देहरादून

प्रकृति की मार से कराह रहा पूरा चारधाम का सफर डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

चारधाम यात्रा इस बार 22 अप्रैल से शुरू हो रही है। इस यात्रा को लेकर आस्था का एक सैलाब है तो दूसरी ओर सरकार के सामने पहाड़ की चुनौतियां भी हैं। इस साल 22 अप्रैल यानी अक्षय तृतीया को गंगोत्री और यमुनोत्री, 25 अप्रैल को केदारनाथ और 27 अप्रैल को बदरीनाथ के कपाट खुल रहे हैं। पिछले साल लगभग 48 लाख श्रद्धालुओं ने चारधाम के दर्शन किए, जिनमें से बदरीनाथ और केदारनाथ पहुंचने वालों की संख्या 33 लाख के आसपास थी। इस बार यह आंकड़ा और भी ज्यादा बढ़ सकता है। गंगोत्री धाम और बदरीनाथ धाम तक तो वाहनों से पहुंचा जा सकता है। लेकिन इस बार बदरीनाथ धाम तक पहुंचने में जोशीमठ आपदा एक बड़ी समस्या बन सकती है। जमीन धंसने की वजह से सड़क कमजोर हो चुकी है। रास्ते में मारवाड़ी पुल के पास लगातार जमीन धंस रही है। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की टीम इस रास्ते को सुचारू बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रही है। तय किया गया है कि जमीन धंसने के हालात पर नजर रखने के बाद ही इस रास्ते से वाहनों को आवागमन की मंजूरी दी जाएगी। इस धाम में श्रद्धालु बड़ी बसों से भी आते हैं। ऐसे में जमीन धंसने से यहां की यात्रा प्रभावित हो सकती है। केदारधाम की अपनी दिक्कतें हैं। संपन्न लोग तो हेलीकॉप्टर से जा सकते हैं। लेकिन आम श्रद्धालुओं की यात्रा पैदल, पालकी और खच्चर पर ही निर्भर है। रास्ता बेहद संकरा है और खच्चर, पैदल यात्री और पालकी वालों के लिए एक ही मार्ग है। खच्चरों की लीद से रास्ता खराब होता रहता है और हल्की बारिश में ही इस पर चलना मुश्किल हो जाता है। पिछले साल कई खच्चरों की मौत खाई में गिरने से हुई थी। इस बार खच्चरों के स्वास्थ्य को लेकर भी तमाम सवाल किए जा रहे हैं। पिछले साल हेली सेवाओं ने भी श्रद्धालुओं के सामने तमाम समस्याएं पैदा कीं। प्री बुकिंग के बाद भी उन्हें समय पर हेलीकाप्टर नहीं मिल सका। इस तरह की दिक्कतें वापसी पर भी हुईं। हेली सेवा संचालक कंपनियों पर किसी भी तरह का सरकारी नियंत्रण दिखाई नहीं दिया और वे पूरी तरह मनमानी करती रहीं। इस बार सरकार कोशिश कर रही है कि हेली बुकिंग काम रेलवे की कंपनी आइआरसीटी से ही करवाया जाए। सरकार ने टेंडर के माध्यम से कंपनियों का चयन कर लिया है। अलबत्ता इस बार किराया पिछले साल की तुलना में लगभग नौ सौ रुपये अधिक तय किया गया है।दरअसल, सरकारी सिस्टम एक निजी एजेंसी ईथिक्स के सहारे ही है। पिछले साल इस एजेंसी के अजीबो-गरीब फैसलों से श्रद्धालुओं को भारी फजीहत उठानी पड़ी थी। लेकिन सिस्टम ने इससे कोई नसीहत नहीं ली और इस साल भी सारा इंतजाम इसी एजेंसी के भरोसे छोड़ दिया गया है।सरकार ने तय किया है कि पिछली बार की तरह ही इस बार भी चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को ऑनलाइन पंजीकरण कराना होगा। उत्तराखंड के निवासियों के लिए भी ये पंजीकरण अनिवार्य होगा। लेकिन चारधाम जिन तीन जनपदों रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी में स्थापित हैं, उनके निवासियों को ऑनलाइन पंजीकरण से छूट दी गई है। इस पंजीकरण में एक समस्या यह आ रही है कि जिस तारीख में श्रद्धालुओं को होटल की बुकिंग मिल रही है, उस तारीख में धाम के दर्शन के लिए पंजीकरण नहीं हो पा रहा है।पिछले साल यह भी देखने में आया कि ऑनलाइन पंजीकरण के बाद भी तमाम श्रद्धालुओं ने धामों की ओर रुख नहीं किया। पिछले साल की दिक्कतों से सबक लेकर सरकार ने इस बार तीर्थयात्रियों की संख्या को सीमित करने का फैसला किया है। इस फैसले का तीर्थ-पुरोहित, होटल व्यवसायी और ट्रेवल एजेंट विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि यात्राकाल में होने वाली कमाई से ही उनका सालभर का खर्च चलता है। अगर यात्रियों की संख्या सीमित कर दी जाएगी तो इसका उनकी कमाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इन लोगों की मांग है कि किसी भी श्रद्धालु को धामों में आने से न रोका जाए।