बेनेगल नरसिंह राऊ भारतीय संविधान के वास्तविक रचयिता , डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
बेनेगल नरसिंह राउ का जन्म कर्नाटक के एक बेहद शिक्षित परिवार में हुआ था. उनके पिता बेनेगल राघवेंद्र राऊ मशहूर डॉक्टर थे. इस बार 26 जनवरी (को भारतीय गणतंत्र की उम्र 75 साल की हो जाएगी. बीते सालों में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत ने खुद को सकारात्मक रूप से विकसित किया है. इस दौरान भारतीय लोकतंत्र के विकास और संविधान निर्माण के लिए कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों को क्रेडिट मिला, लेकिन यह तकलीफ की बात है कि उस व्यक्ति का नाम चर्चा से लगभग गायब रहता है जिसने पहली बार भारतीय संविधान लिखा था. वैसे तो भारतीय संविधान को तैयार करने में कई विद्वान लोगों की भूमिका रही लेकिन एक नाम है, जिन्हें सबसे कम ख्याति मिली. वक्त के साथ धीरे-धीरे हम संविधान तैयार करने में उनके योगदान को भूलते चले गए. उस विद्वान का नाम है बेनेगल नरसिंह राऊ भारतीय सिविल सेवा परीक्षा पास करने के बाद, उन्हें बंगाल में तैनात किया गया और वह जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में काम करने लगे. अपने करियर की शुरुआत. में, उन्होंने संवैधानिक कानून के प्रति झुकाव दिखाया. आगे बढ़ते हुए, राव भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ प्रमुख संवैधानिक विकासों से जुड़े और इस क्षेत्र में उन्होंने संवैधानिक कानून के प्रति झुकाव दिखाया. आगे बढ़ते हुए, राव भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ प्रमुख संवैधानिक विकासों से जुड़े और इस क्षेत्र में सबसे 1946 में, बी एन राव को औपचारिक रूप से डॉ बी आर अम्बेडकर की अध्यक्षता में सात विशेषज्ञों की कोर ड्राफ्टिंग कमेटी के संवैधानिक सलाहकार के रूप में नियुक् ड्राफ्टिंग कमेटी के संवैधानिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया. विविधता से भरे इतने बड़े भारत देश के लिए नागरिकों के लिए कानून और आचार संहिता बनाना.. और उनके व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना एक विस्तृत कार्य था इसके लिए किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो संविधान की क्षमता को समझे और पुराने औपनिवेशिक सोच से परे हो. अपने व्यावहारिक आचरण और आदर्शवादी दृष्टिकोण के साथ, राव ने यह काम अपने कंधो पर लिया 29 अगस्त 1947 को प्रारूप समिति की बैठक में कहा गया कि संविधान सलाहकार बीएन राव द्वारा तैयार प्रारूप पर विचार कर उसे संविधान सभा में पारित करने हेतु प्रेषित किया जाए। संविधान सभा में संविधान का अंतिम प्रारूप प्रस्तुत करते हुए 26 नवंबर 1949 को भीमराव आंबेडकर ने जो भाषण दिया था, उसमें उन्होंने संविधान निर्माण का श्रेय बीएन राव को भी दिया है।संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष आंबेडकर थे। उसके दूसरे सदस्य थे अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, जो मद्रास प्रांत के महाधिवक्ता रहे। इसके तीसरे सदस्य थे, कन्हैया लाल मणिक लाल मुंशी। मुंशी की ख्याति गुजराती और हिंदी लेखक के साथ ही जाने-माने वकील के रूप में भी रही है। मुंशी ने भी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था। तब उनका मानना था कि गृह युद्ध के जरिये भारत अखंड रह सकता है। वे पाकिस्तान के निर्माण के विरोध में इसी विचार को सहयोगी पाते थे। इसके चौथे सदस्य थे, असम के मोहम्मद सादुल्ला। वैसे तो उन्होंने मुस्लिम लीग के साथ राजनीति की, लेकिन वे भारत में ही रहे। पांचवें सदस्य थे आंध्र प्रदेश के मछलीपत्तनम निवासी एन माधवराव, जो मैसूर राज्य के दीवान यानी प्रधान मंत्री भी रहे। वे तेलुगूभाषी थे और दिलचस्प है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के विरोधी रहे। छठे सदस्य को लोग नेहरू सरकार में वित्त मंत्री रहे टीटी कृष्णमाचारी के रूप में जानते हैं। सातवें सदस्य एन गोपालास्वामी अयंगर थे। वे बीएन राव से पहले कश्मीर के प्रधान मंत्री रहे। राऊ ने दुनिया के लिखित और अलिखित संविधानों का गहन अध्ययन कर समय समय पर अपने दस्तावेज़ों में उपयोगी तथ्य और तर्क दिए और उसे सदस्यों के लिए उपलब्ध कराया। अगर डॉक्टर भीमराव आंबेडकर संविधान निर्माण के विभिन्न चरणों में एक कुशल पायलट की भूमिका में थे, तो बेनेगल राऊ वो व्यक्ति थे जिन्होंने संविधान की एक स्पष्ट परिकल्पना दी और उसकी नींव रखी. संवैधानिक विषयों को साफ़-सुथरी भाषा में लिखने की उनमें कमाल की योग्यता थी।”बी. शिवाराव की संपादित पुस्तक ‘इंडियाज़ कांस्टीट्यूशन इन द मेकिंग’ में 29 अध्याय हैं जिसमें अधिकतर में बेनेगल नरसिंह राऊ के वो दस्तावेज़ शामिल हैं जो उन्होंने संविधान निर्माण में मदद पहुंचाने के लिए लिखे थे। संविधान सभा की बहस में जब कभी विवाद के विषय उठे राऊ का परामर्श लिया जाता था जो सदैव उनके गहरे अध्ययन पर आधारित होता था।परंतु राजेन्द्र प्रसाद के ये शब्द सुनने के लिए बेनेगल नरसिंह राऊ संविधान सभा में मौजूद नहीं थे क्योंकि तब तक उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और वो संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि बन गए थे।उन्हे अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस में बतौर जज नियुक्त भी किया गया। परंतु गिरते स्वास्थ्य के पीछे बेनेगल नरसिंह राऊ अधिक समय इस पद पर नहीं टिक सके, और लगभग एक वर्ष के अंदर ही 1953 में ज्यूरिख में उनका देहावसान हो गया। इसे एक विडंबना ही कहा जाएगा कि भारत के संविधान निर्माण में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद उनके योगदान को उतना महत्व नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे.लेकिन संविधान संबंधी दस्तावेज़ों में वो पूरी तरह अपनी अक्षर देह में मौजूद हैं..
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।