समाज,लेकिन नहीं मिलता टैक्स में छूट

इस्लाम के मूलभूत सिंद्धांतों से टकराहट

उन्होंने कहा कि साथ ही ऐसी कई बातें भी हैं जो इस्लाम के मूलभूत सिद्धांतों से भी टकराती है जैसे दादा के जीवन काल में पिता की मृत्यु के बाद पोते को पैतृक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलना, विवाह में “कूफु” के शरिया सिद्धांत के अनुसार जाति एवं नस्ल के आधार पर भेद करना आदि।फिर भी ना चाहते हुए भी उसे मध्य युगीन अरबी/ईरानी सभ्यता वाले कानून का पालन इस्लामी शरिया और पर्सनल लॉ के नाम पर करना पड़ता है।

पसमांदा मुसलमान संयुक्त परिवार का ध्वजवाहक

सामाजिक कार्यकर्ता डाक्टर फैयाज अहमद फैज़ी ने कहा कि एक महत्वपूर्ण बात यह है कि देशज पसमांदा मुसलमान भी संयुक्त परिवार के भारतीय संस्कृति का वाहक है लेकिन संयुक्त परिवार के लिए केवल हिन्दू समाज को ही इनकम टैक्स में छूट प्राप्त है।

संयुक्त परिवार के संस्कृति का पालन करने के बाद भी टैक्स में रिबेट नहीं

संयुक्त परिवार के संस्कृति का पालन करने के बाद भी देशज पसमांदा मुसलमानों को इसका लाभ नहीं मिलता है जो धर्म के आधार पर भेद भाव को दर्शाता है। जबकि संविधान का आर्टिकल 15 के अनुसार यह उचित नहीं है।

पर्सनल लॉ में संविधान लागू हो तो समाज का होगा भला

उन्होंने कहा कि उपर्युक विसंगतियों को ध्यान में देते हुए यह उचित मालूम पड़ता है कि जैसे जीवन के अन्य क्षेत्र में संविधान लागू है जिससे वंचित देशज पसमांदा समाज का भला हुआ है ठीक उसी प्रकार यदि पर्सनल लॉ में भी संविधान लागू होगा तो उपर्युत लिखित मजहबी एवं सांस्कृतिक विसंगतियां दूर होंगी। इस प्रकार समान नागरिक संहिता का लागू होना भारतीय मूल के मुसलमानों के हित में उचित होगा।

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