गाँव मे अकेले रह रही 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला पर बन्दरो ने किया हमला, सिर फटने से बुजुर्ग की तड़प तड़प हुई मौत, गाँव मे नही मिल पाए युवा अस्पताल पहुंचाने के लिए,
वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला जी के फेसबुक वॉल से ली गई स्टोरी।
गाँव में बुजुर्ग महिला को अस्पताल पहुंचाने को नही मिल पाए युवा । अधिकतर बुजुर्ग वास कर रहे है इन गाँवो में।
पलायन के कारण अधिकतर घर पड़े है सुने, जो भी रह रहे है वे बुजुर्ग है ,उनकी औलादे शहरों में अपने बच्चो के साथ रह रहे है। बुजुर्गों को नही भाता गांव से बाहर शहरों में रहना। बहुत बड़ी पीड़ा है ये पहाड़ के गांवों के लिए। कभी गुलजार रहने वाले गांव वीरान पड़े है। गाँवो में जंगली जानवरों का प्रकोप व गुणी बन्दरो का आतंक सबसे ज्यादा तखलिफ़ दे रहा है। वही शिक्षा, स्वास्थ्य रोजगार इनकी कमी के चलते पहाड़ के पहाड़ खाली होते जा रहे है, सरकार को कोई ठोस उपाय करना होगा वर्ना एक दिन सिर्फ जंगली जानवरो का वास होगा इन गाँवो में।
पौड़ी : पलायन से सूने होते पहाड के गांव और शहर में रह रहे बेटों की बुजुर्ग मां-बाप की उपेक्षा का इससे बड़ा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता जब एक 80 वर्षीय महिला सुबह दस बजे घर की नीमदरी से नीचे गिरी और खून से लथपथ हो गयी। चोट गहरी थी कि सिर से गूदा बाहर निकल गया। शायद किसी नुकीले पत्थर से टकराई थी।
यह घटना पौड़ी के एकेश्वर ब्लाक के एक गांव की है। सिर पर चोट लगने के बाद जो वो बचाव का एक गोल्डन आवर्स होता है, उसकी मियाद कब पूरी हो गयी, पता ही नहीं चला। यहां से अस्पताल भी आठ-दस किलोमीटर दूर है। अज्ञानतावश घायल महिला को प्राथमिक चिकित्सा भी नहीं दी जा सकी। गांव वाले घटनास्थल पर पहुंचे तो घायल महिला लंबी इकहरी सांस ले रही थी। 11 बजे तक उसके बेटे को खबर कर दी गयी। गांव में घायल को उठाकर अस्पताल तक ले जाने के लिए पर्याप्त संख्या में पुरुष नहीं थे। जो हैं, वह बूढ़े और बीमार हैं, तो बुजुर्ग महिला के बेटे का इंतजार किया जाने लगा। कुछ ग्रामीणों ने महिला को पानी पिलाने की कोशिश की लेकिन मुंह के रास्ते भी खून आ रहा था। इस बीच महिला के सिर और मुंह से काफी खून बहता रहा।
बेटा भी गजब का निकला। कोटद्वार से गांव तक का सफर महज दो घंटे में तय हो जाता है। लेकिन अगला व्यक्ति शाम चार बजे के बाद पहुंचा, तब तक मां दम तोड़ चुकी थी। उसकी बिना इलाज के मौत हो गयी। यह बदल रहे रिश्तों और बदल रहे सामाजिक परिवेश की सनसनीखेज और दुखभरी कहानी है।
ग्रामीण बताते हैं कि इस गांव में बंदरों के लगातार हमले हो रहे हैं। बंदर किचन तक घुस जाते हैं। सुबह भी बंदर ने इसी महिला का गूंथा हुआ आटा झपट लिया था। इसके बाद महिला भूखे पेट ही खेतों में चली गयी थी। लौट कर घर आई तो बंदर के हमले से डर से नीमदरी से नीचे गिर गयी। यह पहाड़ की दुखी करने वाली सच्चाई है।