देवभूमि उत्तराखंड में सशक्त भू कानून व मूल निवास कानून क्यो है जरूरी

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साभार : श्री शांति प्रसाद भट्ट राष्ट्रीय प्रवक्ता यूकेडी

टिहरी : 11 फरवरी 2024 को जनांदोलनों की थाती टिहरी (नई टिहरी) में मूल निवास भू कानून लागु करने की मांग को लेकर रैली आयोजित  की गई है।

,देवभूमि उत्तराखण्ड को अपने पूर्वजों से विरासतन  मिली भूमियों को बाहरी व्यक्तियों यानी जमीनखोरो से बचाने के लिए कुछ अन्य हिमालयी राज्यों की तर्ज पर एक विशिष्ट भू कानूनी प्रावधानों की मांग लगातार होती रही है.

 उत्तराखंड में भू कानून का मुद्दा फिर गरमा गया है। जनता, नागरिक संगठन और विपक्षी दलों के सवालों के बीच सरकार भी एक्शन मोड में है. पहाड़ों की पहचान बचाने, उत्तराखंड की संस्कृति, विरासत और वहां के मूल निवासियों की रोजी-रोटी के संरक्षण की आवाज तेज हो रही है, क्योंकि बाहरी लोगों द्वारा उत्तराखंड में कृषि और बागवानी की जमीनों को मनमाने तरीके से खरीदने और वहां बड़े पैमाने पर हो रहे होटल-गेस्ट हाउस जैसे कार्यों को लेकर नाराजगी थी. 

उत्तराखंड में सशक्त भू कानून और मूल निवास लागू करने के लिए जनांदोलन हो रहे है.

असल में सुदूर पहाड़ी अंचलों के वासियों को लगातार यह आशंका  बनी रहती है, कि हमारे पितरों की भूमि कोई हमसे औने पौने दामों में खरीद कर हमे भूमिहीन न बना दे।

यह शंका तब बलवती होती है जबकि उत्तराखंड राज्य में भूमि सुधार कानून उत्तर प्रदेश (उतराखंड) जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम में कई छेद कर मूल निवासियों की जमीनों पर नई तरह की जमींदारी विकसित हो रही है

नब्बे के दशक में चले ऐतिहासिक उत्तराखंड आन्दोलन में जहां पृथक राज्य की मांग की जा रहीं थीं, वही पहाड़वासियों की जमीनों एवम उनकी सांस्कृतिक पहचान बचाए रखने के लिए उत्तर पूर्व के राज्यों(सिक्किम , मेघालय और हिमाचल)की तरह संविधान के अनुच्छेद 371के विभिन्न प्रावधानों की व्यवस्था की मांग की जा रही थी ।

एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड की कुल 8,31,221 हेक्टयर कृषि भूमि  8,55,980 परिवारों के नाम दर्ज थी.

इनमे 5एकड़ से 10एकड़, 10एकड़ से 25एकड़ और 25एकड़ से ऊपर की तीनो श्रणियो की जोतों की संख्या 1,08, 863थी, इन 1,08, 863परिवारों के नाम 4,02,22 हेक्टेयर कृषि भूमि दर्ज थी, यानी राज्य की कुल कृषि भूमि का लगभग आधा भाग, बाकी 5एकड़ से कम जोत वाले 7,47, 107परिवारों के नाम मात्र 4,28, 803हेक्टयर भूमि दर्ज थी, यानी उक्त आंकड़े दर्शाते है कि किस तरह *राज्य के लगभग 12प्रतिशत किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है, और बची हुई 88प्रतिशत कृषक आबादी भूमिहीन की श्रेणी में पहुंच चुकी है।

वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तब राज्य में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950लागू किया गया, और इसके बाद इस कानून में समय समय पर संशोधन हुए:

वर्ष 2000 तक में बाहरी व्यक्तियों को केवल 500वर्गमी,तक ही भूमि खरीद की अनुमति थी।

तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी और भुवन चंद्र खंडूरी  ने बनाया था हिमांचल जैसा भू कानून

वर्ष 2005_2006में तत्कालीन कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी सरकार के कार्यकाल में बाहरी व्यक्तियों के लिए राज्य में भूमि खरीद की सीमा 500वर्गमी ही रखी गई।

वर्ष 2007में भाजपा की भुवन चंद्र खंडूरी सरकार ने यह सीमा 500वर्ग मी से घटाकर 250वर्ग मी कर दी थी।

इस कानून में व्यवस्था थी कि 12सितंबर 2003तक जिन लोगों के पास राज्य में जमीन है, वह 12एकड़ तक कृषि योग्य जमीन खरीद सकते है, लेकिन जिनके पास जमीन नही है वे आवासीय उद्देश्य के लिए भी इस तारीख के बाद 250वर्ग मी से ज्यादा जमीन नही खरीद सकते है, इस कानून को जब  नैनीताल उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित किया तो राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय गई जहां इसे वाजिब और संविधानिक घोषित कर दिया गया।

वर्ष 2018 में भाजपा की त्रवेंद्र रावत सरकार ने उक्त आदेश को 6अक्तूबर 2018 को समाप्त कर दिया, और उतराखड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवंभूमि व्यवस्था अधिनियम 1950)(अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश 2001) में संशोधन कर उक्त कानून में धारा 154(2) जोड़ते हुए पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा खत्म कर दी, इसके साथ ही 143(क ) जोड़कर कृषको की जमीनों को अकृषक बाहरी लोगो द्वारा उद्योगो के नाम पर खरीद कर उसका भू उपयोग परिवर्तन आसान कर दिया साथ ही जिलाधिकारियों को यह अधिकार दे दिया कि 100बीघा तक बंजर जमीनें उधमियों को आवंटित कर दी जाय, सरकार के इस निर्णय से भूमि* के *मूल मालिको का मालिकाना हक समाप्त हो रहा है।

