राज्य गठन के बाद पेयजल निगम में नियुक्त अभियंताओं के प्रमाण पत्रों की जांच को लेकर उत्तराखंड समानता पार्टी ने मुख्य सचिव को लिखा पत्र।
देहरादून : राज्य गठन के पश्चात उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों की बंदरबांट और अपात्र व्यक्तियों ने फर्जी/ अवैध स्थाई निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र के आधार पर लाभ लेकर कई विभागों में नौकरी हासिल की है, जोकि सीधे सीधे पात्र व्यक्तियों के हक को छीना गया है। उत्तराखंड समानता पार्टी इसकी घोर निंदा करते हुए दोषियों की जाँच की मांग करता है।
बताते चलें कि इसी क्रम में उत्तराखंड पेयजल निगम में वर्ष 2005 में अभियंताओं के पदों पर नियुक्ति हेतु उत्तराखंड सरकार द्वारा स्थापित व्यवस्थाओं का अतिक्रमण करते हुए अपात्र व्यक्तियों की नियुक्तियां हुई है. जिसको संज्ञान लेते हुए उत्तराखंड सरकार ने चार अधिशासी अभियन्ताओं की सेवाएं समाप्त भी कर दी हैं। उत्तराखंड समानता पार्टी सरकार की इस कार्यवाही की भूरी-भूरी प्रशंसा करती है। अन्य और बहुत सारी ऐसी नियुक्तियां हुई हैं जो जांच करने पर पता चल जाएगा कि अपात्र व्यक्तियों की नियुक्तियां हुई हैं। उन पर भी कार्यवाही करने की उत्तराखंड समानता पार्टी आपसे मांग करती है।
उदाहरण स्वरूप श्री संजय कुमार पुत्र श्री शोभाराम की नियुक्ति उत्तराखंड पेयजल निगम के मुख्यालय के कार्यालय के आदेश संख्या 2340/अधिष्ठान-2/63 दिनांक 22.09.05 के द्वारा अधिशासी अभियन्ता प्रकल्प शाखा उत्तराखंड पेयजल निगम गंगोलीहाट में जूनियर इंजीनियर के पद पर हुई जो ग्राम तिवाया, थाना-गांगलहेडी, जिला सहारनपुर, उत्तर प्रदेश के मूल निवासी हैं (पुलिस सत्यापन रिपोर्ट से स्पष्ट है, सं0-1)। इनके चरित्र सत्यापन का पत्र सम्बन्धित अधिशासी अभियन्ता ने अपने पत्रांक-2340/अधि०-2/63 दिनांक-22.09.05 के द्वारा जिलाधिकारी देहरादून को प्रेषित किया गया था जिस पर उक्त जांच की गयी (संलग्नक-2)।
तहसीलदार देहरादून के कार्यालय द्वारा दिसंबर 2004 में पिछड़ी जाति का प्रमाण पत्र प्रमाण पत्र संख्या 10815 निर्गत किया गया है (संलग्नकः ३)। इस पर शासनादेश संख्या 2688/ एक-4/ सा०प्रशा० दिनांक 20 नवम्बर 2001 में निहित 15 वर्ष अध्याशन के पश्चात प्रमाण पत्र जारी किया जाना चाहिए था का पालन नहीं किया गया है। क्योंकि पुलिस के सत्यापन रिपोर्ट में उत्तराखंड में वर्ष 1990-91 से उनके मामा के घर सुभाष नगर, थाना क्लेमनटाउन में अध्यनरत दर्शाया गया है जिसकी गणना के अनुसार प्रमाण पत्र जारी करने की तिथि तक उनका उत्तराखंड में अध्याशन अधिकतम 14 वर्ष ही आगणित होता है। इस पर पुलिस जांच अधिकारी ने इनके मूल पत्ते पर सत्यापन की संस्तुति की है जिसको विभाग ने जान बूझकर नजर अंदाज किया। इनकी सम्पूर्ण शिक्षा दीक्षा जनपद सहारनपुर में हुई है संलग्नक-4 एवं 5), इससे इनका देहरादून में स्थाई रूप से अध्यासन का कारण भी परिलक्षित नहीं होता है। साथ ही इन्होंने जम्बू विद्यालय जैन इन्टर कालेज, सहारनपुर से दिनांक 02.07.05 को जारी चरित्र प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया है (संलग्नक-6)। जिस पर 30.06.85 से 30.06.90 तक की अवधि में विद्यालय का छात्र होना दर्शाया गया है। जबकि इनके हाईस्कूल प्रमाण पत्र में एस.आर.इण्टर कालेज गांगलहेड़ी एवं इण्टरमीडिएट प्रमाण पत्र पर एस.डी. इण्टरकालेज, सहारनपुर अंकित है भी जांच का बिन्दु है।
इससे स्पष्ट है कि यह प्रमाण पत्र अपात्र व्यक्ति को निर्गत किया गया है, जिसके लिए प्रमाण पत्र निर्गत करने वाले अधिकारी की जवाब देही भी तय की जानी चाहिए। श्री संजय कुमार आदि के प्रकरणों पर जांच के पश्चात भी विभाग द्वारा कार्यवाही करने में हीला हवाली बरती जा रही है.
इस तरह के अन्य कई मामले और भी हो सकते हैं जिनके दबाव में विभाग इस तरह के प्रकरणों को ठंडे बस्ते में डालना चाह रहा है। इस तरह के मामलों में एसआईटी जांच बिठाई जानी निशांत आवश्यक है।
अतः महोदया से निवेदन है कि जिन अपात्र व्यक्तियों नें उत्तराखंड में भर्ती से यहां के निवासियों के अधिकारों पर डाका डालकर नौकरी प्राप्त की हैं उन सबको नौकरी से हटाने की कृपा करें।