देहरादून

राजधानी में ही मूलभूत सुविधाओं से वंचित स्कूल जाने की बन गई मजबूरी, डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

 

देहरादून का इतिहास रामायण और महाभारत की कहानी से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि रावण और भगवान राम के बीच युद्ध के बाद, भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण ने इस स्थल का दौरा किया था। इसके अलावा, महाभारत में कौरवों और पांडवों के महान शाही गुरु, द्रोणाचार्य के नाम पर ‘द्रोणनगरी’ के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि उनका जन्म और निवास देहरादून में हुआ था। देहरादून के आसपास के क्षेत्रों में प्राचीन मंदिरों और मूर्तियों जैसे साक्ष्य मिले हैं जिन्हें रामायण और महाभारत की पौराणिक कथाओं से जोड़ा गया है। ये अवशेष और खंडहर लगभग 2000 साल पुराने माने जाते हैं। इसके अलावा, स्थान, स्थानीय परंपराएं और साहित्य महाभारत और रामायण की घटनाओं के साथ इस क्षेत्र के संबंधों को दर्शाते हैं। महाभारत की लड़ाई के बाद भी, इस क्षेत्र पर पांडवों का प्रभाव था क्योंकि हस्तिनापुर के शासकों ने सुबाहू के वंशजों के साथ इस क्षेत्र पर सहायक के रूप में शासन किया था। इसी तरह, इतिहास के पन्नों में ऋषिकेश का उल्लेख है जब भगवान विष्णु ने संतों की प्रार्थना का जवाब दिया, राक्षसों का वध किया और संतों को भूमि सौंप दी। महाभारत के समय में चकराता नामक स्थान का ऐतिहासिक प्रभाव है। देहरादून किसी पहचान की मोहताज नहीं है। पर्यटन नगरी के साथ यहां कई ऐसे संस्थान हैं जो दून को देश और दुनिया में एक अलग पहचान दिलाते हैं ।आजादी के 7 दशक के बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित गांव वासी अपनी बदहाली को रो रहे हैं। इस गांव की हकीकत ऐसी है कि यहां न चिकित्सा और शिक्षा के पर्याप्त इंतजाम हैं।भले ही राजधानी देहरादून में सत्ता की चमक-दमक प्रदेश की खुशहाली को लेकर सुखद अनुभव करवाती है और सचिवालय में बैठे आला अधिकारी प्रदेश के हर गांव में विकास के जो बड़े-बड़े दावे करते हैं वह सिर्फ कागजी बातें है। राज्य बनने के बाद प्रदेश में कितना विकास हुआ है, आजकल पूरा आजादी की 75वीं वर्षगांठ के अमृत महोत्सव के रस में डूबा हुआ है, मगर आज भी उत्तराखंड में एक ऐसा क्षेत्र भी है जहां के लोग पूरे साल पानी के तेज बहाव का सामना करते हैं। मानसून में तो यहां जिंदगी और भी दुश्वार हो जाती है। न केवल गांव वालों को घर के किसी भी छोटे-मोटे काम के लिए नदी पार करके जाना होता है यह हकीकत बयां करने को राजधानी देहरादून से सिर्फ 22 किलोमीटर दूर बसा सौंदणा गांव ही काफी है। इस गांव में पहुंचने के लिए आज भी कोई सड़क तक नहीं है। नदी के किनारे से होकर ही आपको गांव तक पहुंचना होता है न सड़क है। रोजगार की बात तो छोड़ ही दीजिए। डोईवाला विधानसभा के अंतर्गत आने वाले हल्द्वारी और लंद्वाकोट गांव में अब तक नही पहुंची सकी सड़क। रायपुर ब्लॉक की ग्राम पंचायत धारकोट के दो गांव लंद्वाकोट और हल्द्वारी आज भी विकास से कोसों दूर है।प्रदेश की शीतकालीन राजधानी देहरादून से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इन गांव के ग्रामीणों अभी भी है मूलभूत सुविधाओं से वंचित। आखिर क्यों ? आज भी यह गांव सड़क मार्ग से नही जुड़ पाए। डोईवाला विधानसभा की दूरस्थ पहाड़ी पर बसा हल्द्वारी और लंद्वाकोट गांव सड़क से ना जुड़ने के कारण आज भी इस गांव के ग्रामीण और बच्चे दस किलोमीटर की लंबी दूरी पैदल नापने को मजबूर हैं। गांव के लोग भाजपा की सरकार और उनके नुमाइंदों से भी बेहद नाराज हैं। चुनाव के समय वोट मांगने के लिए सभी नेता मिलों पैदल चल कर गांव में आते हैं और विकास के कोरे सपने दिखाकर वोट तो मांगते हैं।परंतु जीत के बाद कोई जनप्रतिनिधि गांव में आकर झांकते तक नही हैं। विकास की बात करने वाली सरकारे भी यहां तक सड़क पहुंचने में नाकामयाब साबित हुई है। अब देखने वाली बात होगी की सरकार और उनके नुमाइंदे कब तक सड़क से अछूते इन गांव के विकास की कहानी लिखते हैं? रोजाना लंबी दूरी नापकर स्कूल में अक्षर ज्ञान के लिए आने वाले बच्चों की आंखों में सपने तो है लेकिन सरकार से मायूस हैं। बताया की विद्यालय तक का मार्ग जंगल व नदी से होकर गुजरता है जहां जंगली जानवरों व असामाजिक तत्वो का भय निरंतर बना रहता है। लेकिन सवाल तो यह है कि क्या भविष्य के सुनहरे सपने दिखा कर, वहां रह रहे लोगों की वर्तमान मूलभूत जरूरतों से महरूम रखा जा सकता है ? आखिर वह लोग कौन से जुर्म की सजा इस काले पानी के रूप में भुगत रहे हैं? सड़क की स्वीकृति की घोषणा सरकारों ने की थी। साथ ही सड़क निर्माण के बड़े-बड़े सपने भी इन गावों के लोगों को दिखाए गए. आरुषि, कक्षा 10 की छात्रा भले ही आज उत्तराखंड की सरकार अपने कार्यकाल का एक साल बेहद कामयाब बताकर वाह- वाही लूट रही है लेकिन चिराग तले अंधेरा वाली कहावत यहां पर सटीक बैठती हैं। ग्रामीण के लिए पहाड़ के विकास की बड़ी – बड़ी बाते करने वाली सरकार के लिए इस गांव की स्थिति शर्मशार करने वाली है। वहीं विकास के दावों की हकीकत भी बयां करती नजर आती हैं।

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

 

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