दूसरी ओर सरकार की अपनी दिक्कतें हैं। धामों में रुकने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हैं। बदरीनाथ और केदारनाथ धाम में नए मास्टर प्लान पर काम चल रहा है। ऐसे में रात्रि विश्राम का स्थान और भी कम हो गया है। बदरीनाथ धाम में अभी तोड़फोड़ कम हो रही है। लेकिन केदारनाथ धाम में तमाम निजी भवन, लॉज और धर्मशाला आदि को ध्वस्त कर दिया गया है। ऐसे में केदारनाथ धाम में रात्रि विश्राम के इंतजाम न के बराबर ही रह गए हैं। सरकारी सूत्रों का कहना है कि कोशिश हो रही है कि निजी लोगों को धाम में टेंट आदि लगाने की मंजूरी दे दी जाए, ताकि वहां भी रात्रि विश्राम का कुछ इंतजाम किया जा सके। पिछले साल देखने में आया कि धाम में भीड़ बढ़ने के बाद भी श्रद्धालुओं को रोका नहीं गया और वे केदारधाम तक पहुंच गए। नतीजा यह रहा है कि अधिकांश लोगों को बेहद सर्द रात में खुले आसमान के नीचे ही बिताने को मजबूर होना पड़ा था।वैसे भी चारधाम की यह यात्रा पूरी तरह से मौसम के मिजाज पर निर्भर है। कब मौसम बिगड़ जाए या कब बारिश आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता है। पिछले साल की तरह ही इस बार भी ऑलवेदर रोड भी यात्रा में निश्चित तौर पर परेशानी की सबब बनने वाला है। कई स्थानों पर या तो निर्माण पूरा नहीं हुआ है या फिर पहाड़ से बड़े-बड़े बोल्डर सड़क पर आने की समस्या अभी से ही सामने आ रही है। ऑलवेदर रोड को लेकर दावे तो बड़े-बड़े किए जा रहे हैं कि लेकिन हकीकत इस रोड पर यात्रा करने पर सामने आ ही जाती है।इधर, बदरी-केदार मंदिर समिति इन दोनों धामों की व्यवस्थाओं में सुधार की कवायद में जुटी है। समिति के अध्यक्ष कहा कि इस बार कई नई व्यवस्थाएं की जा रही हैं। इन दोनों धामों में तमाम वीआईपी और वीवीआईपी दर्शन के लिए आते हैं। समिति ने तय किया है कि इन लोगों से प्रति व्यक्ति तीन सौ रुपये शुल्क लिया जाएगा। दान की व्यवस्था को पारदर्शी बनाया जा रहा है। इसके लिए कांच के बाक्स लगवाए जा रहे हैं और निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे में लगाए जा रहे हैं। इसके बाद तीर्थ-पुरोहित खुद दान स्वीकार न करके उसे दानपात्र में ही डालने के लिए श्रद्धालुओं को प्रेरित करेंगे। उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग और विश्व बैंक ने सन 2018 में एक अध्ययन करवाया था जिसके अनुसार  छोटे से उत्तराखंड में 6,300 से अधिक स्थान भूस्खलन जोन के रूप में चिह्नित किए गए थे। रिपोर्ट कहती है कि राज्य में चल रही हजारों करोड़ की विकास परियोजनाएं पहाड़ों को काटकर या जंगल उजाड़कर ही बन रही हैं और इसी से भूस्खलन जोन की संख्या में इजाफा हो रहा है।पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की संख्या सीमित करने और इस हिमालयीन राज्य के संसाधनों पर दबाव को नियंत्रित करने की मांग काफी समय से विभिन्न वर्गों द्वारा की जाती रही है। लेकिन सरकार और अफसर ही नहीं, अधिकांश स्थानीय लोग भी लाभ की लालसा में इस ओर कान नहीं दे रहे। नतीजा सबके सामने है। राज्य सरकार के प्रतिनिधि अलग-अलग मंचों से इस वर्ष पिछले वर्ष से ज्यादा तीर्थयात्रियों के आने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में इतने लोगों के लिए जो व्यवस्था चारधाम यात्रा मार्ग पर होनी चाहिए वह नहीं हो रही है। यात्रा की तैयारियों को लेकर राज्य सरकार के दावों की हकीकत जानने के लिए ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक का जायजा लिया तो यात्रा व्यवस्था के नाम पर जमीन पर कुछ नजर नहीं आया। जाम की समस्या ऋषिकेश से शुरू होकर यात्रा मार्ग के हर नगर और हर कस्बे में दिखाई दी।

 

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

 

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