हम परंपरा में शामिल अच्छा स्वास्थ्य देने वाले भोजन कर सकें और दुनिया को भारत की परंपरा से अवगत करा सकें. “भारत मिलेट्स को लोकप्रिय बनाने के काम में सबसे आगे है, जिसकी खपत से पोषण, खाद्य सुरक्षा और किसानों के कल्याण को बढ़ावा मिलता है.” उन्होंने आगे कहा, “भारत, विश्व श्रीअन्न का सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. भारत में कई प्रकार के श्रीअन्न की खेती होती है, जिसमें ज्वार, रागी, बाजरा, कुट्टु, रामदाना, कंगनी, कुटकी, कोदो, चीना और सामा शामिल हैं.” हालांकि जानकार कहते हैं कि बजट में मोटे अनाज को लेकर जो कुछ कहा गया है वह सिर्फ एक प्रचार भर है. रूरल वॉयस के संपादक कहते हैं कि मंत्री ने मोटे अनाज पर बात की है लेकिन उन्हें यह नहीं नजर आता कि इससे किसानों की आय में ज्यादा बढ़ोतरी कैसे होगी. उनका कहना है कि मोटे अनाज को लेकर पब्लिसिटी अच्छी है और लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि इसे खाने से सेहत अच्छी रहेगी.वो कहते हैं, “लेकिन कोई ठोस नीति नहीं है कि सरकार किसानों से मोटा अनाज खरीदेगी की नहीं या कोई स्कीम होगी जिसमें लोगों को मोटा अनाज सरकार से मिलेगा. अगर इस तरह की कोई स्पष्टता होती तो ज्यादा बेहतर होता. वैसा कुछ नहीं है. किसान आखिर मोटे अनाज को क्यों उगाएगा. वो कहते हैं, “उसके इसे उगाने के लाभ क्या है. अगर सरकार कहती है कि किसान जो मोटा अनाज उगाएगा उसे वह खरीदेगी तो किसान आश्वस्त होगा. लेकिन वैसा कुछ बताया नहीं गया है.”हालांकि मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को धान के मुकाबले पानी की कम जरूरत पड़ती है और यूरिया अन्य रसायनों की जरूरत नहीं पड़ती है.एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में पैदा होने वाले मोटे अनाज में 41 प्रतिशत तक भारत में पैदा होता है. साल 2021-22 में मोटे अनाजों को एक्सपोर्ट करने में भारत ने 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है. भारत में पैदा होने वाले मोटे अनाज जैसे बाजरा, रागी, ज्वार और कुट्टु अमेरिका, यूएई, ब्रिटेन, नेपाल, सऊदी अरब, यमन, लीबिया, ओमान और मिस्र जैसे देशों में निर्यात किए जाते हैं. 2018 में भारत सरकार ने मोटे अनाज को पोषक अनाज की श्रेणी रखते हुए इन्हें बढ़ावा देने की शुरूआत की थी. मौजूदा समय में 175 से अधिक स्टार्टअप मोटे अनाज पर काम कर रहे हैं.इसी साल भारत में होने वाले जी-20 सम्मेलन में विदेशी नेताओं के सामने मोटे अनाज से बने पकवानों को भी परोसा है. हरित क्रांति और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की शुरुआत से पहले तक मोटे अनाज आम लोगों विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के दैनिक आहार का प्रमुख हिस्सा थे। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मुहैया कराए गए सब्सिडी के चावल और गेहूं ने मोटे अनाज का स्थान हासिल कर लिया। जीवनशैली और खानपान में बदलाव के कारण लोगों ने ‘प्राचीन’ समय के सेहतमंद मोटे अनाज की जगह बारीक अनाज (कम पौष्टिक) चावल और गेहूं को पसंद करना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि समग्र खाद्य टोकरी में मोटे अनाज की हिस्सेदारी घट गई। हरित क्रांति से पहले समग्र खाद्य टोकरी में मोटे अनाज की हिस्सेदारी 20 फीसदी थी। यह हरित क्रांति के बाद गिरकर बमुश्किल पांच से छह फीसदी हो गई।मांग लगातार कम होने और सरकार की ओर से बाजार में मदद नहीं मिलने से मोटे अनाज की पैदावार निरंतर कम होती चली गई। लिहाजा मोटे अनाज का क्षेत्रफल निरंतर गिरता गया। हाल यह हो गया कि हरित क्रांति से पहले जितने क्षेत्र में मोटे अनाज की खेती होती थी, वह उसके आधे क्षेत्र में होने लगी। हालांकि रोचक तथ्य यह है कि मोटे अनाज की उत्पादकता दोगुनी से अधिक हो गई। महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि मोटे अनाज सहित गिनी-चुनी फसलों में ही वैश्विक औसत उत्पादन से अधिक भारत का औसत उत्पादन है। भारत में मोटे अनाज की औसत उत्पादकता 1239 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है जो वैश्विक उत्पादकता 1229 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से अधिक है। इसका प्रमुख कारण यह है कि मोटे अनाज की ज्यादा पैदावार देने वाली कई किस्मों और हाईब्रिड किस्मों का विकास किया गया है। इससे एग्रोनॉमिक्स की कई प्रैक्टिस बेहतर हुई हैं।