उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और तत्कालीन डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर किशन चंद को सुप्रीम कोर्ट से कड़ी फटकार मिली। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इन दोनों ने खुद को ही कानून मान लिया था और नियमों की उपेक्षा करते हुए जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बड़ी संख्या में पेड़ कटवा दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किशन चंद पर संगीन आरोप होते हुए भी वन मंत्री हरक सिंह रावत ने जबरन उन्हें डीएफओ नियुक्त करवाया था। पूरा मामला नेता और नौकरशाहों की मिलीभगत का उदाहरण है।
एक तरफ लोकसभा चुनाव , दूसरी तरफ उत्तराखंड के दिग्गज नेता को कोर्ट की फटकार , इसमें कोई दो राय नहीं कि अफसर और नेता की जुगलबंदी जब नियम कानून को दरकिनार करती है तो वहां अपराध और निजी फायदे पनपते हैं कुछ ऐसा ही दिख रहा है पहाड़ के जंगलों में … आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में टाइगर सफारी पर बैन लगा दिया। इस आदेश के बाद, अब केवल जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के परिधीय और बफर जोन में बाघ सफारी की अनुमति दी जाएगी। लेकिन और क्या कहा है वो भी देखिये
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण योजना के तहत यह स्पष्ट हो गया है कि संरक्षित क्षेत्रों से आगे बढ़कर वाइल्डलाइफ संरक्षण के बारे में सोचना होगा। शीर्ष अदालत ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण और पेड़ काटने को लेकर उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और तत्कालीन वन अधिकारी किशन चंद को फटकार लगाई। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, ‘अफसरों और नेताओं ने मिलकर जनता के भरोसे को कूड़ेदान में डाल दिया है।’
सर्वोच्च न्यायालय ने महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा, ‘बाघों के बिना जंगल खत्म हो गए और अब जंगलों को सभी टाइगर्स को बचाना चाहिए।’ अदालत ने यह भी कहा कि हम टाइगर सफारी की इजाजत दे रहे हैं, लेकिन यह सब हमारे निर्देशों के मुताबिक रहेगा। इस मामले में यह स्पष्ट है कि वन मंत्री ने खुद को कानून से ऊपर समझा और यह दिखाता है कि कैसे मिस्टर किशन चंद ने जनता के भरोसे को हवा में उड़ा दिया। यह सब दिखाता है कि कैसे अफसर और नेता मिलकर कानून को अपने हाथों में लेते हैं।
अब तक ये हुयी कार्यवाही
बीते दिनों दिल्ली, उत्तराखंड और चंडीगढ़ में ED ने कथित तौर पर वन घोटाले के मामले में 17 जगहों पर छापेमारी की थी। हरक सिंह रावत का नाम इस घोटाले से जुड़ा है। इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि रावत के डिफेंस कॉलोनी के अपने निवास और देहरादून के मेडिकल कॉलेज में भी छापेमारी हुई थी। 2019 में कॉर्बेट नेशनल पार्क के पाखरो टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण, वित्तीय अनियमितताओं और हजारों पेड़ों के काटने के मामले में रावत के खिलाफ केस दर्ज हुआ था। रावत जब बीजेपी सरकार में वन मंत्री थे, तब पाखरो टाइगर रिजर्व उनका ड्रीम प्रोजेक्ट था।
पेड़ों की अवैध कटाई को नहीं कर सकते नज़रअंदाज़ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि बाघों के शिकार में काफी कमी आई है, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त को नकारा नहीं जा सकता। जिम कॉर्बेट में पेड़ों की अवैध कटाई को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। चंद्र प्रकाश गोयल, सुमित सिन्हा और एक अन्य शख्स को बाघ अभयारण्यों के अधिक कुशल प्रबंधन के लिए सुझाव देने के लिए नियुक्त किया गया है। क्षेत्र के विशेषज्ञों को इस पर गौर करना चाहिए। अदालत ने कहा कि पाखरू में पहले से चल रही सफारी को रोका नहीं जाएगा, लेकिन उत्तराखंड में एक बाघ बचाव केंद्र स्थापित किया जाएगा।
एमओईएफ एनटीसीए, एमओईएफ सीईसी अधिकारी के प्रतिनिधियों की एक समिति का गठन करेगा, जो कि संयुक्त सचिव और वन्यजीव प्राधिकरण के पद से नीचे नहीं हो। वह नुकसान की भरपाई के लिए उपायों की सिफारिश करेंगे और डैमेज के बहाली की लागत निर्धारित करेंगे।
दरअसल, चिड़ियाघर से बाघ लाकर सफारी के नाम पर उन्हें बफर जोन में रखने और कॉर्बेट पार्क में हुए अवैध निर्माण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। साल 2021 में हरक सिंह रावत के वन मंत्री रहते हुए कालागढ़ रेंज में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इसी मामले की सुनवाई के दौरान आई है।