आज बेबाक सुप्रसिद्ध साहित्यकार सादत हसन मंटो के शब्द याद आ रहे है….. अगर आप इन अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है की ज़माना ही नाकाबिल ए बर्दाश्त है।
84 लाख योनि के बाद मनुष्य जीवन प्राप्त करने के बाद भी इसी मनुष्य जीवन में एक और प्रजाति का जन्म होता है जिसे दलाल स्पेशीज कहा जाता है। जब प्राणियों का जैविक वर्गीकरण किया जाता है तो उसमे कई वर्ग, स्पेसीज होती है किंतु होमो सेपियन में यह प्रजाति रक्तबीजों के जैसे पाए जाते है जिनका मर्दन आज आवश्यक ही नही बल्कि अनिवार्य हो चुका है।
दलाल वर्तमान में एक ऐसे परजीवी वर्ग है जो न योग्यता से पनपता है न ही गुणों पर। उसका पोशक होता है येस सर , चाटुकारिता, लोलोपुता, ईर्ष्या ,द्वेष,स्वार्थ,अवन्छित लाभ स्वहित और सबसे महत्वपूर्ण शिखंडी रूपी शीर्षासीन वर्ग जिनका पोषण स्वयं वर्षों से दलाल संस्कृति करती आई है और जिन्होंने तुष्टिकरण की नीति अपनाकर एक स्वस्थ व्यवस्था को ध्वस्त किया है । विभिन्न नामों से प्रचलित दलाल शब्द कही तहेलुया,कही घड़ा, कही ठग,कही कमीशनखोर, कही कूटना कही बिचौलिए, कही ब्रोकर , कही बिछवाई कहे जाते रहे है। क्योंकि इस वर्ग विशेष को पुष्पित पल्लवित करने के लिए न पानी ,न खाद, न धूप ,न उचित तापमान की जरूरत होती है बल्कि इसके लिए इनकी कुंठित आत्मा को प्रोत्साहित किया जाता है ताकि इन्हे अपना महत्व समझ आ सके की वे भी धरती पर बोझ नहीं बल्कि अपना अमूल्य योगदान दे सकते है। समय की मांग के अनुसार या यूं कहे लोलुप मांगों के अनुसार ये चाहे व्यवस्था के अंदर हो या व्यवस्था के बाहर इनकी संख्या में जंगली कुकुरमुत्तों के जैसे वृद्धि देखी जा सकती है। प्रकृति में तो इन्हे वनाग्नि नष्ट कर देती है लें लेकिन मनुष्य जीवन में इनका ह्रास उसी जमात का दूसरा दलाल करता है जो इस संस्कृति को अपनी अघोषित विरासत समझता है। कुछ का तो यह जीवन यापन का जरिया है और कुछ निष्क्रिय झोलाझाप सेवारतों की ऊपरी कमाई का माध्यम ।
गांधीजी के शब्दों में लक्ष्य तभी सात्विक होगा जब साधनों में सात्विकता होगी। और गांधीजी के इन्ही पदचिन्हों के अनुरूप माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा समय समय पर नोटबंदी की परिमार्जन की नीति अपनाई गई है जो इन्ही दलाल एवम ब्लैक मनी की समानांतर आर्थिक व्यवस्था के मुख्य सूत्रधार माने जाते है। वही भ्रष्टाचार निरोधक कानून एवम समस्त संस्थाएं ऐसे वर्ग पर नकेल कसने के लिए कड़े प्रावधान रखता है ताकि इस मकड़जाल में लोग न फसे । ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार एशियाई क्षेत्र में भारत 180 देशों में से 85 देशों में सबसे ऊपर है हालांकि 2013 के मुकाबले आज की रैंकिंग काफी बेहतर है और यदि भारत अपने आप को एक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में प्रतिस्थापित करना चाहता है तो उसे समय समय पर ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक करते रहना चाहिए।