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राज्य को बने 24 साल नहीं है कोई ग्राउंडवाटर पॉलिसी | डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

देहरादून, गंगा-यमुना का मायका (उत्तराखंड) प्यासा है। पहाड़ में एक कहावत है कि पहाड़ का पानी और जवानी यहां के काम नहीं आते लेकिन सरकारें इसे बदलने को आतुर है। उत्तराखंड में नदियों, नालों, जलस्रोतों की संख्या करीब एक हजार से अधिक हैं, जो यहां से निकलकर सुदूर मैदानी इलाकों को सिंचती हैं, वहीं, प्रशासन की अनदेखी और व्याप्त भ्रटाचार की वजह से राज्य के कई जिलों में जल संकट गहरा गया है। पर्वतीय राज्य में गर्मियां आते ही लोगों को पानी के लिए दर-ब-दर भटकना पड़ रहाहै।साल दर साल जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है लेकिन प्रति व्यक्ति प्रति लीटर जल में कमी होती जा रही है। इसका कारण कुप्रबंधन तथा अव्यवस्था है। पूरे प्रदेश में स्थिति प्रति वर्ष एक जैसी ही होती है। इस बार भी कोई अंतर आता नहीं दिख रहा है। एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री ने कहा था कि वे पहाड़ के पानी और जवानी दोनों को पहाड़ के काम आने की योजनाएं क्रियान्वित करेंगे। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से पानी की कमी बढ़ी हैं। राज्य बनने के बाद से तेज और अनियोजित निर्माण योजनाओं की वजह से पहाड़ के प्राकृतिक जल स्रोतों को बड़ा नुकसान हुआ है। स्थानीय निवासी भी प्राकृतिक जल स्रोतों के सरंक्षण के प्रति लापरवाह हुए हैं। ऐसे में पानी के गहराते संकट की वजह से आबादी का बोझ मैदानी इलाकों पर बढ़ रहा है और वहां भी जल संकट बढ़ रहा है। प्रदेश में सूख रहे 62 ट्यूबवेलों को जल संस्थान रेन वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से रीचार्ज करेगा। देवभूमि में प्रचंड गर्मी के चलते पिछले दिनों वर्षा न होने से भू-जल स्तर कम हो गया है। ऐसे में प्रदेश के अधिकांश ट्यूबवेल भी सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं। जल संस्थान पहली बार ट्यूबवेल रीचार्जिंग का काम शुरू करने जा रहा है। प्रदेश में सूख रहे 62 ट्यूबवेलों को जल संस्थान रेन वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से रीचार्ज करेगा। इसके लिए सभी ट्यूबवेलों के नजदीक एक गड्ढा खोदा जाएगा, जिसमें वर्षा का पानी एकत्रित होगा। देवभूमि में प्रचंड गर्मी के चलते पिछले दिनों वर्षा न होने से भू-जल स्तर कम हो गया है। ऐसे में प्रदेश के अधिकांश ट्यूबवेल भी सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं। हाल यह है कि ट्यूबवेल हंटिंग करने लगे हैं और अक्सर उनकी गहराई अधिक कर पानी खींचा जा रहा हैअत्यधिक हंटिंग करने वाले 62 ट्यूबवेलों को चिह्नित कर जल संस्थान ने उन्हें रीचार्ज करने की योजना बनाई है। वर्षा से पहले सभी ट्यूबवेलों के समीप गड्ढा खोद दिया जाएगा। जिससे कि आगामी वर्षा में ट्यूबवेलों की रीचार्जिंग शुरू हो जाएगी। ताकि रीचार्ज कार्य मानक के अनुसार व्यवस्थित तरीके से हो सके। इसके अलावा सभी ट्यूबवेलों में सफलतापूर्वक रेन वाटर हार्वेस्टिंग शुरू हो जाए। जल संस्थान के महाप्रबंधक वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से इंजीनियरों को ट्रेनिंग देंगे। उत्तराखंड में  गंगा, यमुना ,अलकनंदा,भागीरथी  जैसी दर्जनों बड़ी नदियां हैं लेकिन फिर भी इन दिनों उत्तराखंड में सैंकड़ो बस्तियों में पानी की किल्लत हो रही है और  आम लोग पीने के पानी की परेशानी जूझ रहे हैं. हालत तो ये है कि लोगों का सब्र टूट रहा है क्योंकि कई दिनों से लोगों के घरों में