मोटे अनाज पर अनुसंधान और विकास की पहल को 2018 के बाद बहुत प्रोत्साहन मिला। वर्ष 2018 को मोटे अनाज के राष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाया गया। इस छोटे से समय में व्यावसायिक खेती के लिए चार बायो-फोर्टिफाइड हाईब्रिड (पोषक तत्त्व-समृद्ध जीन के साथ प्रत्यारोपित) सहित एक दर्जन से अधिक उपज-वर्धित किस्में जारी की गई हैं। इसके अलावा मोटे अनाज के 67 मूल्य वर्धित उत्पादों के वाणिज्यिक उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी विकसित की गई हैं और ये स्टार्टअप व किसान उत्पादक संगठनों सहित 400 से अधिक उद्यमियों को दी गई हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत मोटे अनाज का उप-अभियान भी शुरू किया जा चुका है। कुछ राज्यों में मध्याह्न भोजन योजना के तहत स्कूली बच्चों को मोटे अनाज के व्यंजन मुहैया कराए जा रहे हैं। सरकार के महत्त्वपूर्ण पोषण कार्यक्रम ‘पोषण मिशन अभियान’ के तहत समाज के कमजोर वर्गों के बच्चों और महिलाओं को मोटे अनाज के व्यंजन उपलब्ध कराए जा रहे हैं।बहरहाल इस महत्त्वपूर्ण तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि एक समय में जो स्थान मोटे अनाज को प्राप्त था, उसे वह बढ़ावा मिलने पर भी पारंपरिक भोजन में पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर पाएगा। एक समय मोटे अनाज की चपाती, इडली, डोसा बनाए जाते थे। हाल यह था कि आज जो पारंपरिक व्यंजन गेहूं, चावल या रागी से बनाए जा रहे हैं, वे सभी मोटे अनाज से बनाए जाते थे। हालांकि आधुनिक किस्म के स्नैक्स और प्रचलित स्वाद के अनुसार मूल्य वर्धित उत्पाद के जरिये मोटे अनाज की खपत बढ़ाई जा सकती है। लिहाजा यह जरूरी हो गया है कि मोटे अनाज पर आधारित प्रसंस्करण खाद्य इकाइयों में व्यापक स्तर पर निवेश किया जाए। मोटे अनाज दुनिया में खाद्य संकट के निवारण में सबसे कारगर साधन बन सकते हैं, क्योंकि अनाज की कमी दुनिया भर में महंगाई व भुखमरी बढ़ाने का कारण बन रही है। वहीं इसको बढ़ावा देने का दूसरा बड़ा कारण इसका पर्यावरण हितैषी होना भी है। क्योंकि मिलेट्स की खेती खराब पड़ी जमीन पर भी की जा सकती है और यह कम मेहनत व बिना रसायनों के अच्छा उत्पादन देती है, जिससे पर्यावरण व स्वास्थ्य को भी नुकसान नहीं होता। मोटे अनाजों को लंबे समय से गरीबों की फसल कहा जाता रहा है, वाणिज्यिक खाद्य प्रणाली में उनकी उचित स्थिति और अनुसंधान और विकास में निवेश के संबंध में उन्हें उपेक्षित रखा गया है। पर्यावरण की गुणवत्ता में प्रतिकूल परिवर्तनों और इसके परिणामस्वरूप भोजन और पोषण सुरक्षा पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के बारे में बढ़ती चिंताओं और लगातार बढ़ती आबादी के लिए प्रति यूनिट संसाधन निवेश के लिए खाद्य उत्पादन बढ़ाने की कथित आवश्यकता के साथ, इन मोटे अनाजों की खाद्य टोकरियों में प्रवेश करने की अच्छी संभावना है। उपभोक्ताओं की व्यापक श्रृंखला, ग्रामीण और शहरी, गरीब और अमीर और विकसित और विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाओं में। इन अनाजों के पोषक तत्वों और स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं और उनसे तैयार किए जा सकने वाले विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पादों पर वैज्ञानिक रूप से सिद्ध ज्ञान और गैर-दस्तावेज ग्रामीण ज्ञान का एक बड़ा भंडार है। इन मोटे अनाजों के संभावित उपयोग पर अनुसंधान और विकास से इन अनाजों को तैयार खाद्य पदार्थों के रूप में उपयोग करने की क्षमता सामने आई है। अपने खाद्य उपयोगों के अलावा, इन अनाजों का उपयोग फ़ीड, जैव ईंधन या बायोएथेनॉल, बायोपॉलिमर, डिस्टिलरी और सिरप के लिए सब्सट्रेट के रूप में भी किया जाता है। अनाज के कई घटकों में उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले पोषण के अलावा जैविक गतिविधि भी होती है। फेनोलिक यौगिकों में टैनिन, फेनोलिक एसिड, कूमारिन, फ्लेवोनोइड और एल्काइल रेसोरिसिनॉल शामिल हैं। फिनोल पौधों के खाद्य पदार्थों के स्वाद, बनावट (जैसे बीयर का माउथफिल), रंग, स्वाद और ऑक्सीडेटिव स्थिरता के लिए जिम्मेदार । इनमें न्यूट्रास्युटिकल गुण होते हैं और ये आमतौर पर चोकर में पाए जाते हैं। फेनोलिक एसिड के दो वर्ग हैं हाइड्रॉक्सीसिनैमिक एसिड और हाइड्रॉक्सिल बेंजोइक एसिड। हाइड्रॉक्सीबेन्जोइक एसिड में हाइड्रॉक्सी बेंजोइक एसिड, वैनिलिक, सीरिंजिक और प्रोटोकैटेचिक एसिड शामिल हैं, जबकि हाइड्रॉक्सीसेनामिक एसिड में कौमारिक, कैफिएक एसिड, फेरुलिक और सिनापिक एसिड शामिल हैं।
लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।