Uttarakhand Newsदेहरादून

काकड़ीघाट में झील निर्माण का मामला शासन के ठंडे बस्ते में डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
उत्तराखंड देवभूमी है, यह सर्वविदित है। उत्तराखंड बड़े बड़े सन्यासियों योगी और सिद्ध महात्माओं की तपस्थली रही है। आज हम अपने इस लेख में आपको उत्तराखंड के एक ऐसे ही पवित्र स्थान काकड़ीघाट के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जहाँ स्वामी विवेकानंद जी को ज्ञान प्राप्त हुआ ।और प्रसिद्ध सिद्ध महात्मा श्री सोमवारी जी महाराज ने यहाँ अपना अमूल्य समय बिताया, और जप तप किया।काकड़ीघाट उत्तराखंड के नैनिताल जिले में , अल्मोड़ा जिले के बॉर्डर पर स्थित है। भवाली भीमताल , हल्द्वानी रोड पर , हल्द्वानी से लगभग 66 किलोमीटर दूर कोसी ( कौशिकी ) नदी और सील नदी के संगम पर बसा यह पवित्र स्थल, अनेक सिद्ध योगियों और महापुरुषों की तपस्थली रहा है। यहाँ पीपल के वृक्ष के नीचे , स्वामी विवेकानंद जी को ज्ञान प्राप्ति हुई थी। सोमवारी महाराज, गुसाईं महाराज, हैड़ाखान बाबा, बाबा हर्षदेवपुरी जी तप जप के कारण काकड़ीघाट की यह भूमि , पवित्र भूमि बन गई है। मुख्यमंत्री की घोषणा के चार वर्ष बाद भी कोसी नदी में काकड़ीघाट में बैराज का निर्माण नहीं हो पाया है जबकि विशेषज्ञों ने इस स्थान को बैराज (झील) निर्माण के लिए फिजिबिलिटी परीक्षण में उपयुक्त पाया है। सिंचाई विभाग की ओर से शासन को भेजे गए आगणन को मंजूरी नहीं मिल सकी है। इससे काकड़ीघाट में झील निर्माण का मामला अधर में लटक गया है।अल्मोड़ा-भवाली राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे काकड़ीघाट में मंदिर है। यह स्थान स्वामी विवेकानंद की तपस्थली भी रहा है। चार साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कोसी नदी में काकड़ीघाट में झील निर्माण की घोषणा की थी। इसके बाद सिंचाई विभाग ने काकड़ीघाट में झील निर्माण के लिए फिजिबिलिटी परीक्षण कराया। काकड़ीघाट मंदिर से करीब आठ सौ मीटर पहले भवाली की ओर झील निर्माण के लिए स्थान को विशेषज्ञों ने उपयुक्त को पाया है।इस स्थान पर करीब छह से आठ मीटर ऊंचे बैराज का निर्माण प्रस्तावित है। इसमें पानी भरने के बाद करीब तीन किमी लंबी झील बनेगी। जिसकी क्षमता छह लाख घन मीटर होगी। झील बनने के बाद इस स्थान के धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से विकसित होने की अच्छी संभावना है। साथ ही रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। यही नहीं बैराज में पानी भरने से आसपास के इलाकों के लिए पंपिंग योजनाओं का भी निर्माण किया जा सकता है।शासन को प्री फिजिबिलिटी रिपोर्ट (पीएफआर) तैयार कर डीपीआर बनाने के लिए अगस्त 2019 में 81 लाख रुपये प्रस्ताव भेजा गया था। जिसके बाद शासन ने संशोधित आगणन भेजने के निर्देश दिए थे। अप्रैल 2021 में 32 लाख का संशोधित आगणन भेजा गया। साथ ही विभागीय मद से भी बैराज में धनराशि खर्च की जानी है, लेकिन अब तक शासन से बजट अवमक्त नहीं हुआ है। महत्वाकांक्षी योजना धरातल पर उतरी तो कोसी नदी पर भावी सरोवर जहां हाईवे पर पर्यटक गतिविधियों का केंद्र बनेगा, वहीं मत्स्य आखेट व नौकायन आदि के जरिए यह गुमनाम क्षेत्र पर्यटन नक्शे पर जगह भी बनाएगा। खास बात कि हाईवे को पर्यटक स्थल शीतलाखेत से जोड़ने वाले मटीला व सिरोली बैंड से बेड़गांव तक मोटर मार्ग के डामरीकरण को भी हरी झंडी मिल गई है।प्रदेश को पर्यटन प्रदेश की शक्ल देने के मकसद से राज्य सरकार ने उन क्षेत्रों पर फोकस करना शुरू कर दिया है, जो अब तक उपेक्षित पड़े थे। नैसर्गिक खूबसूरती वाले कंडारखुवा समेत तमाम गांवों को इको-टूरिज्म से जोड़ने के उद्देश्य से हल्द्वानी-अल्मोड़ा हाईवे पर काकड़ीघाट क्षेत्र में कोसी नदी पर झील का निर्माण किया जाएगा। महत्वाकांक्षी योजना को मूर्तरूप देने के लिए जल्द ही विभागीय टीम की ओर से सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की जाएगी।सब कुछ ठीक रहा तो यहां मत्स्य आखेट व नौकायन आदि के जरिए पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा दिए जाने की भी योजना है पहल करनी चाहिए.
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत  हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *