वर्षा पूरे आवेग के साथ शुरू हो चुकी है। अतिवृष्टि की ख़बरों के बीच हरेला का आगमन हो रहा है. *धरती पर पड रही इस बारिश ने उसे उर्वर बना दिया है। अब समय है कि इस अवसर पर हम उसमें अपनी भूमिका निभाएं और एक पौधा जरूर रोपें।* लेकिन इसके साथ ही *कई सवाल सामने हैं जहाँ एक तरफ विकास के नाम पर लगातार बरसों पुराने वृक्ष कट रहे हों, और शहरों के फैलाव की कीमत वृक्षों का हरापन चुका रहा हो तब हरेला का स्वागत कैसे किया जाय? जब उत्तराखंड के हजारों गाँव उजड़ रहे हों और उनकी बरसो की उपजाऊ जमीन वीरान हो रही हो तब हरेला कितना प्रासंगिक है*
इसलिए इस बार हमेशा की तरह हम हरेला का स्वागत तो करेंगे ही; उत्सव भी होना है, ढोल दमाऊ भी बजेंगे और मंडाण भी लगाएंगे लेकिन हम उत्सव के साथ सड़क पर उन सवालों की बात भी करेंगे जो हरेला की मूल धरती के सामने आकर खड़े हो गए हैं। *इस बार का हरेला स्वागत हम देहरादून के कुछ पुराने पेड़ों और कुछ कटे पेड़ों के साथ करेंगे जिन्हें शहर को सजाने के लिए नष्ट कर दिया गया है। 2023 का हरेला मार्च गाँधी पार्क के सामने पिलखन के पेड़ से प्रारंभ होकर घंटाघर के पीपल के वृक्ष और प्रभात सिनेमा के पीपल वृक्ष से होते हुए कनाट प्लेस में हाल ही काटे हुए वृक्षों के सामने एकत्र होकर किया जाएगा जहाँ सब अपनी बात रखेंगे और फिर उसी रास्ते से हम गांधी पार्क लौटेंगे।*
यह भी तय हुआ है कि हरेला मार्च के साथ प्रारम्भ हुई इस पहल के साथ हम फिर हरेला को देश के कोने कोने में ले जाएंगे और ऐसा करने के लिए प्रवासी उत्तराखंडियों को साथ लेकर अन्य समाजों में भी हरेला के विचार को फैलाते हुए वहां भी वृक्षारोपण करने की पहल करेंगे और देश भर में उत्तराखंड के लोग वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण में अपनी रचनात्मक भूमिका निभाएंगे।
आइए इस बार हरेला में स्वागत के साथ इन जरूरी सवालों को लेकर कुछ कदम साथ चलते हैं।
आप सादर आमंत्रित हैं!
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