राजनीति शास्त्र विभाग प्रभारी, राजकीय महाविद्यालय भत्रोजखान की डॉ केतकी तारा कुमय्या ने सीएए पर अपने विचार रखते हुए कहा कि सीएए कोई प्रयोग नहीं बल्कि पूर्णतया संविधान सम्मत है और किसी भी प्रकार से किसी भी धर्मपंथ व सांप्रदायिक के हितों को आहत नहीं करता है और ना ही नागरिकता से वंचित करता है।
संवैधानिक भाषा मे कहा जाए तो सीएए ‘इनटेलिजिबल डिफेरेंशिया ‘ तथा रेशनल नेक्सस’ के सिद्धांत पर आधारित एक अभूतपूर्व पहल है । भारतीय संसद की संयुक्त समिति के अनुसार यह केवल 31, 313 व्यक्तियों/शरणर्थीयों यानि 25, 447 हिन्दुओं (अधिकतर) पिछड़ी जाति और दलित, 55 ईसाई, 5807 सिख, 2 पारसी 2 बौद्ध व जैन को नागरिकता देकर उन्हे गरिमामय जीवन जीने का लाभ ही नहीं देता बल्कि व्यवस्थित तरीके से नागरिकों का दस्तावेजीकरण भी हो पाएगा ।
सीएए वास्तव में देश के वास्तविक नागरिको को संसाधनों का उचित आवंटन सुनिश्चित करता है और विवेकपूर्ण तरीके से अप्रवासियों तथा शरणार्थियों के बीच तार्किक अंतर कर आंतरिक सुरक्षा को भी मजबूती देता है। यह तीन धार्मिक या थ्योक्रेटिक देशो यानि अगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्लादेश से छः धार्मिक रूप से उत्पीड़ित या जिन्हे’पर्सेक्यूटिड माइनोरिटीज कहा गया है और जो जब अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा बन चुके है उन्हे नागरिकता प्रदान करने का एक सकारात्मक प्रयास है।
जहाँ तक सीएए की उत्पत्ति की बात है तो इसकी पटकथा गाँधी नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद और हाल तक मनमोहन सिंह सहित कई राजनीति हस्तियों द्वारा लिखी जा चुकी थी, इसलिए इसे सांप्रदायिक और धार्मिक ध्रुवीकरण का साधन कहा जाना एक तरह से उन विभूतियों को सदियों पुरानी समझदारी पर आघात करना है।
सीएए न तो नागरिकों के विरोध में है और न ही धर्म बनाम धर्म है बल्कि यह इंडिक सभ्यता को मजबूत करता है। यह भारतीयों के द्वारा व भारतीयों के लिए एक सकारात्मक कदम है जिसका हम सबको खुले हृदय से स्वागत करना चाहिए।भारत पहले भी मानवाधिकारों संरक्षक के रूप में जाना जाता था और आज भी सीएए के द्वारा विभाजन की ऐतिहासिक भूल का नैतिक सुधार कर अपने नैतिक प्रमाण दे रहा है, जिसका हम सबने समर्थन करना चाहिए।