कोरोना पर मन की जीत है डाॅ रमेश पोखरियाल निशंक की यह कविता।
कोरोना से जंग जीते शिक्षा मंत्री “डाॅ रमेश पोखरियाल निशंक”।
एम्स अस्पताल में भर्ती रहते हुए कोरोना पर लिखी कविता।
कोराना से जंग जीत लम्बे समय के बाद देश के शिक्षा मंत्री “डॉ रमेश पोखरियाल “निशंक” अब पूरी तरह स्वस्थ हो गए हैं। सूत्रों के अनुसार जल्द ही अस्पताल प्रशासन उन्हें घर लौटने की अनुमति दे सकता है। इस बीमारी से स्वस्थ होकर लौटे हजारों सकारात्मक और दृढ़ संकल्पित लोगों में से वे भी एक हैं। जिन्होंने ये जता दिया कि बीमारी कितनी भी जानलेवा और घातक क्यों न हो, लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति और सकारात्मक सोच के बूते आप उस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
कहते हैं शरीर से पहले कोरोना तेजी से मन को शिकार बनाता है। वह धीरे-धीरे मन को विचलित कर व्यक्ति को मृत्यु के अंधेरे की ओर धकेलता जाता है। मरीज के भीतर मृत्यु का डर जितना बढ़ता जाता है उतनी ही तेजी से कोरोना शरीर को भीतर से खत्म करता जाता है। दिल्ली एम्स अस्पताल में भर्ती इन सभी आशंकाओं से घिरे डाॅ निशंक ने अपने मन को एकाग्र रख उस बुरे वक्त में भी अपने भीतर कवि प्रवृति को जगाए रखा। अकेलापन और उस पर सन्नाटे को चीरती वेंटिलेटर व पेशेंट माॅनिटर की आवाज के बीच डाॅ निशंक ने अपनी कलम उठाई और कोरोना से मानो शब्दों की जंग छेड़ दी। बीच-बीच में जब चिकित्सक आते और डेली रूटीन कर लौट जाते। डाॅ निशंक अपनी कविता लिखने में ही व्यस्त रहते। करीब 20 पंक्तियों की इस कविता में वे कोरोना से संवाद करते हुए उस पर अपने मन की विजय पताका फैराते नजर आ रहे हैं। अपने शब्दों से वे कभी कोरोना को ललकारते तो कभी उसे अंधकार पर प्रकाश की विजय का पाठ पढ़ाते। डाॅ निशंक द्वारा रचित यह कविता कोरोना या अन्य किसी घातक बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए प्रेरणादायक है। तो प्रस्तुत है भारतवर्ष के शिक्षामंत्री, “डाॅ रमेश पोखरियाल निशंक” द्वारा रचित यह कविता –
“कोरोना”
“हार कहाँ मानी है मैंने?
रार कहाँ ठानी है मैंने?
मैं तो अपने पथ-संघर्षों का
पालन करता आया हूँ।
क्यों आए तुम कोरोना मुझ तक?
तुमको बैरंग ही जाना है।
पूछ सको तो पूछो मुझको,
मैंने मन में ठाना है।
तुम्हीं न जाने,
आए कैसे मुझमें ऐसे?
पर,मैं तुम पर भी छाया हूँ,
मैं तिल-तिल जल
मिटा तिमिर को
आशाओं को बोऊँगा;
नहीं आज तक सोया हूँ
अब कहाँ मैं सोऊँगा?
देखो, इस घनघोर तिमिर में
मैं जीवन-दीप जलाया हूँ।
तुम्हीं न जाने आए कैसे,
पर देखो, मैं तुम पर भी छाया हूँ।”