उत्तराखंड में 12 गाँव ऐसे है जहाँ 8 दशक से होली नही मनाई गई?
होली व दिवाली हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहारों में माने जाते है, ओर यह खबर अपने मे कुछ अजीबो गरीब रहस्य पैदा कर रही है।
बताते चले कि होली हो और मन न मचले रंग खेलने का बच्चे क्या बुजुर्ग सभी रंग जरूर खेलते है, लेकिन पिथौरागढ़ के सीमांत क्षेत्र में करीब 12 गांव ऐसे हैं, जहां रंग खेलना तो दूर की बात है। लोगों को टीका तक नहीं लगाया जाता हैं। ऐसा भी नही की ये लोग होली के बारे में नही जानते हो, कभी इन्ही
गांव के लोग मिलकर होली को बड़े उत्साह से मनाते थे।
कोई 80 साल पहले कुछ दैवीय या धार्मिक मान्यताओं और लगातार हर वर्ष हुए हादसों के कारण गांव के लोगों ने होली से दूरी बनाई हुई है। ग्रामीणों का मानना है कि अगर हम लोग गांव में होली मनाते है तो अशुभ घटना घटित हो सकती है।
लोग होली का टीका तक नहीं लगाते। उन्होंने कहा कि पहले गांवों में उत्साह से होली मनाई जाती थी। होल्यार गायन करते हुए एक गांव से दूसरे गांव जाकर उत्साह से होली मनाते थे और गीत गाते थे। इसके बाद गांव में लगातार होली पर कुछ न कुछ हादसे होते चले गए जिससे लोगो ने इस ध्यान रखना सुरु कर दिया।
ओर यह सब देखते हुए सभी गाँव के लोगो ने होली न मनाने का फैसला किया था। बरनिया गांव के पूर्व प्रधान मोहन दोसाद ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के चलते लोगों ने होली मनानी बंद की और उसके बाद से सब कुछ ठीक रहने लगा। अब होली के दौरान गांव में सन्नाटा रहता है।
इन गांव में नहीं मनाते हैं होली
मुनस्यारी विकासखंड के चुलकोट,बर्निया, होकरा,
हरकोट,खोयम,गौला,मटेना, रींगू, जरथी, नामिक, पापड़ी, पैकुती, आदि गांवों में होली नहीं मनाई जाती। यहां की आबादी 10 हजार से भी ज्यादा है।
रोचक बात यह है कि इन गाँवो के लोग नोकरी पेशा के लिये अन्य शहरों में रह रहे है वहां पर वह होली को उत्साह से मनाते हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि गांव में होली मनाने की अनुमति नहीं है। उनका कहना है कि गांव से बाहर होने पर वो होली मनाते हैं, पर गांव आकर वह धार्मिक मान्यताओं को मानते हैं।
(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां मान्यताओं पर आधारित हैं. UTTARAKHAND KESARI इन तथ्यों की पुष्टि नहीं करता है.)