जब भाजपा की  त्रिवेंद्र रावत सरकार विधान सभा में भू कानून में संशोधन का यह विधेयक ला रही थी कि “उतराखंड में भूमि की क्रय विक्रय की अधिकतम सीमा खत्म कर दी”तब इस विधेयक का कांग्रेस ने पुरजोर विरोध किया था, *केदारनाथ जी से तत्कालीन कांग्रेस के विधायक श्री मनोज रावत जी ने कांग्रेस पार्टी का पक्ष रखते हुए कहा था कि “चुकीं कृषि विभाग के आंकड़े कहते है कि प्रतिवर्ष* *4500हेक्टेयर कृषि भूमि कृषि से बहार हो रही है, अर्थात उसका धारा 143 में लैंड यूज चेंज हो रहा है, शेष भूमि वन भूमि बचती है, इसलिए* *सरकार को चाहिए कि उत्तराखण्ड में भूमि की कई किस्में (प्रकार) है, पहले उन सभी किस्मों का नियमितीकरण किया जाय, जैसे* *शिल्पकारों, अनुसूचितजाति, जनजाति को प्रदान की गई भूमियां, और विभिन्न प्रकार के पट्टे की भूमियां आदि “साथ ही* *वर्ष 1960 के दशक के बाद भूमि बंदोबस्ती नही हुआ है, इसलिए अब आवश्यकता है, व्यापक स्तर पर भूमि बंदोबस्त करने की, पर्वतीय क्षेत्रों में चकबंदी की अत्यंत* *आवश्यकता है* , *पूर्व की सरकार ने इसके लिए कानून भी बनाया है, जिसके रूल्स बनने शेष है, ताकी इस दिशा में भी आगे बढ़ा जा* *सके* ।

भू *कानूनो में संशोधनों के वक्त केंद्रीय कानून वनाधिकार अधिनियम 2006 और अन्य वन संबंधी कानूनों* *को* *भी दृष्टिगत रखा जाय, चुकीं पहाड़ो में हम सभी वनों और वन उपजों पर आधारित जीवन यापन करते है, इसके अतरिक्त विभिन्न बांधों, तालाबों, झील निर्माण आदि में विस्थापित/प्रभावित हुए परिवारों को नए विस्थापित भुमि पर उन्हें भौमिक अधिकार का प्राविधान हो।

भूमि अधिग्रहण एवम पुनर्वास अधिनयम 2013(लारा_2013) केन्द्रीय कानून के अनुसार वे भूमि जिन्हें पूर्व में बांध  परियोजनाओ के* *लिए अधिग्रहित किया गया था और पांच* *वर्षों तक उस अधिग्रहित भूमि का कोई उपयोग परियोजना कार्य के लिए नहीं किया गया है, तो वह स्वत:* *मूलकाश्तकार के नाम पुनः उसके खाता खतौनी में इंद्राजी हो जाय ।*

राज्य गठन के बाद लगभग एक लाख हेक्टियर कृषि योग्य जमीन कृषि से बाहर हो गई और ऐसी जमीन में या तो इमारतें उग गई या फिर जंगल झाड़ियां उग गई है, अगर इतनी सीमित जमीन भी पहाड़ के लोगों से छीन ली गई तो उनकी पीढ़ियां ही भूमि हीन हो जाएंगी ।

*भाजपा की धामी सरकार ने     कमेटी बना कर की इतिश्री*

जुलाई 2021में भाजपा की धामी सरकार ने उत्तराखंड भू कानून के अध्ययन और परीक्षण के लिए पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया था, यह कमेटी पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में बनी इसमें अजेंद्र अजय, अरुण ढौंडियाल, डी एस गबरियाल, दीपेंद्र चौधरी शामिल थे, इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मुख्य मंत्री को 23 संस्तुतियों सहित सौंपी थी

कमेटी की प्रमुख संस्तुतियों  मे नदी, नालों तथा सार्वजानिक भूमि पर अतिक्रमणकारियो और जिन्होंने ऐसी भूमि पर धार्मिक स्थल बनाए है, उनके ख़िलाफ़ कठोर दण्ड का प्रावधान किया जाय ।

¶कुछ बड़े कामों को छोड़कर अन्य के लिए भूमि को क्रय के स्थान पर लीज पर दिया जाय।

¶परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेखों से जोड़ने जैसी सिफारिस की गई है।

¶प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओ और भूमि के अनियंतित्र क्रय विक्रय के बीच संतुलन स्थापित करते हुए भू कानून संशोधन के लिए 23संस्तुतियां की है।

हिमाचल प्रदेश का भू कानून यदि देखा जाये तो हिमाचल में वाई एस परमार की सरकार ने हिमाचल प्रदेश टेंनेसी एंड लैंड रिफॉर्म एक्ट 1972में यह प्रावधान एक्ट के अध्याय 11 की धारा 118के तहत हिमाचल में कृषि भूमि नहीं खरीद जा सकती है, गैर हिमाचली नागरिक को यहां जमीन खरीदने की इजाजत नही है, कमर्शियल प्रयोग के लिए आज जमीन किराए पर ले सकते है।

वर्ष 2007में भाजपा की धूमल सरकार ने उक्त कानून की धारा 118में संशोधन कर कहा कि जो 15वर्षो से हिमांचल में रह रहा है वह जमीन खरीद सकता है, इस संशोधन का जब भारी विरोध हुआ तब 25साल की जगह 30साल किया गया।

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