पानी नहीं आ रहा है और पानी के लिए अब लोगों को अधिकारियों के आगे मटके लेकर धरने प्रदर्शन तक करना पड़ रहा हैं. उत्तराखंड को बने 24 साल हो गए हैं लेकिन उत्तराखंड में ग्राउंडवाटर को लेकर कोई पॉलिसी नहीं आई है केंद्रीय जल आयोग की पॉलिसी पर ही काम हो रहा है पर राज्य के पास अपनी एक कोई ठोस ग्राउंडवाटर को लेकर कोई पॉलिसी नहीं है न सिर्फ राज्य में आम लोग बोरिंग कर  पानी का उपयोग कर रहे हैं बल्कि कमर्शियल अपार्टमेंट और उद्योगों में भी इसका कोई नियम या फिर कोई ऐसा टैक्स नहीं है जो राज्य के राजस्व में बढ़ोतरी करें .और इस बेरोकटोक पर लगाम लगा सके. उत्तराखंड में न सिर्फ अंडरग्राउंड वॉटर को ट्यूबवेल के जरिए निकाला जा रहा है बल्कि अवैध बोरवेल बनाकर पानी निकाला जा रहा है. लगातार उत्तराखंड में हो रही पानी की कमी को देखते हुए राज्य सरकार ने अब ग्राउंडवाटर पॉलिसी पर काम करने की बात कही है सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता का कहना है कि ग्राउंड वॉटर पॉलिसी को लेकर ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है और इसको संबंधित विभागों को भेजा गया है.जयपाल सिंह का कहना है कि सेंटर ग्राउंडवाटर बोर्ड की तरह ही स्टेट ग्राउंडवाटर बोर्ड का ड्राफ्ट तैयार किया है, इसमें वॉटर टैक्स किस तरह लिया जाएगा और कैसे इसका प्रारूप होगा उसको तैयार कर शासन को भेज दिया गया है लेकिन प्रमुख अभियंता का यह भी कहना है कि उत्तराखंड में चार ऐसे ब्लॉक है जो क्रिटिकल है जहां पर ग्राउंडवाटर काफी निचले स्तर पर चला गया है.बहादराबाद, भगवानपुर, काशीपुर और हल्द्वानी ऐसे इलाके हैं जो क्रिटिकल सिचुएशन में आते हैं इसके अलावा अभी फिलहाल अन्य जगहों पर स्थिति ठीक बताई जा रही है लेकिन राज्य में कई ऐसे स्रोत है जहां पानी काफी नीचे चला गया है या फिर उन प्राकृतिक स्रोतों में पानी नहीं है. उत्तराखंड में 400 से ज्यादा ऐसी बस्तियां है जहां लगातार पीने की पानी की समस्या बनी हुई है और इसकी सबसे बड़ी वजह अप्रैल और मई के महीने में बारिश का नहीं होना है तो इसके अलावा जून में भी लगभग अभी तक यही हाल है की बारिश नहीं है. तो दूसरा सबसे बड़ा कारण  ग्राउंड वॉटर के लेवल का भी काफी कम होना बताया जा रहा है
देहरादून की अगर बात करें तो देहरादून के क्षेत्र में भी इस वक्त पानी की समस्या कई क्षेत्रों में है देहरादून के राजपुर क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों में पानी वाले स्रोत में पानी बहुत काम आ रहा है जिसकी वजह से क्षेत्र में पानी की सप्लाई की टाइमिंग पहले दो बार पानी दिया जाता था जिसको अब एक बार कर दिया गया है जल संस्थान के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर कहते हैं कि शिखर फॉल से 15 एमएलडी पानी प्राप्त किया जाता था लेकिन बारिश नहीं होने की वजह से मात्र 10 एमएलडी पानी ही मिल पा रहा है इसके अलावा अंडरग्राउंड वाटर का लेवल भी काफी नीचे चला गया है जिससे उन माध्यमों से भी पानी देने की समस्या उत्पन्न हो गई हैराज्य को बने  24 साल नहीं है कोई ग्राउंडवाटर पॉलिसी राज्य को बने  24 साल ; नहीं है कोई ग्राउंडवाटर पॉलिसी उत्तराखंड, बर्फ से ढकी चोटियों और ग्लेशियरों की भूमि है, जहाँ से कई नदियाँ निकलती हैं, जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोगों की प्यास बुझाती है। विडंबना यह है कि पहाड़ी राज्य के कई हिस्सों के निवासियों को नियमित रूप से पानी की कमी का सामना करना पड़ता है ।

 

लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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